अतीत की धार के साथ बहते हुए

            शख़्सियत

    डाॅ. अवध बिहारी पाठक, सेवढ़ा, जिला दतिया, म. प्र., मो. 9826546665

   जगजीत सूद, लुधियाणा

मानव जीवन; हाँ जिन्दगी एक बड़ी अजीब शै है कुदरत की, जो इसे विराट मात्रा में जाने कितना कुछ बिना मांगे दे जाती है, और फिर उतनी ही बेरहमी से छीन ले जाती है और हम बकौल गीत कार नीरज, हताश खड़े रह कर उसके जाने का गुबार देखते रहते हैं। इसी क्रिया प्रतिक्रिया में सामने होता है एक विशाल घटाटोप, जिसे संसार कहा जाता है। मैं जगजीत सूद लिखित आत्मकथ्य ‘आज कुछ मेरी सुनो’ नामक पुस्तक से गुज़रा, जिसमें रहस्य, रोमांच, सांसारिक क्रिया व्यौपारों का संतुलित निर्वाह सद्विवेक पुंज, आदर्श नैतिकता-उत्कट जिजीविषा, उच्च कोटि के नैतिक आदर्श हैं। इसे अन्तरात्मा का अन्र्तपाठ कहा जाए या कोमल मन की विचलन का भावुक अतिरेक या फिर आयरनी संकल्पों का दुस्साहसी अंगीकार।

आत्म स्वीकृतियों की बयार: समय की लम्बी दौड़ में अक्सर मनुष्य का विवेक सम पर नहीं रह पाता, परंतु जगजीत सूद ने जीवन का एक आदर्श अन्र्तवृत्त ही रच डाला जो प्रेरणास्पद है उनकी संतुलित समझ के कुछ स्थल दर्शनीय हैं। किशोर अवस्था के बावजूद पिता की दूसरी शादी करने में असहमति, अध्ययन पूरा कर घर के व्यवस्थित कारोबार के भरोसे न रह कर स्वयं के प्रयासों से नौकरी में लगना, कंपनी और सहयोगियों का विश्वास अर्जित करना, अपने नियोक्ता की टिप्पणी पर नौकरी छोड़ देना और नियोक्ता द्वारा क्षमा मांगने पर भी न जाना, स्वाभिमान की रक्षा करना पिता की सहमति से ही विवाह करना, पत्नी के समक्ष एक आदर्श पति के रूप में खुद को स्थापित करते हुए दायित्वों का निर्वाह और पत्नी को बराबरी का दर्जा देना। जरूरतमंद ठेकेदार को आपत्ति में उसके पैसे लौटा देना जैसे प्रसंग सूद साहब को असामान्य अति विशिष्ट व्यक्तित्व का धनी होना सिद्ध करते है।

कर्तव्य परायणता, सैद्धान्तिक निष्ठा और समर्पण भाव जगजीत की सोच को सदैव प्रभावित करते रहे। पारिवारिक एवं सामाजिक स्तर पर इन्हीं गुणों से उन्हें अपनी कंपनी और व्यापार में बहुत सम्मान मिला। पिता की मृत्यु के बाद माँ को माँ जैसा ही आदर दिया, पत्नी कमल से पहले दिन की भेंट जैसा समचित एकीकृत दाम्पत्य मान बना रहा, बीमारी में देश विदेश के उपचार दवाईयां उपलब्ध कर्राइं जो सामान्य परिवारों के लिए कम ही मिल पाती है; बड़े धैर्य और साहस से कमल की अन्तिम क्षण तक सेवा की जो भारतीय समाज-परिवारों में कम ही दिखती है और फिर कमल की मृत्यु के बाद भी कमल की हर क्षण उपस्थिति महसूस करना उनके प्यार और समर्पण भावना को गहरा करता है। अन्यथा भौतिक सुविधाओं से सपन्न बेटे और बेटी के प्रति कर्तव्यों से मुक्त दशा में कमल की अनुपस्थिति उनको एक दूसरा रास्ता भी दिखा सकती थी और वह पिता द्वारा अंगीकृत इतर रास्ते पर चल सकते थे परंतु वह नहीं हुआ। कारण है अपनी पत्नी कमल के प्रति देह से हट कर वह प्रेम जो परमात्मा का सच ही होता है इसी से इन्होंने पत्नी कमल को पत्नी, प्रेयसी, मित्र और सर्वस्व माना जैसा कि हिंदी के प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंद पंत ने पत्नी के लिए कहा था ‘‘मां है कि सहचरि प्राण’’ अवांछित अनागत, पत्नी कमल के स्वार्गारोपण को धैर्य पूर्वक स्वीकार किया। पुरुष को समाज में हमेशा स्त्री शोषक होने का तमगा मिलता रहा परंतु सूद साहब ने इस मान्यता को कमल को हर मामले में बराबरी का दर्जा बल्कि ‘‘उन्हें कुछ बढ़ कर’’ सम्मान दिया। आज के क्षण आवेषित दाम्पत्य में अपने अहं को पत्नी में तिरोहित करने वाले ढोंगियों को सूद साहब से सबक लेना चाहिए। सूद साहब का प्यार कबीर के ढाई अक्षर वाला प्यार है जिसमें पत्नी में ही नहीं सारी समिष्टि में उन्हें वही प्रेम दिखाई पड़ता है। आज फलतः सब समय वे समाज कल्याण में लगे रहते हैं। सूद साहब वस्तुतः विस्तीर्ण हृदय पटल पर लिखा प्रेम का एक प्रमाणित दस्तावेज सा है जो आगे की पीढ़ियों का एक आदर्श बन सकता है।



कमल के संकल्प और संकल्पों की कमल: कमल जी को अपने कृतित्व पर बड़ा मज़बूत विश्वास था, उनके कुछ संकल्प रहे पति के प्रति कल्याण कामना यहां तक कि अपनी चिकित्सा में मंहगा उपचार कराना शामिल था। अपनी सीमा में निजता और स्वाभिमान की रक्षा में यह कहना कि मेरे पति जो देंगे उसे ही स्वीकार करूंगी कह कर बाहरी सहायता न लेना। घर के फर्नीचार को ही ठीक कर उपयोग में लाना इसके उदाहरण रहे हैं। घर, बाहर अजातशत्रु लोगों को उपहार दे कर खुशियों बांटती थीं। हर किसी के लिए मदद को तैयार रहती थीं। इससे वे समाज में लोकप्रिय थीं। स्त्री धात्री होती है परंतु ईश्वर ने उसे एक स्त्री शक्ति भी दी है कि वह अपने व्यक्तित्व का एक पृष्ठ समाज, घर, परिवार, पति, बच्चों से भी छिपा कर रखती है परंतु कमल जी का व्यक्तित्व का हर पृष्ठ हर कर्म, समाज, परिवार के लिए खुला था। इससे वे सहजता की सीमा लांघ गई थी। ईश्वर की सत्ता को उन्होंने गायत्री मंत्र को मन में स्वीकार किया हुआ था। उनकी सरलता से उनके संकल्पों के कमल खिल रहे हैं। बेटी, बेटा, बहु, नाती, पोतों से समपन्न रही उनकी बगिया के कमल खिल कर खुशबू फैला रहे हैं। ‘कमल कुटीर’ की वो 

आधारशिला है, यह देहरी अब भी उनकी उपस्थिति महसूस करती है। ऐसी अनंत की यात्री कमल जी को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि।


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य