कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
ढूंढने आई हूँ
उसकी असीम व्यथा
ध्वंस हो गया, जिसका घर
बमबारी में
टुकड़े टुकड़े हो गए,
चीथड़ों की तरह उड़ गए उसके सामने
उसके अपने...
बंजर जमीन को घूरती
लाचार माँ की आखें
जहां कभी
उसका अपना घर था....
गोलियों बमों में दहाड़ती पिशाचों की आवाज़ें
जान बचाने की खातिर, भागते
लोगों की चीखोंचिल्लाहट
और
वह भयावह आग की लपटें
अब नहीं झेल पाई
तो मैंने
वह व्यथा, लाचारी, चीखोंचिल्लाहट
वह वहशत, वह बरबादी, और वह आग की लपटें
रेते के गर्भ में दबा दी, और शायद वहीं
अपने जीने की उमंग को भी...
आज उसे ही
ढूंढने आई हूँ...