कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
सपना
सुंदर, सजीला
सौंदर्य से लबालब
लावण्य से पूर्ण,
सलोना
मैंने देखा है इसे, कभी बंद तो कभी
खुली आँखों से
उल्लास से भरा
खिलखिलाता,
आशा का आंचल
लिपटाए
विचरता हर ओर
हो कर विभोर
हां
कभी डबडबाता
फिर यकायक मुस्काता
फिर आंखों अी आंखों से
मेरा ढांढस बंधाता
न घबराता, न टूटता
न आंखों से बहता
बस ठना रहता
क्या हुआ
जो नहीं, हुआ है पूरा,
पर नहीं वह समझता
खुद को अध्ूारा
बना रहता संबल, और
सबब
जीने का
मेरा स्नेही,
अपना
मेरा बंधु
सपना