अभी उम्मीद बाकी है

लघुकथा








महेश कुमार केशरीबोकारो (झारखंड) मो. 9031991875

उस, मंदिर में लोग  लगातार आ -  जा रहे थे।  प्रसाद खरीदने वाले से  लेकर, फूल-माला  खरीदने  वाले, लेकिन, किसी की नज़र बूढ़े गणपत  पर नहीं पडी..!!

लेकिन, उस बूढ़े आदमी को देखकर रोहित ने कयास भर लगाया। हो ना जिस बात का अंदेशा उसे  है, कहीं वो सच ही ना हो जाये ...ऐसा सोचकर ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। आये दिन अखबार में ऐसी घटनाएं अब आम हो चली थीं. जिसे गाहे-बगाहे वो अखबार में पढता रहता था. कभी किसी रेलवे स्टेशन पर तो, कभी कहीं किसी बस डिपो के यात्री पडाव पर या कभी कहीं किसी पार्क में..वो ऐसी घटनाओं से रु-ब-रु होता रहता था.. !! रोहित की अनुभवी आंखों ने इसे ताड़ लिया था...

वो बूढ़े गणपत के पास थोड़ा और करीब खिसक आया। फिर उसने उनका परिचय जानने के लिहाज से पूछा-  ‘‘बाबा आप यहां कब से बैठे हैं.. ?? मैं आपको यहां नया देख रहा हूं.!! आपका नाम क्या है बाबा.. ?? ‘‘

बूढा गणपत करीब अस्सी साल से कम के ना रहे होंगे.. रुई कि तरह सफेद बाल, आंखों पर मोटे लेंस का चश्मा-धोती और सफेद कुर्ते में वो बेंच के किनारे ऊंकडूं हो कर बैठे थें। चश्मे को ठीक करते हुए बेहद फुस्फुसाती हुई आवाज में बोले-‘‘ कौन नीरज.. तुम आ गये क्या... ??‘‘

रोहित भी उनके बगल में जा बैठा - ‘‘ये नीरज कौन है, बाबा.. ??‘‘

‘‘ तुम नीरज नहीं हो, ..तो नीरज कब आयेगा..?!.. क्या तुम उसके दोस्त हो.. ?? ‘‘ बूढ़ा गणपत बहुत धीरे-  धीरे फुस्फुसाती हुई आवाज बोल रहे थें..

‘‘चाय पियेंगे.. ??‘‘ रोहित का दिल डूबने लगा... !!

बूढा कुछ नहीं बोला.. रोहित ने बगल वाले लड़के को आवाज दी.. लडका दो  कप चाय ले आया..

 उन्होंने चाय के कुल्हड को अपने दोनों हाथों में फंसा  लिया.. फिर, वो फुस्फुसाती हुई आवाज में बोले - ‘‘पिछले महीने अपने इलाज के लिए यहां अपनी  बेटी और दामाद के यहां आया था..!!  वो यहां दिल्ली में ही कहीं रहते हैं मुझे नहीं पता.आज यहां मंदिर के पास  नीरज और, रेणु ने बिठा दिया, यह कहकर कि वो थोड़ी देर में आकर उन्हें ले जायेंगे..लेकिन, सुबह से दोपहर  हो गयी वो अब तक नहीं आये.. मैं बूढा आदमी आखिर, कब तक उनका इंतजार करुं..?? पता नहीं वे कब तक आयेंगे..‘‘

रोहित ने जो अनुमान लगाया था। वो बिल्कुल सही निकला। बूढ़े गणपत को वो लोग मंदिर परिसर में छोड़कर भाग गये थें।

‘‘घर कैसे जायेंगे.. ?? ‘‘ रोहित ने पूछा लिया

उन्होंने जेब से एक बहुत पुरानी डायरी निकाली और, रोहित की तरफ बढाते हुए बोले -  ‘‘ थोड़ा और देख लेते, हो सकता है नीरज और रेणु लौट आयें.. इस डायरी में मेरा इंदौर वाला पता लिखा है...  ! ‘‘

रोहित ने गौर, से डायरी खोलकर देखा.. उसमें इंदौर वाला उनका पता टूटी- फूटी हिंदी  में लिखा हुआ था।  रोहित को मंदिर परिसर में आये दो धंटे से ज्यादा हो गया था.. लेकिन, रोहित को गणपत बाबा का कोई शुभचिंतक वहां नहीं दिखा..

रोहित ने ‘‘अभी उम्मीद बाकी है‘‘ के (एन. जी. ओ.) वाले अपने मित्र शुभम को फोन किया। सारी घटना उनको विस्तार से  बताई. शुभम ने आश्वसत किया वो दो घंटे में आ रहा है।

 बूढा गणपत फिर, धीरे से बोले - ‘‘तुम्हें क्या लगता है, नीरज और रेणु आयेंगे... ?? ‘‘

रोहित कुछ बोल नहीं पा रहा था।

वैन, आ गई थी। सारी औपचारिकताएं पूरी की गईं..

बूढा गणपत वैन में बैठ गये थें। रोहित ने उन्हें इंदौर भेजने का  एन. जी.ओ. के जरिये व्यवस्था कर दिया था..

रोहित ने बूढ़े की आंखों में झांका। बूढ़े गणपत की आंखें डबडबाई हुई थीं। वे फुस्फुसाती आवाज में धीरे से बोले -‘‘ तुम इस दुनिया में एक फरिश्ते की तरह हो. मैं तुम्हें नहीं जानता। मेरे सगे वाले लोग मुझे छोडकर चले गये। तुमने मुझे मेरे घर भेजने की व्यवस्था कर दी। मैं तुम्हारा ये एहसान कैसे चुकाउंगा... समझ नहीं पा रहा हूं.. तुम मेरे पोते के जैसे  ही हो.. दुख है कि तुम्हारे जैसे लोग इस दुनिया में बहुत कम बचे हुए हैं। कभी इंदौर आना तो मेरे पास जरूर आना... अच्छा अब चलता हूं.. ‘‘

रोहित ने झुककर बूढ़े गणपत के पांव छू लिये.. बूढा गणपत फूट फूट कर रोने लगा।

रोहित... ने बूढ़े को सहारा देकर वैन में बैठाया..!! वैन

धीरे- धीरे आंखों से ओझल हो गई...

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