कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
धरती ने सूर्य से कहा
क्यों चले जाते हो रोज़
बना कर
मेरे दिन को रात
मुख तुम्हारा देख कर
देखो
कैसे मैं खिल जाती हूँ
मैं ही क्यों
मेरी हरियाली
पेड़ पौधे, पत्ते और फूल
हवा मिट्टी और पानी
हो जाते हैं
सभी सजग, उदित और प्रसन्न
सह जाते उष्णता तेरी
फिर भी करते तुझे प्रणाम
सूर्य बोला,
कितनी भोली हो तुम
तुम्हें छोड़ कर कहाँ जाता हूँ मैं ?
देखी होगी तुमने मेरी
पश्चिम में ढलती लाली
दे जाती है जो
तुम को
एक शीतल
तारों भरा विराम
कर सको जिसमें तुम
थोड़ा सा विश्राम
सच बताऊँ
मैं नहीं जाता कहीं भी
तुम ही घूम जाती हो
रूठ कर
मुख मोड़ लेती हो
मगर
मैं रहता हूँ वहाँ
छोड़ कर जाती हो जहाँ
फिर
तेरे ही आग्रह पर
हो जाता हूँ प्रकट
होते ही प्रभात