शख़्सियत : साम्राज्यवाद को बेनकाब करता महासमर

  बिनोद बब्बर

डॉ. राहुल

हिंदी साहित्य-जगत में डॉ. राहुल एक प्रतिष्ठित साहित्यकार-समीक्षक के रूप में स्थापित हैं। विभिन्न सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक विषयों पर आपका विशेष अनुभव है। इसलिए आपकी हर रचना ज्ञानपरक अनुभव की ओर ले जाती है तो मानवीय संवेदनाओं को भी झकझाोरती है। हिंदी अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित इस उपन्यास महासमरकी रचना 2003 में हुई। रचनाकार इस कृति के जनम की कथा बताते हुए मार्च 2003 में प्रकाशित एक समाचार का उल्लेख करते हैं। वास्तव में हम प्रतिदिन अनेक प्रकार की वस्तुओं को देखते हैं, विविध घटनाओं-दुर्घटनाओं का अनुभव करते हैं। अनेक प्रकार के खट्टे-मीठे कड़वे समाचारों से गुजरते हैं। और भुला देते हैं लेकिन एक संवेदनशील रचनाकार हर उस घटना की तह में जाता है जो विश्व शांति के लिए खतरा होते हैं।

प्रस्तुत उपन्यास इराक पर अमेरिकी आक्रमण की पृष्ठभूमि से बढ़ते साम्राज्य के विभिन्न रूपों और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद दुनिया में एकमात्र थानेदार की मनमानी के अनेेक उदाहरण प्रस्तुत करता है। लेकिन युद्ध का लगभग आंखों देखा हाल प्रस्तुत करते हुए डॉ. राहुल ने जहां युद्ध की विभीषिका को उसके विनाश और निरर्थकता को रेखांकित किया है वहीं साम्राज्यवादियों द्वारा रचे गए दिखावटी सिद्धांतों की भी पोल खोली है। बहुत कम पात्रों वाले इस उपन्यास में डॉ. राहुल ने अनेकानेक सूक्तियों को रचा है तो इस पूरे महाद्वीप-विशेष रूप से खाड़ी से हिंद महासागर और भारत के इतिहास-भूगोल से भी साक्षात्कार कराया है।

महासमर को यदि ईरान इराक-युद्ध से शिया-सुन्नी, कुर्द, तर्क जैसे अनेक संप्रदाय और कबीलों की स्थिति, उनके आपसी विवाद के कारणों और सीमा की स्थिति, खाड़ी-देशों के तेल व्यापार की राजनीति और उस पर कब्जा करने की अमेरिकी चाल का ऐतिहासिक दस्तावेज अथवा विकिपीडिया भी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

हिंदी प्रतिनिधि उपन्यासों तमस (भीष्म साहनी), वे दिल (निर्मल वर्मा), तीसरा आदमी (कमलेश्वर), वह पथबंधु था (नरेश मेहता), राग दरबारी (श्रीलाल शुक्ल), आधा गांव (राही मासूज रज़ा), ज़िंदगीनामा (कृष्णा सोबती), अंधरे बंद कमरे (मोहन राकेश) और मुर्दाघर (जगदंबा प्रसाद दीक्षित) के क्रम में महासमर उपन्यास अपना स्थान बनाता है। यद्यपि डॉ. राहुल आठवें दशक के प्रतिष्ठित कवि हैं। उनकी कई काव्य-कृतियां प्रकाश में आईं और चर्चा में रहीं। कवि के साथ वह ख्याति प्राप्त आलोचक एवं कथाकार भी हैं। ज्ञानदीप कहानी-संग्रह पर हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा उनहें साहित्यकार सम्मान प्रदान किया गया। महासागर उपन्यास 2004 में प्रकाशित हुआ। इसकी पृष्ठभूमि में इराक-अमेरिका युद्ध की विभीषिका के विविध दृश्य-परिदृश्य हैं। बहुविध रूपों मेंअपनी रचनात्मक प्रतिभा का परिचय देने वाले डॉ. राहुल अत्यंत मृदुल विनम्र किंतु सिद्धांतप्रिय ऊर्जावान व्यक्तित्व के स्वामी हैं। विचारों में राष्ट्रवादी, प्रगतिशील एवं मानवतावादी हैं। इस उपन्यास में भी उनका मानवतावादी चिंतन मुखरित होता है। उपन्यासकार ने किस प्रकार की घटनाओं को चित्रांकित किया है उससे चित्त और चेतना एकाकार होते हुए प्रतीत हेाते हैं। अमेरिकी सेना द्वारा इराक के शासक सद्दाम हुसैन को हटाने के नाम पर जिस तरह मिसाइलों से अंधाधुंध हमले किये गए उसने एक उन्नत शहर और उसकी जीवंत जीवन-शैली को तहस-नहस कर दिया। उन्माद मेंअंधे हुए अमेरिकी शासकों ने इराक की भलाई के छद्म मुखौटे लगाकर इराके के बच्चों, बूढों और महिलाओं को जिस बेदर्दी से कत्ल किया उससे किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को सहानुभूति नहीं हो सकती है।

