कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
बोल
बोल
बोले नहीं
कभी घेर कर ले गए
बादल इन्हें
तो कभी बिजलियां डरा गईं
कभी भीगे जो बरसात में, तो
सहम गए, फिर
कुछ सोच कर
सकुचा गए; मगर
बोले नहीं
जो कभी टकरा गए
किसी याद से
तो घबरा गए
गुमसुम हो गए
पथरा गए; मगर बोल
बोले नहंी
पूछने को थे
मगर रूक गए
कि कहां रखें हैं संभल कर
वह
वह सपने, वह वादे,
जो ले गए थे साथ अपने
निशानियाँ मेरी समझ कर
मगर, बोल
बोले नहीं
बहुत चाहा था
कि बोल कर
कसम देकर, पकड़ कर हाथ तेरा
रोक लेती
मगर
बोल
कभी थिरकते तो कभी थरथराते रहे
मगर बोले नहीं