डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
कविता
आज धूप नहीं निकली
कोहरे की चादर लपेटे
सुबह दुबकी हुई बैठी है
ओस की नमी से दबी दूब
ठंड से ठिठुर रही है
पेड़ खड़े है चुपचाप, शायद
किसी अपने के इंतज़ार में
जो कि बस पहुँचे बस पहुँचे
मगर पहुँचे नहीं हैं अब तक
फूल भी आँखे मूंदे पड़े हैं
जैसे अभी जगे ही नहीं है
मगर, कुछ तो,
शिकायत में हैं चुप
पूछने को हैं
कि सुबह क्यों नहीं हुई अब तक
मैं हैरान हूँ
देख कर यह सब, कि
बोलते नहीं हैं ये कुछ भी
मगर
कहते बहुत कुछ हैं
अलग हैं हम से
मगर बेहतर है हम से
लड़ते झगड़ते नहीं हैं
सिर्फ
दर्ज कराते हैं शिकायतें
मगर
शोर नहीं करते
शोर नहीं करते