जरीना बानो के जीवन में बहुत बारीक बुनावट वाले कथानक में एक अमरीकी सैनिक सैमुअल का प्रवेश अजीब तो है लेकिन मानवता को किसी धर्म संप्रदाय अथवा प्रदेश की सीमाओं में नहीं जकड़ा जा सकता। स्नेह, सहानुभूति, संवेदनाएं परस्पर विरोधी पृष्ठभूमि के लोगो में भी हो सकती हैं। इसलिए अमेरिकी सैनिक के हृदय में कोमल भाव होना संभव है तो दूसरी ओर जरीना बानो जो अपने माता-पिता, बहन-भाई सभी को खो चुकी है उसके हृदय में भी उस अमेरिकी सैनिक के प्रति प्रेम उमड़ता है। जरीना के अनुसार उसके पिता ने उसके लिए पास के शहर के एक युवक को निश्चित किया था लेकिन जरीना ने अपने राष्ट्र के लिए कुछ करने के भाव प्रकट करते हुए उससे निकाह करने से इंकार कर दिया। परिस्थितियां बदलीं तो अपने देश में ही असुरक्षित हो चुकी जरीना की सुंदरता ही उसकी शत्रु बन गई। न केवल शत्रु सैनिक, बल्कि उसी देश के दूसरे कबीलों के लोग भी उसे अपनी हवस का शिकार बनाना चाहते थे। लेकिन जरीना बानो अपने आपको बचाती रही।

देश-काल और वातावरण की दृष्टि से यह काफी सफल है। किंतु यह प्रश्न भी उठता है कि यह उपन्यास वातावरण प्रधान है या चरित्र-प्रधान। उपन्यास का काल 21वीं सदी के प्रथम दशक का मध्यकाल है। भारत में राजनीतिक उठापटक का माहौल है तो विदेश में राजनीतिक तनाव और विरोध के स्वर उठ रहे हैं। इराक ईरान युद्ध और अरब राष्ट्रों में भी खींचतान की स्थिति है। कहीं वर्चस्व को स्थापित करने की लड़ाई है तो अमेरिका जैसे महादेश के शासक राष्ट्रपति बुश में अहम् भाव भरा हुआ है। प्रतिशोध की अग्नि धधक रही है। सद्दाम हुसैन के तानाशाही रवैये पर अंकुश लगाने के नाम पर भीषण हवाई हमलों की मुहिम तेज होती हैं। इस विश्व प्रसिद्ध घटना को उपन्यासकार ने वाणी दी है और इसमें इराक अमेरिका युद्ध के अंतर्विरोध हो को भी बड़ी कुशलता से उजाकर किया गया है। एक दृष्टांत-महासमर की विभीषिका से पूरी दुनिया कांप रही। जमीन पर पैदल मार्च करते अमेरिकी ब्रिटिश फौजी इराक के शहरों की ओर बढ़ने लगे। आकाश में बम वर्षा लड़ाकू जेट विमानों की गड़गड़ाहट से आसमान थर्रा उठा। यद्यपि इराकी सेना उनका मुकाबला करने के लिए पहले से ही तैयार थी। जगह-जगह चैकियां और बेरक बनाकर वे उन्हें रोकने की भरपूर कोशिश कर रहे थे, किंतु एक बड़ी शक्ति के सामने उनके सारे प्रयास नाकाम साबित हो रहे थे।’ (पृष्ठ 28)

