कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
तलाक
‘‘तलाक, तलाक, तलाक कह कर
नहीं दिया जाएगा तलाक’’
संविधान ने रोक लगा दी
दंभ खड़ा
कोने में लेकिन
सब कुछ देख रहा था
चुपके चुपके लगा उधेड़ने
ताना बाना
जोड़ों के जीवन का
वे सब भूल गए थे, कि
जब जब
अनुभव के गंदले पानी को
खंगाला जाता है
तब तब
कुछ कुछ
मीठा, खट्टा, खारा, कड़वा
सामने आ जाता है
मिले हमेशा मीठा मीठा
यह कब कहाँ होता है
रूप बदल कर दंभ यह बोला
‘‘मैं नहीं आता बीच तुम्हारे
गर
कड़वे को तुम
विष समझ कर देते त्याग, और
चख लेते खट्टे खारे को
बदल लेने को स्वाद
मीठे को तुम प्रेम से तब
बांट बांट कर पी लेते
सच मानो
बच जाता तुम्हारा
ताना बाना
और जीवन का छप्पर
बच जाती बढ़ती फसलें
और बना रहता परिवार
सह जाते गर
इक दूजे के
छोटे मोटे अवगुण
नहीं होता तब कभी
यह अभिशप्त तलाक