कलात्मक अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध और जिन्ना नाटक


   डाॅ. अनिता, नई दिल्ली, मो. 9811126554

जून 2005 को राजधानी के इंडिया हैबिटेट सेंटर में अस्मिता थियेटर द्वारा जिन्ना नाटक का मंचन होना था। मंचन से एक दिन पहले, दिल्ली पुलिस ने इसकी स्क्रिप्ट मांगी। स्क्रिपट में किसी भी तरह के आपत्ति जनक तथ्य नहीं मिले, बाबजूद इसके नाटक को ‘स्थगित‘ कर दिया गया। इस संबंध में पुलिस का तर्क था कि आईएचसी ऑडिटोरियम का लाइसेंस समाप्त हो गया था। साथ ही यह भी कि जिन्ना के प्रति भारतीय जनमानस में नकारात्मक सोच है, उनके विरोध को ध्यान में रख सार्वजनिक सुरक्षा के लिए ये कदम उठाये गए। पर जिन्ना नाटक में ना तो राजनीतिक सवाल है ना ही जिन्ना की छवि को पाक साफ साबित करने की कलात्मक कोशिश है। रचनात्मक स्वतंत्रता पर ऐसे हमलें लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए भयावह स्थिति के सूचक हैं। इस संदर्भ में अस्मिता थियेटर ग्रुप के निर्देशक अरविंद गौड़ का कहना हैं कि यह राजनीतिक चित्रण नहीं है, केवल पटकथा जिन्ना के निजी जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। फिर भी मात्र विरोध या विवाद की आशंका से नाटक के मंचन  पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

इस तरह की घटना पहले भी होती रही है। इससे पहले विजय तेंदुलकर के सखाराम बाइंडर और घासीराम कोतवाल और विजय आप्टे के एमआई नाथूराम गोडसे बोल्तॉय का मंचन बंद कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि‘ जिन्ना‘ नाटक की कथा- वस्तु उस शख़्स को केन्द्र में रख कर बुनी गयी है जिसे विभाजन का कारण और पाकिस्तान का निर्माता माना जाता है। वहीं ‘नाथूराम गोडसे स्पीक्स‘ नाटक में गोडसे दक्षिणपंथी हिंदू के नजरिए से विभाजन की प्रक्रिया की परख करता है और जिसमें गांधी की हत्या करना उसके लिए जरूरी हो जाता है। दोनों व्यक्ति चरम सांप्रदायिक राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिन्ना बौद्धिक क्षमता संपन्न करिश्माई राजनीतिज्ञ थे और गोडसे अज्ञात व्यक्ति जिसके एक निर्णय ने कई सवाल खड़े कर दिए। दोनों नाटक में उन तथ्यों का गहन मनोवैज्ञानिक अध्ययन हैं जिन्होने आधुनिक भारतीय इतिहास की दिशा बदल दी। दोनों की एतिहासिक भूमिका सवालिया है, उनके कृत्यों की आलोचना की जा सकती हैं, लेकिन उन पर डिबेट करने से रोकना गैर-लोकतांत्रिक रवैया हैं। पुर्नावलोकन के दौर में इतिहास के तथ्यों की अलग-अलग एंगल से जांच-पड़ताल  करना जरूरी हो जाता हैं। ऐसे में कानून व्यवस्था के नाम पर बौद्धिक स्वतंत्रता पर मनमाने ढंग से प्रतिबंध लगाना खतरनाक है। चूंकि नाटक दर्शक से प्रत्यक्ष संवाद करता है, संवाद की इस प्रक्रिया में दर्शक का रूपांतरण होता हैं। ‌बदलाव की क्षमता ही नाटक को ताकतवर बनातीं है। सरकार सार्वजनिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था भंग होने का खतरा बता कर कलात्मक माध्यम की अभिव्यक्ति का दमन करती रही है।

गौरतलब है कि इतिहास में दर्ज तथ्यों से टकराना जोखिम और चुनौतीपूर्ण काम है। और अगर चर्चा आधुनिक भारतीय इतिहास की, सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी-विभाजन की हो, तो मु्द्दा ओर महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो जाता है। नक्शे पर खींची लकीर ने सदियों से एक साथ रह रहे लोगों की जिन्दगी का फैसला कर दिया। राजनीतिक इतिहास के लिए यह भौगोलिक सीमाओं का निर्धारण मात्र है, जिस में विस्थापितों, लापता और मृतकों की गिनती मात्र है। यह इतिहास की सीमा है, कला माध्यम इस से आगे की संभावनाओं को तलाशता है। आंकड़ों से परे विभाजन की यातना का परत दर परत बयान  साहित्य की अलग-अलग विधाओं में दर्ज है। साहित्य और अन्य कला माध्यम में विभाजन के कारण मानवीय मूल्यों की क्षति से उत्पन्न पीड़ा-बोध और उससे उपजी समझ से नए आयाम उभर कर आए। रचनात्मक माध्यम ने जड़ों से उखड़े, विस्थापित, लूटे-टूटे लाखों लोगों की अंतहीन, अनकही यातना और त्रूरता की दास्तान को ही नहीं, प्रत्युत इन हालत के लिए जिम्मेदार राजनेताओं- जिन्ना, नेहरू, पटेल और माउंटबेटन को भी बहस के दायरे में रखा। पर भारतीय भूखण्ड के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना की छवि आधुनिक इतिहास में सर्वाधिक विवादास्पद है। भारतीय दृष्टिकोण से जिन्ना ने अपने व्यक्तिगत उद्देश्यों, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और नस्ल वादी सोच के कारण अखंड भारत को टुकड़ों में विभक्त कर दिया। बहरहाल जिन्ना की शख्सियत पर विवाद बनें हुए है।

