सामना
प्रभा डोगरा, पंचकुला, मो. 98725775389
आज हुआ कुछ ऐसा अचंम्भा,
दो
दो हाथ पड़ा जब करना !
आगे
आगे थी जाती चलती,
कदम
बढ़ाती तेजी से !
ठिठक
गए क़दम झटके से,
पीछे
किसी ने अंचरा थामा !!
देखा
मुड़ जब, हुआ अचंम्भा,
इक
बाला छोटी ने आँचल थामा !!
बोली
‘‘चली जाती धीमे धीमे,
ले
लकुटी बनी नानी है !
रुक, कर करले कुछ नटखटपन संग मेरे''
मैं
बोली ‘‘हट मैं रुक ना सकती,
पैरों
में अब पंख लगे !!
नानी
की हूँ इक नानी मैं, धूप हुई
फीकी फीकी
बाला
लपक पड़ी उछलती-
‘‘नाचूँ गाऊँ धूम मचाऊं संग तेरे
क्यूँ
फिरती है नानी बनके ?''
बोली
मैं चल हट, जल्दी है घर जाने
की-
नाच ना पाऊँ संग तेरे दूर देस है घर मेरा !''
तू
कहाँ से आई चल के रोक रही मेरा रस्ता !
बाला
हुई लोटपोट जाती खिलखिल सी-
‘‘अंचरा समेट, हूँ देख अंदर तेरे
मैं
ना आई और कहीं से,
सदा रही भीतर तेरे !!''