कवि तुम अमर हो
कवि तुम अमर हो
लिखते
रहे पुरषार्थ की कलम से
किताबों
के हर सफे पर
जिंदगी
के हर फलसफे पर
तुम
अमर हो-एक सिपाही बन कर-
सपनो
के गांव में
पेड़ों
की घनी छांव में
पक्षियों
के कलरव में
सखियों
के अपनत्व में
तुम
अमर हो-एक कहानी बन कर-
तुम
ही बंशी की तान में
राधा
के प्राण में
लहरों
की मौज में
सागर
की गोद में
तुम
अमर हो-श्वेत, धवल मोती बनकर-
भवरों
की गूंज में
वन
में उपवन में
फूलों
के रंग में
तितलियों
के संग में
तुम
अमर हो-महक बनकर-
तुम
हर जगह,
धरा
के कण कण में प्रकाश लिए पहुंचे
शब्दों
के पिटारे संग हर शय में
तुम
अमर हो-किरनों के सरताज रवि बन कर-
अमर
थे,
अमर
हो,
जब
तक रहेंगे चांद, सितारे
अमर
रहोगे इतिहास में
कवि
तुम-स्वर्ण अक्षर बन कर-
(जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि)
अरूणा शर्मा, दिल्ली, मो. 9212452654