कविता

डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310


लम्हात


लम्हात

लाते रहते हैं

अपने साथ

मद्धम सी खुशी

थोड़ी सी नाउमीदी, और

कुछ रंजिश


हम डरते रहते हैं

अपने आज से

पस्त होते रहते हैं अपने मुस्तकबिल से

और

मुड़ मुड़ कर घूरते रहते हैं

अपने माज़ी को


हम ढूँढ़ते रहते है

उन जादूई लम्हात को

जो हम जी तो रहे होते है

और

अनजाने में हम खो भी रहे होते हैं


नहीं कह पाते इक दूजे को

ना ही सुन पाते हैं वह

जो कहना, सुनना चाहते हैं


क्यों कि

इन खुशनुमा लम्हात में भी हम

उस दर्द को


बूँद बूँद रिसते देखते रहते है

जो होता है कभी

और नहीं भी


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