कविता : रश्मि रमानी
रश्मि रमानी
इंदौर, मोबाइल नंबर 9827261567
दोनों रास्ते खुले थे
सफ़र ज़िंदगी का था
चलना भी ज़रूरी था
रास्ता चुनने की जब बारी आई
दोनों रास्ते खुले थे !
एक रास्ता
चौड़ा-चिकना और विस्तार से भरा था
अपार जनसमूह,
निरंतर कोलाहल और अथाह संभावनाओं का आकर्षण
अपनी ओर खींचता था !
और किसी सम्मोहन के वशीभूत होकर
लोग इस राजमार्ग को चुनते थे ।
फिर एक दिन
भूलभुलैया में भटकते
किसी गहरे तिलिस्म में खो जाते थे ।
दूसरा रास्ता ?
पता नहीं
कैसा तो भी था
न लंबा-चौड़ा
न आकर्षक
न अपार जनसमूह
न भयानक कोलाहल
कोई आकर्षण और
कुछ मिलने की संभावना तो बस
दूर की कौड़ी ही थी ।
पर
ये दूर की कौड़ी ही
बड़ी विचित्र होती है
मनुष्य
बड़े ही आशावादी और
शांत भाव से दूर तक चलता चला जाता है
औरों के बनाये रास्ते पर नहीं
अपनी बनाई राह पर
जो
कभी-कभी
पगडंडी भर होती है
सिर्फ़ अपने पैरों के निशान ही
नज़र आते हैं
इस दूसरे रास्ते पर चलने पर
इन्सान खोता नहीं है
ख़ुद को पा लेता है !
दोनों रास्ते
खुले रहते हैं
बस
चयन की समझ
बंद नहीं होनी चाहिये !
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