इन्सानी नस्ल

 समीक्षा

शिवांश भारद्वाज

जिंदगी के हर पहलू पर निगाहें रखना, उन्हें करीब से महसूस करना, क़िरदारों के साथ हम-आहंग होना, सुगठित वाक्यों में बिना भारी लफ्जों के जाल के हर तस्वीर को अदायगी से पेश करना, ज़मीनी और जात पर गुज़रे एहसासात को रक़म करना, सामान्य जीवन से लेकर रईस घरानों को मंज़रे-आम पर लाना, यथार्थ का चित्रण जो सच्चा आज का यथार्थ है, जिनकी कहानी में आते हैं व्यास सम्मान से सम्मानित नासिरा शर्मा जी हैं।

उनका कहानी संग्रह ‘इनसानी नस्ल‘ जो किताबघर प्रकाशन से 2013 में प्रकाशित हुआ, पढ़ा। तेरह कहानियों का यह संग्रह बहुत अच्छा है। दरअस्ल जीवन के बदलते रंग और इनसानी नस्ल के उथान-पतन की रूदाद का चश्मदीद गवाह यह संग्रह है। हर कहानी एक हक़ीक़त है, मेरे, आपकी सुनी या भोगी हुई हक़ीक़त। ये संग्रह एक आवाज़ है, जो कहानी में अपने विचारों को ढालकर, गायब हो रही इनसानियत का पर्दाफाश करता है, बताता है कि हम कहाँ थे, कहाँ से आए और कहाँ पहुँचे हैं। बताता है कि हम सिर्फ आदमी के आदमी ही रह गए हैं, हाड़-मांस के, हम दरअस्ल इनसान नहीं बन पा रहे हैं। गालिब ने कहा है:-

बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना 

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना 

भाव पक्ष के साथ - साथ कलात्मकता भी इस कहानी संग्रह की विशेषता है। गरीबी जवानी को बुढ़ापे में बदल देती है ‘‘जवान तंबोलन देखते-देखते बूढ़ी लगने लगी।‘‘ और रोटी की ताकत कभी बाँट देती है तो कभी एक कर देती है। रोटी हर धर्म,मजहब वालों को पास बिठा देती है, गरीबी हर दर पर एक-सी बनकर जाती है। और जिन आँखों को कुछ निवालों को देखकर ही चैन आ जाता है, वे कैसे ‘‘पत्तल पर एक साथ कई व्यंजन देख उसे अजीब लगा‘‘ महसूस करते हैं, इन बातों को ‘असली कहानी‘ के माध्यम से बताया है। गरीबी व रोटी से निकलकर बात जड़ता पर ठहरती है। घर की नींव को भूलकर जहाँ दीवारों का ज़िक्र होता है, वो घर तूफान की निगाहों में सबसे पहले आता है। ‘अपराधी‘ कहानी में इनसानी ज़ेहन का द्वंद्व जाहिर होता है। संवेदना सब के पास होती है, प्यार मुहब्बत सब के दिल में है , लेकिन कभी-कभी हालात आदमी को इतने जड़ बना देते हैं कि वे भूल जाते हैं कि दिल भी उनके पास है। ‘‘पुलिस की नौकरी ने उन्हें कितना जड़ बना दिया।‘‘ ‘पाँचवा बेटा‘ कहानी भी मार्मिक कहानी है। कहानी में कभी-कभी कुछ वाक्य ऐसे आ जाते है जो उसे विचारणीय बना देते हैं। अपनी आदत को व्यक्ति हो या कोई और जीव, यूँ ही आसानी से नहीं छोड़ता। ‘‘कौआ चोट खा नीम के पेड़ पर जा बैठा, मगर काँव-काँव नहीं छोड़ी और न अमतुल ने उसको कोसना।‘‘ नासिरा शर्मा जी अभिव्यक्ति की शक्ति को पहचानती हैं। ‘बड़े परदे का खेल‘ कहानी में खोखली अभिव्यक्तियों की ठेस कितनी गहरे तक मस्तिष्क में बैठ जाती हैं, उसे बताया गया है। उस खोखली अभिव्यक्ति से आहत आदमी कह उठता है - ‘‘मैं भावनात्मक रूप से टूटी हुई थी।‘‘ और ‘‘पूछूँ उस भगवान से कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ?‘‘ ‘अग्निपरीक्षा‘ कहानी में ‘सरा‘ जैसी प्रथा पर प्रहार किया है। 

