हाइकु
डाॅ. कविता भट्ट, श्रीनगर, गढ़वाल
प्रस्तुति: रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, मो. 9313727493
जब भी रोया
विकल
मन मेरा
तुमको
पाया।
निर्मल
बहे
पहाड़ी
झरने -सा
प्रेम
तुम्हारा।
प्रेम-अगन
अनोखे
आलिंगन
बर्फीली
सर्दी।
मुझे
बुलाए
मूक
स्वीकृति-जैसी
तेरी
मुस्कान।
कोहरा
ढके
अठखेलियाँ
सारी
प्रिय
-संग की।
नभ
में पिया
बदली
रुई- सी है
उड़
आऊँ मैं।
बर्फीली
भोर
प्रिय-उष्णता-रश्मि
कली-सी
खिले।
अलाव-सा
है,
सर्द
रात पीड़ा में
स्पर्श
तुम्हारा।
बादल-यादें
आलिंगन
-सी छाई
मन
के नभ।
पथराई
आँखें
सैनिक-प्रिया
थकी
बाट
निहारे।
पहाड़ी
नदी
संघर्ष
पत्थरों से
फिर
भी बहे।
नित
प्रयास
आँसू
बाँचूँ तुम्हारे
दे
दूँ मैं हास।
तरु
शिखर
नभ
प्रिय को चूमें
उन्मत्त
खड़े
आनंद
गान
आरोह
में खो जाऊँ
प्रिय
जो पाऊँ
डाकिया
आँखें
मन
के खत भेजें
प्रिय
न पढ़े।