कविता : ईश्वर के इतने पास

 

कविता 


प्रकाश मनु

545 सेक्टर-29, फरीदाबाद (हरियाणा), पिन-121008

मो. 09810602327, ईमेल – prakashmanu333@gmail.com


ईश्वर के इतने पास

ईश्वर को

देखा नहीं कभी...

वह कैसा है, कैसा नहीं

कैसी है उसकी बू-बास

ठीक-ठीक नहीं कह सकता।

 

पर ठीक-ठीक कह सकता हूँ कि उस दिन

मैं ईश्वर के पास था

इकदम पास...

कि मैं जब-तब हाथ बढ़ाकर

उसे छू लेता था

और वह मुझे...अपनी नर्म हथलियाँ बढ़ाकर

लपेटता सा चलता था।

 

और मेरा बचपन का दोस्त अनिल उदित...

जो उस दिन बाकायदे मंच पर महागुरु

की भूमिका में अवतरित हुआ

कभी प्रकट...तो कभी गोपन

अपने असली रंग और तासीर में था

हाथों में हाथ दिए,

उसी ने पूरे जोशो-खरोश से ईश्वर से मिलवाया था

पास, इतने पास!

 

यों मैं, ईश्वर और

अनिल उदित...

हम तीनों चप्पल फटफटाऊ दोस्त

तीन लँगोटिया यारों की तरह...

पूरे दिन नापते रहे थे शहर की सड़कें।

 

शहर की प्राचीन गलियों में

पुराने शहर की बास को

युधिष्ठिर कालीन कुत्ते की तरह सूँघते...

मटरगश्ती कर रहे थे तीन औलिया तीन सुकरात।

 

घूम रहे थे, भटक रहे थे कर रहे थे आवारागर्दी

तीन औलिया तीन सुकरात

उस दिन को

अपनी दुनिया के तमाम-तमाम भीड़-भाड़दार

दिनों से अलगाने के लिए।

ईश्वर के बगैर यह न होता

अनिल उदित के बगैर तो और भी नहीं।...

 

और कि मेरी आँखों के भीतर खुलने लगीं आँखें

मुझे नजर आई मेरी इस पपड़ाई बंजर दुनिया के भीतर

छिपी हुई

एक दुनिया...

जो इतनी खूबसूरत, इतनी हसीं और इतनी दूर-दूर तक

फैली है

कि वल्लाह, में क्या कहूँ!

*


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