डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
कविता
मैं पत्ता हूँ
चलो माना
मैं फूल नहीं
पत्ता हूँ
मगर
पत्ता ही तो
सजाता है फूल को
संग रह कर मान बड़ाता है
मुरझाने से बचाता है
पत्ता
ढाल है फूल की
साथी भी है सलोना
बन जाता है कभी
उसकी गोद
तो कभी पालना
पत्ता
जूझता हवाओं से
मिट्टी से जल, सूर्य से रोशनी
बटोरता
गुप छुप गुप छुप
खाद बनाता, उसे खिलाता
रिझाता यह पत्ता ही तो है
जो पालता है फूल को
मगर फूल,
यूँ ही इठलाता, मगरुर सा
भूल जाता कि
वह ऋणी है किसी और का
हक से ले लेता है
पोषण स्नेह अनुराग
सानिध्य और सत्कार भी
नहीं लौटाता
किसी अपने का प्यार भी
फूल मुरझा कर गिर जाता है
मिट्टी में मिल जाता है
पत्ता
फिर से बाट जोहता है
फूल की