अंत में युद्ध समाप्ति के बाद उस अमेरिकी सैनिक के हृदय में भी जरीना बानो के प्रति प्रेम उमड़ता है। वह उसकी तलाश करता है और जब वह उसे मिल जाती है तो वह अपने देश लौटने से इनकार करते हुए सेना से त्यागपत्र दे देता है। जरीना उसे एक गूंगे व्यक्ति द्वारा सौंपी गई वह कुरान सौंपती है जिस पर मुल्ला उमर के हस्ताक्षर थे। जरीना उस समय बहुत प्रसन्न होती हैै जब सेमुअल ने उसे बताया कि 17वीं शताब्दी में उसके पूर्वज इराक से ही अमेरिका गए थे और उसके परदादा का नाम भी मुल्ला उमर था। वास्तव में दो विपरीत परिस्थितियों में अपना जीवन-जीने वाले लोगों को संवेदनाएं ही जोड़ सकती हैं। लेखक ने प्रेम को परिभाषित करते हुए पृष्ठ 115 पर कहा है, ‘प्रेम व्यक्ति को पागल बना देता है। प्रेमी विह्वल जीवन के लिए संसार कालकोठरी के समान है जो नैराश्य और अंधकार से भरी है।  प्रेम प्रेम का पुरस्कार है। प्रेम सौंदर्य है और सौंदर्य प्रेम। एक में सुख है दूसरे में आनंद।

इसी प्रकार पृष्ठ 118 पर कहा है, ‘‘नारी पुरुष की शक्ति है एक ऊंचाई है। नारी की सीमा नहीं। नारी एक आधार है एक संकोच है, एक निर्मलता है, एक कोमलता है जिसकी कोई सीमा नहीं। नारी के भले ही कई रूप हों कई रंग हों पर एक तरह से वह एक उच्चता जीती है। नारी नर की छाया है, काया है। उसमें एक दिव्यता है। भव्यता है।

परंतु कुछ लोग जो नारी को सिर्फ सेक्स की वस्तु मानते हैं और जानते हैं कि कामदेवता नारी के रूप मेंछिपे होते हैं जो वासना को प्रेरित करते हैं। नारी भोगने की वर्जन नहीं। हमारे यहंा तो नारी अंगों के प्रदर्शन पर कोई प्रतिबंध नहीं। वात्स्यायन और फ्रायड के कामसूत्र के मूल में सेक्स छिपा है। मगर यहां नारी पर्दे में जीती है। पर्दा इस्लामी संस्कृति में एक आदर्श जीवन-पद्धति है। कितना भाव बोध है इसमें। इसकी आड़ में कामिनी के लावण्य को देख पाना आसन नहीं। काली काली आंखें, चंद्रमा सा मुख, हिरनी सी चाल और अरविंद परिमल बना जरीना की मधुर वाणी मन करता है सदा सुनता रहूं।

वातावरण और चरित्र-चित्रण के द्वंद्व में लेखक का ध्यान निचश्य ही चरित्र की और अधिक है। उपन्यास का प्रमुख पात्र सैमुअल चेस्ट है जिसके पूर्वज इराकी रहे हैं। इसलिए अमेरिकी सैनिक होते हुए भी उसके भीतर इराकी धरती के प्रति पे्रम की भावना दबी हुई थी। वहां की वीरांगना नारी जरीना बानो अमेरिकी सैनिकों को मारकर देश की अस्मिता की रक्षा करती है। जरीना और जेसिका मात्र दो नारी-पात्र हैं। देश प्रेम की भावना दोनों में भरी हुई है। यथा. स्वाभिमान एक सात्विक सुगन्धित कमल पुष्प सा है जिसके चारों ओर सद्गुणों के भ्रमर सैदव गंुजित रहते हैं। सदैव-मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण  है जिसमें सम्मान, त्याग, निष्ठा आत्मत्व का महत् भाव निहित होता है। (पृष्ठ 29) ये दोनों बहने राष्ट्र भावना से जुड़कर अपना सर्मपण प्रत्यार्पण भी कर देती है। दोनों अपने कर्म और पेशा से पृथक होते हुए भी राष्ट्रीय भावना से एक सामन हैं। उनके लिए राष्ट्रीय भावना स्वार्थ साधन का हिस्सा नहीं, सेवा-त्याग-बलिदान का भव्य भाव है। पात्रों का व्यक्तित्व सृजन करने में लेखक को विशेष सफलता मिली है।

