दूधिया आलोक

मेरे दादा इलाके के नामी गाँधीवादी नेता थे। आजादी के लिए संघर्ष के दिनों में वे सुपौल, सहर्षा, मधेपुरा, विहपुर से लेकर भागलपुर तक अंग्रेजों के विरोध का प्रतिनिधित्व करते थे। राजेन्द्र बाबू, अनुग्रह बाबू से लेकर श्री बाबू तक उन को जानते थे, मगर आजादी के बाद उन्हें टिकट नहीं मिला, तो वे नेपथ्य में चले गए। उनकी स्मृति पर कुकुरमुत्ते उग आए!

बचपन में दादा के पास तो समय नहीं होता था, पर दादी कहानियाँ सुनाती थीं, एक से बढ कर एक! उसकी एक कहानी आज भी याद है, वह कहती, एक आदमी युद्ध में हार गया, उसे सपरिवार बंदी बना लिया गया। उसके बीवी बच्चे को कैद करने के बाद दुश्मनों ने उससे कहा तुम पहाड़ की चोटी पर चढ़कर चाँद को अकेले छूकर आओ, नहीं तो तुम्हारे बीबी और बच्चे कत्ल कर दिए जाएँगे... वह आदमी पहाड़ की चोटी पर लड़खड़ाते हुए चढने लगा, जब-जब उसके पैर काँपते, साँसें उखड़तीं, तब-तब उसे संगीन की नोंक पर टंगे अपने बीबी-बच्चों का खयाल आता और वह आगे बढ़ता जाता। जान हथेली में और साँस जीभ पर लेकर! चलते-चलते उसके हाथ-पैर जगह-जगह से छिल रहे थे खून रिस रहे थे... एक बार तो वह बेहोश ही हो गया... सात दिन, सात रातें चलने के बाद लगभग घिसटते हुए वह चोटी पर चढ़ गया... उसने खुशी से हाथ लहराए, चीख कर भगवान की प्रार्थना में कुछ अस्फुट शब्द कहे, फिर बादल को हथेलियों से छुआ, चाँद पर उंगली फिरायी... कुछ तारे चुने... मगर वह लौट नहीं सका ....वहीं गिर गया...

‘‘फिर क्या हुआ दादी?‘‘ हम दुखी होकर कहते।

‘‘वह मैं नहीं कह सकती!‘‘ दादी असमंजस में पड़ जाती। उसके चेहरे पर अज्ञात पीड़ा उभर आती।

‘‘वह लौटा क्यों नहीं?‘‘ हम दूसरा सवाल दागते।

‘‘नहीं लौटा पर चोटी पर उसने एक उम्मीद का पौधा लगया, चाँद पर अपने सपने की नींव तो रखी...‘‘ दादी ने उसाँस लेकर कहती,‘‘ ईश्वर को उसने करीब से देखा...‘‘

‘‘ईश्वर ने उसकी मदद क्यों नहीं की?

‘‘ईश्वर उस दिन सोया हुआ था, ‘‘ दादी कुछ पल सोचने के बाद कहती,‘‘ उसकी नींद नहीं खुली होगी, पर उसे बाद में अफसोस हुआ होगा,इतनी ऊँचाई पर आकर मरे उस आदमी को देखकर ...‘‘

‘‘तुम कैसे कह सकती हो?‘‘ कोई कहता,‘‘ हमें वह कहानी सुनाओ...उसके बीबी -बच्चे के साथ दुश्मनों ने क्या किया?‘‘

‘‘वह कहानी मैं नहीं जानती!‘‘ दादी झुँझला जाती,‘‘सब मुझी से पूछोगे..  जीवन कितना बड़ा है।आगे की कथा  तुम लोग खुद सोचना-कहना..‘‘

क्यों दादी?‘‘

‘‘यह समय से पूछना, अपने समय से!‘‘

‘‘तब कहानी बनेगी?‘‘

‘‘हाँ, बनेगी!‘‘

उस समय तो कोई कहानी नहीं बनी, पर आज मुद्दत बाद शायद दादी की वही कहानी मैं आप से कह रहा हूँ...

