गीत
भीगा मौसम
खेत और बुधनी दोनों को
भिगो रहा बरसाती पानी
महक उठ रही इतनी सोंधी
झूम रहे हैं महुवा छानी
भीग रहे हैं तन मन दोनों
भीग रही है झीनी साड़ी
गीले सारे ताल तलैया
फिसलन वाली हुई पहाड़ी
देख रहा छिप छिप कर सूरज
नटखट बूँदों की मनमानी
अंगड़ाई बेचैन लग रही
खुला बन्दिशों का हर ताला
नजर आ रहा है बूँदों में
हर बादल का उजला काला
भली लग रही है निगाह को
चंचल पुरवा की नादानी
गले मिल रहे महुवा जामुन
किस्से जिनके नेक रहे हैं
पंछी बने जहाज फिर रहे
भीगा मौसम देख रहे हैं
सूख रही थी हरी हो गई
रंग -बिरंगी प्रेम कहानी
माटी में सोना
उलझ गया सावन बुधनी में
नमक भरा है, घोल रहा है
बहक गया पुरवा का झोंका
भीगा बदन टटोल रहा है
पौध धान की भीग रही है
खेत, मेड़ सब पानी - पानी
लेकिन वो परदेश बस गये
कौन सुनेगा राम कहानी
मौसम इस किताब का पन्ना
धीरे - धीरे खोल रहा है
बदली झूले पर सवार है
बादल उसे ढ़केल रहे हैं
मेढ़क और मेढ़की मिलकर
खेल पुराना खेल रहे हैं
दूर कहीं रो रहा पपीहा
पिया - पिया ही बोल रहा है
शिथिल हो रहे एक - एक कर
गढ़े अनगढ़े सारे बन्धन
माटी में सोने के जैसा
परत दर परत भीगा यौवन
मन पीपल के पात सरीखा
झिझक छोड़कर डोल रहा है
सूर्य प्रकाश मिश्र, वाराणसी, मो. 09839888743