‘‘सृजनशील युवा मन की अभिव्यक्ति का अभिनन्दन’’

   डाॅ. योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’, रूडकी, मो. 9412070351

 


  ऋषि सचदेव, मो. 9837241310

मुझे सुखद आश्चर्य हुआ जब प्रिय ऋषि सचदेव के काव्य-संग्रह ‘‘अभिव्यक्ति‘‘ की फाइल मुझे इस निवेदन के साथ मिली कि मैं इन कविताओं को पढ़कर अपनी सम्मति ‘‘भूमिका‘‘ के रूप में लिख दूँ! प्रिय ऋषि सचदेव मेरे जन्म-स्थान कनखल, हरिद्वार से सम्बंधित है! सच यह है कि प्रिय ऋषि की बुआ डॉ. स्वराज सचदेव मेरे साथ बी.ए में पढ़ी हैं और इसके ताउजी स्व. श्री मोहन लाल जी सचदेव हरिद्वार के प्रतिष्ठित एडवोकेट और समाजसेवी रहे हैं! जब मैंने प्रिय ऋषि की कविताओं को पढ़ना शुरू किया तो अनायास ही मेरी यादों में मेरा अतीत किसी सुखद फिल्म की तरह दौड़ने लगा और मुझे लगा कि जैसे मेरे गुरुजनों स्व श्री हेमचन्द्र जी पन्त ने डॉ हरिराम आर्य इंटर कोलेज,मायापुर, हरिद्वार और स्व श्री आर पी कुर्ल, पन्नालाल भल्ला इंटर काॅलेज, हरिद्वार ने मुझे प्रोत्साहित किया था, वैसे ही मुझे आज युवा कवि प्रिय ऋषि सचदेव की इन कविताओं पर अपनी सम्मति देनी है, ताकि मैं गुरु-ऋण चुकाने के साथ माँ शारदा की साधना में लगे एक युवा रचनाकार का अभिनन्दन कर सकूँ!

महाकवि जयशंकर प्रसाद ने कहा है-‘‘कविता करना अनंत पुण्यों का फल है।‘‘ इसका सीधा सा तात्पर्य यह है कि कवि निश्चय ही पुण्यवान व्यक्ति बन पाता है। मैं तो कविता की शक्ति को माँ शारदा का दिव्य ‘वरदान‘ ही मानता आया हूँ। अनुभूति सबके पास होती है, लेकिन उसे अभिव्यक्त कर पाने की शक्ति ईश्वर किसी बिरले को ही देते हैं। मुझे युवा कवि ऋषि सचदेव की इन कविताओं में उनकी छटपटाहट के साथ ही जिज्ञासा की एक प्रबल भावना भी मिली है। ‘‘अभिव्यक्ति‘‘ काव्य संग्रह में आई सभी कविताओं में कवि ऋषि कुछ तलाशना चाहता है, जो अभी शायद उसकी पहुँच से परे है।

कवि ऋषि की कुछ कविताएँ, जैसे ‘‘निःशब्द‘‘, ‘‘वक्त‘‘, ‘‘पत्थर‘‘ और ‘‘दर्द अब सहा नहीं जाता‘‘ के साथ ही ‘‘एक दिन और जिया‘‘ ऐसी भावपूर्ण कविताएँ हैं, जो आपको छू लेंगी और आप कवि की भावनाओं से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। डॉ नगेन्द्र ने तो यही माना है कि जब कोई कवि अपनी अनुभूति को इस तरह की अभिव्यक्ति दे सके कि कवि की अनुभूति हमारी ही बन जाए, तो वह अभिव्यक्ति सफल कही जाती है। मेरी दृष्टि से कवि ऋषि सचदेव की ये कविताएँ सफल रही हैं।

कवि ऋषि की कविता ‘‘अभिव्यक्ति‘‘ की निम्न पंक्तियाँ आप गौर से देखेंगे तो आपको इन में कवि के जिज्ञासु मन की छटपटाहट दिखाई देगी-

‘‘मौन है अभिव्यक्ति मेरी, स्वयं को खोज रही, / मिल जाऊँ मैं खुद ही को अब शेष यही इक आस है! / मौन भाषा को समझ लो, शेष यही विश्वास है!!’’

‘स्वयं‘ की खोज करना कोई साधारण बात तो नहीं है? कोई बिरला ही खुद को खोजने निकलता रहा है और फिर उसी ने सारी मानवता को राह दिखाई है! एक और कविता ‘‘निःशब्द‘‘ में कवि ऋषि ने  बहुत बड़ी बात कही है-‘‘

‘‘निष्कंटक नहीं है राह मेरी, पर जग में हर कोई ऐसा,/ मैं अकेला तो नहीं, जिया पर क्यों निरर्थक जिया? / आज क्यों न पश्चाताप करूँ?’’

इस कविता संग्रह की एक प्यारी कविता है ‘‘पत्थर‘‘, जिसने मुझे भीतर तक छुआ है! आप भी युवा कवि ऋषि के इन शब्दों की गहराई में जाएंगे तो उनकी अभिव्यक्ति की गहराई को पकड़ पाएंगे और उस पर गर्व भी करेंगे-

‘‘पत्थरों के शहर में, / पत्थर के इंसानों के बीच, / भगवान भी मेरा पत्थर का, / अजीब लगता है कभी-कभी, / पर मैं भी पत्थर -सा हो गया!! / नहीं, अब दिल नहीं धड़कता, आंसुओं के बीच, / किसी का भूख से बिलबिलाना, अब रुलाता नहीं मुझे, / नंगा बदन, ठंड में ठिठुरता कोई, अहसास नहीं कराता मुझे, / पत्थर -सा हो गया हूँ मैं, रह रहा हूँ पत्थरों के बीच!!’’

सच कहूं, कवि ऋषि की कई ऐसी कविताएँ मैंने इस संग्रह में देखी और पढ़ी हैं, जिनमें आज के परिवेश की नंगी सच्चाई इस युवा कवि ने शब्दों में सजीव कर दी है! जीवन के अस्सी ग्रीष्म तप चुका हूँ और इतनी ही बरसातों में भीग चुका है मेरा मन, इसीलिए  आज अपने अनुभव से इतना तो मैं कह ही सकता हूँ कि कवि ऋषि में संभावनाओं का हिमालय मैंने देखा है!

अनंत और अशेष आशीषों के साथ मैं अपनी जन्मभूमि के इस युवा रचनाकार का ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ और यह कविता संग्रह ‘‘अभिव्यक्ति‘‘ आपको सौंपता हूँ!

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