.....प्रशांत का जन्म  एक छोटे से गाँव में खपरैल वाले पुराने घर में हुआ था। वह भी गरीब किसान के घर में। उसकी माँ प्रसव के समय इतनी अशक्त थी, एक घंटे में ही खून के बीच लिथड़ कर मर गयी। सौहर भी नहीं गया जा सका, पर बच्चा चाँद के टुकड़े की तरह दीप्त किलक रहा था। पता नहीं किस ने दूध दिया, किसने पानी।वह बच गया। बच क्या गया  बढ़ने लगा। पिता उसे चाँद नहीं कुकुरमुत्ता कहते थे, जिसने उनके उर्वर जीवन को गोबर कर दिया था। बचपन में माँ  के न होने से वह छिछोरा हो गया! इधर-उधर छिछियाता। भूख लगती, तो पानी पीता! गाछ-बिरिछ से आम-इमली तोड़कर चाटता। खेलता-कूदता। माछ-काछ पकड़ता। पिता बहुत मतलब नहीं रखते। उनकी अपनी दुनिया वीरान हो गयी थी, वे वीतरागी हो गए थे,लेकिन गाँव  के नागा गुरु ने एक दिन पीट-पाट कर स्कूल का रास्ता धराया उसके छिछोरे को! बस वह फिर से चाँद हो गया। पढ़ते-पढ़ते पहले नेतरहाट, फिर इन्जानियरिंग और फिर.... आप अनुमान करिए फिर क्या हुआ। इतिहास में ऐसा कभी-कभी होता है, जब कोई चाय बेचने वाला प्रधान मंत्री, कोयला, पान और बीड़ी बेचने वाला महानायक हो जाता है। जिस छिछोरे का इन्जीनियर बनना आठवाँ ऐश्चर्य था, वह सीरियल और फिल्म का स्टार हो गया। अरबों में कमाई। कंमलडीहा अब दुनिया के नक्शे पर था। वह भी उस लड़के के कारण जिसके जन्म पर सौहर भी न गाया गया था। अखबार में, टी वी. में उसकी खबरें आ रही थीं, वह भी नामी-गिरामी तारिकाओं के साथ... कमलडीहा के लल्लू-लल्ली भी सपने में इन्द्र-लोक में उड़ते, छोरा कमलडीहा वाला!

हिट पर हिट! प्रशांत कमलडीहा के धोनी, विराट, अमिताभ सब था। सत्रह साल बाद एक बार जब गाँव आया, तो एक भौजी ने कहा,‘‘

बौआ ब्याह में ले जैबै की नैंय?‘‘

‘‘हँ ये...‘‘ अपने स्टारडम से निकल कर पीढ़ा पर बैठे-बैठे उसने कहा,‘‘ अहाँ सन चाँद मिलतै तब ने?‘‘

‘‘मतलब?‘‘

‘‘लड़का जे बुरबक ये...‘‘ वह हँसा।

तब लोकल अखबार की लीड खबर थी यह बातचीत। वह बचपन के सभी दोस्तों से मिला था। बाबा वरुणेश्वर थान में उसका मुंडन बाँकी था, सो भी हुआ था, फिर वह ननिहाल गया था। फिर सहरसा-पूर्णिया। एक पूरी युवा पीढ़ी उसमें अपना अक्स देख रही थी। गाँव के सटहा, सुरेन्दर से लेकर डाॅक्टर-इन्जीनियर तक! कई लोग चाँद पर चढ़ने के लिए छिछोरा बन रहे थे... डाॅक्टर-इन्जीनियर को भी लगता कि उनके अन्दर एक कलाकार एक्टिंग करने के लिए प्यास से बेहाल चाँद पर ओस चाट रहा है...

बेला महका रे महका आघी रात को...

मगर कमलडीहा में बेला, कमल, गुलाब सब दिन में ही महक रहे थे। लोग उस माँ को धन्य मान रहे थे, जिसने ऐसे महान कलाकार को जन्म दिया था। फिल्म में शाॅट गन के बाद लांग रेंज का गन! 

