कविता

  

अशोक गुजराती, ठाणे, महाराष्ट्र, मो. 99717 44164




केंचुली

जहां हुआ है ज़ख़्म छोटा या बड़ा 

वहीं-वहीं फिर लगती रहती है चोट

नाखून काटो कभी भी

अगले या उससे अगले दिन

कुछ-ना-कुछ खोलने-पकड़ने-खींचने के लिए 

पड़ती है उनकी ज़रूरत

आप आज कबाड़ी को देते हैं बेच

काफ़ी दिनों से इकट्ठा अख़बार, पत्रिकाएं याकि किताबें

और दूसरे ही दिन पड़ जाता है काम

आपको पिछली किसी तारीख़ के अख़बार

बीते महीने की पत्रिका या पढ़ी हुई किताब का

किसी बेकार पड़ी वस्तु को

बहुत समय तक आलस करने के उपरान्त

रख देते हैं हम स्टोर के किसी ऊपरी हिस्से में सबसे पीछे

और अमूमन पश्चात एक हफ़्ते के ही 

आवश्यक हो जाता है उसका उपयोग

वह ढूंढे नहीं मिलती

ज्यों हाथ से छूट गिरी कोई छोटी-सी चीज़

जा छिपती है सोफ़े, दीवान या किसी अपेक्षातीत के नीचे 

जैसे वह पदार्थ जो अभी-अभी यहीं-कहीं दिखा था कई बार

इसी, इसी तरह

मैंने बेवजह उसे पता नहीं किसी अहंकार के तहत

या यूं ही-सा टाला 

और तब से वह लगातार मेरे ज़ेहन को 

कुरेद-कुरेद कर कर रही है बेचैन

इतने सालों बाद भी

मैं उसे प्यार न कर पाने के छूट गये अवसर हेतु

ख़ुद को कोसता रहता हूं अनवरत


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