स्मृतियाँ
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
कविता
स्मृतियाँ
वह जादूभरी स्मृतियाँ
संभाली हुई हैं मैंने
रखी हैं छुपा छुपा कर
कभी साड़ियों के पीछे, कभी
श्रृंगार पिटारी में बिछे कागज के नीचे
कुछ खत कुछ सूखे फूल
यादों के सुनहरी रुमाल में लपेटे है
एक करण फूल की जोड़ी
जो दिलवाई थी तुमने मेले में
वह मैंने
उसी मेले के एहसासों में
बांध रखी है
गूँजता है वही बार बार
मेरे कानों में तेरा कुछ कहना, मगर
जो तुमने कहा
वह
वह तो समय ने निगल लिया है
लेकिन
उसकी ध्वनि मैंने
अपनी साँसों में समेट रखी है
तुम ने जब मेरे दुपट्टे के
पल्लू से
हाथ पोंछे थे
और कहा था
क्यों करती हो
एक दुप्पटे का इतना फिक्र
हजार दुप्पटे तुम पर कुर्बान
मैंने वह स्मृतियाँ
उन कुर्बानियों के सायों में
लपेट कर रखी है
जिन्हें मैं मिलती रहती हूं
और
जीती रहती हूँ