डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310

कविता

ख़ामोशी


ख़ामोशी ने रोक दिया शब्द को

शब्द

स्तब्ध, रुका रहा स्तंभ सा


बना रहता शब्द, यदि शब्द तो

बन गया होता

काव्य, दर्शन

साहित्य व संगीत

या फिर

त्रास, रुदन वेदना संताप

मगर

ख़ामोशी ने तो

ख़ामोशी में ही

सुन लिया था

उसका वह

झंकृत अनंत नृत्य नाद, और

देख लिया था, उसका

संसार भव्य और विस्तार



Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य