कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
तेरा शहर
बहुत भीड़ है
तेरे शहर में
खूब सजे हैं बाजार
ठाठ बाठ है बहुत
भरी ऊँची दुकानों में
हो रही है जम कर
खरीददारी
सजी महिलाएँ
रौबीले मर्द
हँसते खेलते बच्चे
मस्ती में हैं मस्त
कोई पैदल तो कोई
है स्कूटर पर सवार
लंबी लाइनों में रेंगती हैं
रंग बिरंगी कारें
यूँ लगता है
समृद्धि ने अपने
सुनहरी पंख फैलाए हैं
मगर
कोने में एक बूढ़ी औरत
खड़ी है लिए कुछ
बेचने को गुब्बारे
रेड लाइट पर रुकती हैं जब कारें
भूख के हवाले से
बच्चे
पोछतें है शीशे कारों के
मांगते हैं पैसे
फुटपाथ पर बैठा है
बूट पालिश की पेटी लिए कोई
रोजी रोटी की आस में
ऐसा क्यों है कि
कोई है इतना समृद्ध, तो कोई
इतना लाचार
प्रश्न चिन्ह
चस्पा है
निजाम के द्वार पर