डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
कविता
दर्द क्यों ठहर गया
सौंदर्य का जमावड़ा
जमा रहा इर्द गिर्द
मगर
धीरे-धीरे निस्तेज होता रहा
फूल खिलते रहे
मगर
सूखते रहे,
और गिरते भी रहे
सुबह सवेरे
कोहरा जमता रहा
ओस गिरती रही
और
सुबह ढलती रही और शाम भी
वर्षा आई, बरसी
चली गई
सब ऋतुएँ यूँ ही आयीं
मगर
चली गईं
नीड़ में बैठा पंछी
गाता रहा
मगर
कब, चला गया, लौटा ही नहीं
नदी बहती रही
दूर, दूर बहुत दूर
और
ऐसा लगा, कि बस
चली गई
मगर
दर्द क्यों ठहर गया
क्यों ठहर गया