महासमर -जिसमें सुख-दुख नहीं सत्य-असत्य अन्याय अत्याचार अंधरे उजाले से संघर्ष है। उनसे मुक्ति का संघर्ष समझौतावादी क्या समझेंगे कि जिंदगी में घातों और आघातों को बर्दाश्त करने के बावजूद ही विजय प्राप्त होती है। (पृष्ठ 120)

इस उपन्यास में जहां जरीना बानो के माध्यम से रचनाकार ने इराक के पूरे इतिहास को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है उससे मेसोपोटामिया की संस्कृति और भारत के साथ उसके संबंधों का भी मार्मिक चित्रण किया है। वहीं जरीना बानो के मुख से नारी की शक्ति का वर्णन कराते हुए उपन्यासकार में भारत की नारी-शक्ति के पुराणों से अब तक के अनेक महान पात्रों के प्रति स्नेह और उनके विराट अनुभव का परिणाम है कि उन्होंने इस महासमर में अनेक स्थानों पर तुलनात्मक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है। छोटे-छोटे वाक्यों और सुख सूक्तियों माध्यम से प्रस्तुत महासमर की कथा पाठक के मन-मस्तिष्क में भी एक महासमर का उद्घोष करती है जो उसकी तीव्रगामी कथावस्तु जहां इतिहास के अनेक तथ्यों से परिचित कराती है वही युद्ध की विभीषिका और दुनिया को बांटने के प्रयासों में लगे साम्राज्यवादियों का कच्चा चिट्ठा भी प्रस्तुत करती है। एक नए शिल्प और नई शैली के साथ प्रस्तुत यह उपन्यास भाषा को संस्कारित करते विश्व राजनीति के अंतद्र्वन्द्वों में छिपे शतम चेहरों को पहचानने का विवेक भी प्रदान करता है। 2003 से 18 वर्ष बाद अर्थात् 2021 में भी ताजगी लिए यह उपन्यास डॉ. राहुल द्वारा रचित विशिष्ट कृतियों में विशिष्टतम है। आवश्यकता है इस उपन्यास में जिन भावों की ओर संकेत किया गया है उस पर विस्तृत चर्चा समाज में हो तभी यह विश्व युद्ध की विभीषिका उसे स्वयं को मुक्त कर सकता है।

उपन्यास चूंकि कथानक और संवाद शैली में लिखा हुआ है इसलिए बिखराब का सवाल ही पैदा नहीं हुआ। सैमुअल चेस्ट मुस्लिम संस्कार संस्कृति का है इसलिए उसमें जरीना बानो और समाज के प्रति वैसी ही गहरी संवेदना है। वह पहली नजर में जरीना पर मुग्ध हो जाता है। कथानायक और नायिका भावनाओं में बहुत गहरे स्तर पर जीते हैं और युद्ध के दौरान बिछड़ने के बावजूद अंततः बगदाद में मिल जाते हैं। जब एक टेंट में वह ड्यूटी दे रहा होता है और जरीना रात की धुंधली रोशनी में दरवाजे पर दस्तक देती है उसे देख वह चैंक उठता है और वहां भी उसकी अस्मिता की रक्षा करता है। सैनिक ने अपना त्यागपत्र कमांडर को सौंप कर इराक में रहने का अपना फैसला सुनाया। (पृष्ठ 123)

बढ़िया कागज, सुंदर छपाई और बहुत कम मूल्य इसकी अतिरिक्त विशेषताएं हैं तो वही भारतीय इतिहास के मुस्लिम  नायकों के विवाह के लिए निकाह शब्द का प्रयोग सटीक है। एक स्थान पर एक इस्लामी देश की नारी द्वारा धरती को मांकहना लेखक द्वारा भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर आ रोहित करने का प्रयास है। रचनाकार ने केवल वेदेशी आक्रांताओं के महिलाओं के प्रति पाशविक दृष्टिकोण को ही नहीं, बल्कि उनके अपने समाज मेंचारों ओर पसरी पशुता को भी स्पष्टता से उजागर किया है।

कथात्मक सौष्ठक के बावजूद कथ्य में कसाव की दृष्टि से इस महत्वपूर्ण रचना के लिए डॉ. राहुल को साधुवाद

संपा., राष्ट्र-किंकर, उत्तम नगर, नई दिल्ली, मो. 9868211911

डॉ. राहुल, विकासपुरी, नई दिल्ली, मो. 9289440642

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