कविता

डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310

वह शाम


वह शाम जो हुआ करती थी


सेहन के छिड़काव के साथ, जो

अंगड़ाई लिया करती थी


हवा,

पहले धीमे धीमे फिर

ठुमक ठुमक कर चला करती थी


तल्ख़ी मौसम की या

हालात की

मन की खीज या

आँख भरी उदासी

झटक कर हाथ छुड़ा लेती थी


वह शाम गुज़्ारती थी

इंतज़्ाार में

किसी के आने की या

किसी को साथ ले जाने की

हाथों में हाथ लिये

साथ ले जाने की

बिना बात किये बतियाने की

कुछ कहने की

कुछ सुनने की

वह शाम जो हुआ करती थी


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