‘मरुस्थल‘ कहानी नई नस्ल के हृदय से शुरू हो कर उन्हीं पर खत्म होने की कहानी है। भले ही बीच में पुरानी नस्ल के किरदार अपनी कहानी में नई नस्ल को लाना चाहें, लेकिन कहानी नई नस्ल के रहस्यों से ही नई नस्ल की होती है। किसी हादसे के बाद के माहौल ‘‘पिछली आँधी में गिरा पेड़ का वह तना आज खाली था।‘‘ से यह कहानी शुरू होती है। और आगे बढ़ती है ‘‘ कहीं पर कुछ टूटा था।‘‘ से होकर अंत में जाती है ‘‘वह सब कैसे हुआ ?‘‘ तक। ‘उजड़ा फकीर‘ कहानी में यथार्थ है। शहरीकरण का असली चित्र प्रस्तुत करती है। ‘‘जिन्दगी उन्हें अपने कोल्हू में जोत चुकी थी।‘‘ या ‘‘शहर के अंदर बस शहर अपने पुराने नाम-पते को भूल गया है।‘‘ जैसे मार्मिक वाक्यों ने कहानी की भाव-भूमि को बहुत ऊँचा आसमान प्रदान कर दिया है। जीवन की कड़वी सच्चाई इस कहानी में है। यह यथार्थ की बेहतरीन कहानी है। 

भौतिकवाद ने लोगों से संवेदनाएं छीन ली हैं। अहसास ख़त्म कर दिए हैं। ‘‘अहसास का साझा आँगन जाने कब से सूना हो गया है।‘‘ रिश्तों की नींव हिला डाली है। और इन सब को देखकर ‘‘सुरेश‘‘ जैसा इंसान सोच रहा है - ‘‘ आज के इंसान ने अपने आप में रहना क्यों छोड़ दिया है ? आखिर क्यों वह अपने अंदर की दुनिया को छोड़कर बाहर की बदहवास दुनिया में भटक रहा है ? ‘‘  

गरीबी व औरतों के यथार्थ चित्रण को ‘वही पुराना झूठ‘ कहानी के माध्यम से बताया गया है। गरीबी कल के बारे में चिंतित है और आज से ख़ौफ़ज़दा है। ‘‘एक वह ही है जो तड़प रही हैं कि कल क्या होगा ? ‘‘ गरीबी और लाचारी हर जगह मार खाती है। ‘‘ कहाँ-कहाँ किस किससे बचो।‘‘ और जाहिदा बचती हुई दिल्ली की सड़कों पर न जाने कहाँ गायब हो जाती है, पता नहीं चलता। आगे ‘एक न समाप्त होने वाली प्रेमकथा ‘ भी अच्छी कहानी है। और फिर संग्रह की आखिरी कहानी ‘कनीज़ बच्चा‘ है, यह संदेश दे जाती है कि - आने वाली नस्लों में नफ़रत न हो। 