डाॅ. नरेन्द्र मोहन ने जिन्ना  नाटक के माध्यम से जटिल और उलझे हुए व्यक्तित्व को मानवीय आधार पर तलाशने की कोशिश की है। नाटक ना तो त्रासदी है, ना ही कॉमेडी और ना ही इतिहास या क्रॉनिकल प्ले है। सही मायने में इसे साहित्यिक नजरिए से लिखे आत्मविश्लेषणात्मक ‘जीवनी नाटक‘ के तौर परं देखा जा सकता है जिसमें ऐतिहासिक तथ्यों और मनोवैज्ञानिक आधार का मिश्रण है। नाटककार ने पूर्वाग्रह से मुक्त हो जिन्ना  को जानने-समझने का प्रयास किया है। उस के चरित्र के अलग अलग आयामों-जैसे उसके राजनीतिक लक्ष्य, महत्वाकांक्षा, नस्लवादी हठधर्मिता, विराधाभासी व्यक्तित्व, रिश्तों की टूटन, अन्तद्र्वन्द और मानवीय असफलता की आत्म स्वीकृति को उभारने की कोशिश की है। राजनेता, पति, पिता और मित्र के रूप में उनके चारित्रिक विरोधाभास खुलकर सामने आते हैं। रत्ती को टूट कर प्रेम करने वाला संवेदनशील प्रेमी और विवाहापरांत अपने राजनीतिक सपनों को पूरा करने की जिद्द में अपनी पत्नी रत्ती और बेटी दीना के प्रति उदासीन राजनेता। इकबाल और शेक्सपियर दोनों को आत्मसात करता दोहरा चरित्र, जो स्वयं पारसी युवती से प्रेम विवाह करता है पर जब उनकी अपनी बेटी दीना पारसी युवक से विवाह करना चाहती है तो वे अपनी सार्वजनिक छवि को ध्यान में रखकर, दीना के पारसी युवक से विवाह के खिलाफ हो जाते हैं। दोहरे चरित्र के कारण उन्हें पारिवारिक अलगाव, अहंकार, भावनात्मक दबाव और राजनीतिक विफलता से जूझना पड़ा। जिन्ना के जीवन को प्रभावित करने वाली तीन स्त्री है- उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षी बहन फातिमा, पारसी पत्नी रत्ती और प्यारी बेटी दीना, पर विडम्बना यह की वह तीनों से अपनी मानसिक उथल-पुथल को शेयर नहीं कर पाते। इसमें जिन्ना ना तो विलेन है और ना ही नायक हैं बल्कि एतिहासिक तथ्यों को बरकरार रखते हुए, मनोवैज्ञानिक आधार पर, उस पृष्ठभूमि  को दिखाया गया, जिसमें जिन्ना जैसी विवादित शख्सियत निकल कर आती है। नाट्य प्रयोग और रंगमंचीय संकेतों की दृष्टि से यह नाटक उल्लेखनीय हैं। मैकबेथ मॉडल के  माध्यम से उसके अपराध बोध को उभारा गया है जिसमें जिन्ना अपनी अंतिम सांस तक रहते हैं।बार बार हाथ रगड़ कर धोने की आदत, शेक्सपियर के नाटक के संवाद, प्रतिशोध की भावनाओं से प्रभावित होना, खून का डर होना-ये सब मैकबेथियन शैली का प्रभाव है। इतिहास के पन्नों से  नाटकीय-संवाद की यह पहल  प्रभावशाली और रोचक है।

जीवन के अंतिम क्षणों में जिन्ना टूटन, पीड़ा और पराजय बोध से ग्रस्त हैं, उसे अपने निर्णयों पर अफसोस है। विभाजन के लिए जिम्मेदार महत्वाकांक्षी व्यक्ति का आत्मस्वीकार, सर्जनात्मक स्तर पर बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उस का पीड़ा बोध ही नाटक की बहुत बड़ी ताकत है। नाटक में नरेन्द्र मोहन ने किसी विचारधारा विशेष का समर्थन या विरोध नहीं किया है। फिर भी इस नाटक के मंचन पर प्रतिबंध लगाया गया। विचारणीय मुद्दा है कि ऐतिहासिक चरित्र की मानवीय असफलता और पश्चाताप की पूर्वाग्रह-मुक्त नाट्य-अभिव्यक्ति कैसे कानून व्यवस्था के लिए धातक हो सकती है। ध्यातव्य है कि ऐसे प्रतिबंध लोकतांत्रिक माध्यम के लिए हानिकारक है।





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