प्रशांत की कई फिल्में लगातार हिट हो रही थीं। ‘रोज‘ तो सुपरहिट! जो भी हो अचानक से जब कोई कुकुरमुत्ता गुलाब हो जाता है, तो भीतर-बाहर कई दुनियाएँ आपस में अंतर्विरोध का एक अकल्प संसार रचती हैं। नीया-टिया की फैंटेसी और लव के साथ इण्डस्ट्री को मुट्ठी में करने की अदृश्य लड़ाई! प्रशांत उस समय चकराया जब तकरीबन दस फिल्मों के निर्माता-निर्देशक ने उससे अचानक करार तोड़े। वह चन्द्रमा पर से लुढ़का! उसे लगा मूंगालाल के नम्बर वन पर मँडराते खतरे की वजह से तो ऐसा नहीं हो रहा? मूंगालाल की इण्डस्ट्री में तूती बोलती थी। प्रशांत को भी कई बार उसने टाॅरगेट किया था, पर कहते हैं न मायानगरी की  माया है यह। फिल्में पर्दे पर जितनी चमकती हैं अंदर की दुनिया उतनी ही स्याह होती हैं। आप में अगर प्रतिभा के साथ दम है, तो आपको इस आपसदारी की क्रूरताओं और नृशंसताओं के चक्रव्यूह से निकलने की व्यावसायिक रणनीति भी बनानी होती है...एक-एक साँस पर कम्पीटीशन है यहाँ! तुम नींद में गए कि पीला छतरी गायब! पीली छतरी क्या पूरा लोकेशन ही गोल। फिर चिल्लाते रहो महमूद की तरह -खाली डब्बा, खाली बोतल ले लो मेरे भाई...इस बेदर्द मायानगरी में कोई अगर इस बात पर रोये कि किसने किसकी फिल्में और किसकी गर्लफ्रेंड छीनीं, तो उन आँसुओं से एक दूसरा समंदर निकल आएगा। फिर उस समन्दर में चन्द्रमा को छूने के लिए इतनी लहरें पछाड़ खाएँगी कि उस शोर में पूरा मुंबई खो जाएगा... राजकपूर, सुनील दत्त, धर्मेन्द्र, राजेश रौशन, किरण कुमार,अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र  यहाँ तक कि खुद मूंगालाल...खिलते हैं गुल यहाँ खिल के  बिखरने को... 

क्या रील लाइफ और क्या रीयल लाइफ... यहाँ किसी की जुबान की कोई कीमत नहीं, किसी के प्यार का कोई भरोसा नहीं...यह नहीं कि एक से लगन लगी, तो ताउम्र उसी टेक पर सरस्वती-चन्द्र का धुन बजाते रहे।. अब आया है रीमिक्स रीयल लाइफ में! प्यार एक कंडोम से अधिक कुछ नहाी! कमलडीहा में आप जो रहें, यहाँ नहीं चलेगी गाँव वाली दकियानूसी! प्रशांत जब ऊँचााई पर पहुँचा तब यह मोड़ आया चैका मारने, वह भी  सोएब अख्तर की गेंद पर। गेंद विकेट ले उड़ी ...

अचानक उसकी प्रायवेट सेक्रेट्री पीयूषा ने आत्महत्या कर ली। इसके बाद उसकी गर्लफ्रेंड के रुख में बदलाव आया। चाँद पर उसने एक प्लाॅट लिया था, उसे चाँद वाला प्रेम झूठा लगने लगा। उसे लगा इंडस्ट्री में उसकी बिगड़ती हुई पोजीशन के कारण तो यह सब नहीं हो रहा? कहीं उसका करियर तो डाँवाडोल तो नहीं हो रहा? गाँव वाला कच्चापन उसमें था, वह अक्खडपन भी! थोडी सी नमी, थोडी सी प्यास! थोड़ा सा गुस्सा! वह अवसाद में घुलने लगा। कहते हैं स्टारडम की इस चकाचैंध और भीड़ भरी दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि अपने सीमित एकांत में अबाध सुख का उपभोग करने वाले वही लोग अपने निविड़ एकांत में दुख नहीं भोग सकते! शराब और नींद की गोलियाँ भी मन के काॅरीडोर में पसरे दुख के अँधेरे को सुला नहीं पातीं, मिल-जुल कर दुख-सुख भोगने वाली सामाजिकता का अभाव उन्हें नमक के बोरे सा गलाने लगता है... आप अगर उस ऊँचाई पर हैं, तो आपको वह मिथ भी रचना होगा, जो आपका अपना हो...मूंगालाल हों या अमिताभ बच्चन या शाहरुख खान! उन्होंने स्टारडम के साथ वैसा आप्त-लोक रच लिया था, जिसमें एक पूरी दुनिया तो नहीं, पर दुनिया का डैमो था, पर प्रशांत को शायद इसका वैसा अहसास नहीं था। उसका आरंभिक विश्वास ही उसे अजेय बनाए हुए था, वह छक्का मार रहा था धोनी की तरह पर वह यह भूल रहा था कि आउट धोनी भी कई बार जीरो पर हुए! काश! उसने कमलडीहा के पाँच लड़कों को कुछ जिम्मा दिया होता,तो उसकी टीम मजबूत होती। मुंबई पर कमलडीहा की औचक जीत से जो एक डिजास्टर हुआ था, उसे देखने वाले रोमांचित थे, तो हारने वाले बौखलाए हुए थे...

प्रशांत जब तक इस बात को समझता तब तक देर हो चुकी थी। एक चक्रव्यूह उसके मन को घेर चुका था। एक रेगिस्तान उसके अन्दर का सारा पानी सोंख चुका था। ऐसे में आप अनुमान कर सकते हैं कि वह कितना परेशान होगा !