और इनसानी नस्ल कहानी के माध्यम से पूछ रहा है कि ‘‘यह युद्ध, यह मनमुटाव क्यों?‘‘ 

एक पक्ष मैं नासिरा शर्मा जी की कहानियों का यह रखना चाहता हूँ कि नासिरा जी की कहानियों में प्रकृति का चित्रण और प्रतीकों का साथ-साथ आते हैं। लेकिन खास तौर से प्रकृति का चित्रण हर कहानी में है। उदाहरण - ‘अपराधी‘ कहानी में ‘‘राम मनोहर त्यागी का मन-मस्तिष्क बहुत हलका था, जैसे पत्ते पर ठहरी ओस की बूँद। ‘‘ ‘बड़े परदे के खेल‘ कहानी में चित्र पेश है - ‘‘ आँखों अधिक गहरी और होंठ धीरे-धीरे काँप रहे थे। ‘‘ ‘मरुस्थल‘ में भी प्रकृति का वर्णन मिलता है। लेकिन सबसे बेहतरीन प्रकृति चित्रण, जिसमे प्रकृति का पूरा का पूरा मंज़र आँखों के आगे आ जाता है, वह है ‘जोड़ा‘ कहानी। प्रकृति का ज़ोरदार चित्रण है और साथ में जिस उद्देश्य से यह कहानी लिखी गई है, वह भी पाठकों के सामने आ जाता है। 

‘इनसानी नस्ल‘ कहानी संग्रह में इनसान की हर नस्ल का चित्रण बेहतरीन तरीके से हुआ है। 

-दिल्ली, मो. 8802358838


नासिरा शर्मा जी के चर्चित एवं महत्त्वपूर्ण उपन्यास

उपन्यास:

  1. ‘सात नदियाँ एक समन्दर‘ (1984) ईरानी क्रान्ति पर लिखा विश्व का पहला उपन्यास
  2. ‘शाल्मली‘ (1987) स्वतन्त्रता के बाद वजूद में आयी वह महिला तो वैचारिक स्तर और मानवीय मूल्यों से 
  3. परिपूर्ण सामाजिक दृष्टि रखती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम और बराबरी पर विश्वास रखती है।
  4. ‘ठीकरे की मँगनी‘ (1989) स्वतन्त्रता के बाद वजूद में आयी वह लड़की जो अपने संघर्ष और मेहनत से यह साबित करती है कि औरत का एक घर और होता है जो उसके पिता और पति के अलावा उसकी अपनी पहचान का होता है।
  5. ‘ज़िन्दा मुहावरे‘ (1992) भारत के बँटवारे के बाद का समाज। 
  6. ‘अक्षयवट‘ (2003) इलाहाबाद के परिवेश को उठाते हुए विश्व के महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर लिखा गया महत्त्वपूर्ण उपन्यास।
  7. ‘कइयाँजान‘ (2005) जल समस्या पर लिखा हिन्दी का पहला उपन्यास जिसमें इस विचार को उठाया गया है किस तरह इन्सानी रिश्ते शुष्क और पानी का स्तर नीचे जा रहा है और बहुत सम्भव है कि स्वच्छ पानी को लेकर तीसरी जंग वजूद में आ जाये।
  8. ‘ज़ीरो रोड‘ (2008) कमाने के लिए विदेश गये जवानों के जीवन पर आधारित, जिसमें भारत और दुबई का परिवेश उभारा गया है।
  9. ‘पारिजात‘ (2011) लखनऊ और इलाहाबाद की जमीन पर बना गया ऐसा उपन्यास जो हुसैनी ब्राह्मण और अवध की गंगा-जमुनी संस्कृति को दर्शाता इन्सानी रिश्तों की महिमा का बयान करता है।
  10. ‘अजनबी जज़ीरा‘ (2012) इराक़ के परिवेश पर लिखा ऐसा उपन्यास जो राजनीति और युद्ध के भयानक समय में, आर्थिक नाकाबन्दी से जूझते इन्सानों की दर्दनाक को लिए हुए है।
  11. ‘कागज़ की नाव‘ (2014) मध्यपूर्व की तरफ कमाने जानेवाले लोगों की मानसिक पीड़ा का दूसरा रुख जिनके जाने के बाद उनके परिवार कैसे रहते हैं और किस तरह के दलदल में अपने को घिरा पाते हैं।
  12. दूसरी जन्नत (बाँझ औरतों की समस्या व नई मेडिकल तकनीक)
  13. शब्द पखेरु (साइबर क्राइम)
  14. अल्फा-बीटा-गामा (देसी कुत्तों व इन्सानी रिश्ते)

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