स्मृतियों के झरोखों में नरेन्द्र मोहन

हिन्दी साहित्य के सुविख्यात रचनाकार डॉ. नरेन्द्र मोहन एवं अपने माता पिता के प्रिय निंदरआज हमारे बीच नहीं हैं। विश्वभर में फैली कोरोना महामारी ने उन्हें ग्रास बनाकर साहित्य जगत को गहरी क्षति पहुँचाई है। मेरी गुरु के गुरु होने के नाते और उन पर पीएच.डी. का कार्य करने के कारण मेरा उनसे सम्बन्ध बहुत गहरा है। उनकी रचनाओं को पढ़ते हुए मैंने उनके जीवन की घटनाओं को साथ-साथ जिया और महसूस किया है।

स्वतंत्रता संग्राम और विभाजन के दौर में जन्मे निंदर का पूरा जीवनकाल उस त्रासदी से त्रस्त रहा। वह खिड़की उनके लिए खुली की खुली रह गई जिसे बंद करके वह विभाजित देशों को एक करने के इच्छुक थे। देश विभाजन के साथ उनकी आत्मा भी विभाजित हुई जिसे पूर्णता प्राप्त हुई अपनी रचनाओं में। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी वह इसी पूर्णता की तलाश में लगे रहे।

सर से मेरी पहली मुलाकात जम्मू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित संगोष्ठी में हुई थी, जिसमें वह मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए थे। पहली बार किसी सुविख्यात साहित्यकार को प्रत्यक्ष सुनना अविस्मरणीय रहा। उनका ज्ञान-सागर शब्द रूपी लहरों से हमें भिगो रहा था। उसी दिन विभाग में उनसे व्यक्तिगत मुलाकात में वह शान्त लगे, सतह से जुड़े किसी आम व्यक्ति की तरह। बेहद आत्मीयता से वह हमसे मिले और हमारी जिज्ञासाओं को दूर किया। भविष्य के लिए हमारा मार्गदर्शन भी किया।

इसके बाद सर जब भी जम्मू आते, मैम के घर पर उनसे भेंट हो जाती। उस समय की स्मृतियाँ अभी भी ताजा हैं। एक बार किसी कविता गोष्ठी में जाने के लिए उन्होंने अपनी कविता मुझसे लिखवाई थी, मैम यह कहकर हँस पड़ी थीं कि ईशा तुम यह कह सकती हो कि यह कविता मेरी लिखी हुई है। सर भी हँस पड़े थे। अभी कुछ ही दिनों की बात है, मैम द्वारा मेरी नौकरी लगने की खबर सुनकर वह बहुत प्रसन्न हुए थे। फोन पर बधाई देते हुए उन्होने मुझसे कहा था कि बेटा, लिखना और पढ़ना मत छोड़ना, यही जीवन की असली पूँजी होती है।

सर का साक्षात्कार लेने की इच्छा मन में ही रह गई और वह चले गए। उनका यूँ अकस्मात् चले जाना शायद ईश्वर की इच्छा थी परन्तु वह पाठकों के मन-मस्तिष्क में, अपनी कृतियों में, सजीव एवं निडर अंदाज में, प्रखर शब्दों में और देश विभाजन जनित त्रासदी की सच्चाई उकेरने के प्रयत्न में हमेशा जीवित रहेंगे।

ईशा वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय कठुआ, जम्मू, जम्मू व कश्मीर। 

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