कविता
545 सेक्टर-29, फरीदाबाद (हरियाणा), पिन-121008
मो. 09810602327, ईमेल – prakashmanu333@gmail.com
तानाशाह और बच्चे
बच्चे खेल रहे हैं छत पर
भूलकर इस उखड़ी दुनिया के सारे उखाड़-पछाड़
उबले हुए दुख और दाह
मगर
नाराज है तानाशाह!
पसंद नहीं है तानाशाह को यह कतई पसंद
नहीं है
कि बच्चे खेलें अपनी मर्जी का खेल
ऐन अपनी मर्जी के वक्त में
तानाशाह को पसंद नहीं है
बच्चे बनाएँ अपनी मर्जी का चित्र
अपनी मर्जी की लकीरें
उसमें मर्जी के रंग भरें
तानाशाह को पसंद नहीं है
बच्चे जोर-जोर से करें बातें
हँसें बेबात खिलखिलाएँ
जब मेहमान डाइनिंग टेबल पर तनकर बैठे हों!
भूलकर उसकी और मेहमानों की
महिमामयी उपस्थिति
बच्चे अपने गुड्डे-गुड़ियों, नाटक, चित्रकला में
रहें लीन
तानाशाह को यह पसंद नहीं है
कि बच्चे खुद सोचें
खुद रोपें
खुद रचें
खुद बनाएँ नक्शा और उस पर चलें
तो फिर जो बेशकीमती नक्शा उसने तैयार करवाया है
होशियार आर्किटेक्टों, इंजीनियरों से
खूब सोच-समझकर तैयार करवाया है जो
अंतर्राष्ट्रीय फ्रेम
बिजूका बच्चे का टाईदार
उसका क्या होगा?
सो तानाशाह गुस्से में है
वह झिड़कता है तेज नकसुरी आवाज में
झिंझोड़ता है बेरहमी से
डाल, हरी डाल—
उसमें दम ही कितना
नया बिरवा ही तो है!
भरभराकर गिर जाता है बच्चों
का खेल-संसार!
रुक गया है नाटक अब
रुक गई है गति
सहमे गुड्डे-गुड़ियाँ भालू ऊँट खरगोश
मिट्टी और कपड़े के
बच्चे सहम गए हैं
मेहमान खुशी-खुशी विदा हुए
बुद्धिजीवी मसिजीवी मस्तिष्क मरु विशाल!
तानाशाह उठता है सुकून से
अपने लिखने की मेज पर जा बैठता है
खोलकर सोने का पेन
लिखेगा अब वह बच्चों के मनोविज्ञान
पर कोई बढ़िया सा लेख
उसे इंटरनेशनल जर्नल में छपाएगा