बदहवासियों के बीच उसने उस रात कई फोन लगाए, पर किसी नम्बर को कोई स्मृति थी ही नहीं! सब स्याह! वहाँ तो बस माया लोक की झूठी परछाइयाँ थीं। टूट कर गिरने वालीं और लूट कर भागने वाली परछाइयाँ! वह बेजार सा बहुत देर तक सोचता रहा अपने मन के धुँधले प्रकाश में। नीया फोन नहीं उठा रही? उसके आगे-पीछे छाया की तरह हिलने वाली नीया... उसने जबड़न ‘रोज‘ फिल्म में उसे काम दिलाया, तब कितना चिपकती थी? और टीया? भंसाली? मेहरा? सब भूल गए क्या? यहाँ रिश्ते बनते ही हैं टूटने के लिए...पैसा ही सब कुछ है इनका, भले ईमान गल जाए! लेकिन इस बाॅलीवुड में तलवे चाट कर जो बढ़े, वह नहीं झुक सकते। ऐसी झूठी  छलावे की दुनिया लेकर कोई क्या करेगा? उसे याद आया। उसकी बहनें फिल्म में आने के खिलाफ थीं। पिता ने भी कहा था, इन्जीनियरिंग में ही रहो...एक अदद आदमी उसके अन्दर रीयेक्ट कर रहा था! 

वह उठा और छत पर टहलने लगा। चाँद रात थी।समुद्र में जोर की लहरें उठ रही थी। किनारे सफेद झाग पसर रही थी। वह नीचे उतर आया। हवा भीग  रही थी। उसने पानी पीया। फिर वापस छत पर गया, फिर कमरे में लौट आया इसके बाद जाने क्या हुआ कब हुआ,...कहते हैं आँखों ही आँखों में चाँद ने एक पेड़ से लटक कर फाँसी लगा ली! चाँद ने क्यों फाँसी लगायी? चाँद भी कहीं फाँसी लगाता है?हवाओं का फंदा कैसे बन सकता? पेड़ कहाँ से  आया चाँद पर ? रात कितनी थी? सितारे सो रहे थे कि जाग रहे थे? चाँद ने आत्महत्या की कि उसे मार कर उस तरह लटकाया गया आसमान में पेड़ की डाली से? सवाल हजारों हैं सही भी, गलत भी, अटपटे भी। मीडिया के एक कयास के मुताबिक इनवेस्टीगेशन में गिलास के काँच बिखरे हुए थे वहाँ पर, जिसे अपनी बाॅलकनी से मूंगालाल ने खुश होकर चाँद पर फेंका था, तो दूसरे के मुताबिक एक कंगन के रोने की आवाज आ रही थी उस रात, तीसरे ने कहा वह आवाज तो सदियों से आ रही... एक ने कहा, जो भी हो कमलडीहा में चन्द्रग्रहण था उस रात, अगर वहाँ चाँद निकला होता, तो सच का पता चल जाता! एक ने चीख कर कहा कि प्रशांत को न्याय मिले कि नहीं मिले, पर यह सवाल रहेगा कि इसमें साजिश है,इसमें बाॅलीवुड की गलीज हो गयी दुनिया की तस्वीर साफ दिखती है, वह एक अंडरवर्ल्ड की तरह है। मुमकिन है उसकी इस चीख से घटना में कोई नया मोड़ आए। सत्ता-संस्कृति, पद-पैसा और पाॅवर के इस बर्बर समय ने आदमी की दुनिया को इतना अमानवीय बना दिया है, कि यहाँ जो हमारे लिए अविश्वसनीय हो सकता है, वही सच है ! किसका प्यार ? कैसा प्यार? एक बेचैन करने वाली प्रतीक्षा मुझे भी मथ रही है। मगर तत्काल मैं कुछ दूसरा सोचना चाहता हूँ। मुझे लगता है कि चाहे दादी की कहानी में पहाड़ की चोटी पर गिरा आदमी हो कि इस आदमी की त्रासद विडम्बना ..हममें से कोई सदियों तक इसे पचा नहीं सकता!! करोड़ों लोगों को अब भी लगता  है कि कोई न कोई आदमी चाँद बन कर फिर धरती पर  उतरेगा ! उस दिन कमलडीहा में सौहर हो न हो, पर खपरैल वाले उस घर में कोई दीप्त दूधिया आलोक जरूर फैलेगा !


प्रि. संजय सिंह, पूर्णिया महिला काॅलेज,  पूर्णिया, मो. 9431867283

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