ग़ज़ल
संजय कुमार सिंह, प्रिंसिपल पूर्णिया महिला काॅलेज,
पूर्णिया, मो. 9431867283
तुम्हारे हाथ में अर्ज का जाम नहीं होता
मेरी महफिल का कोई अंजाम नहीं होता।
भाग कर कहाँ जाएगा कोई संजय
इश्क में कौन है, जो बदनाम नहीं होता।
रात यूँ ही आती है, जब तुम नहीं आते
उफ़क पर कोई चाँद नहीं होता।
कोई करार तो होगा, दिल का सौदा नहीं,
किस चीज का कोई दाम नहीं होता।
होश में रहे तो, कोई क्या जानेगा
डूब के देखो, कैसे इलहाम नहीं होता।
खोया हुआ है जो हसीन यादों को लिए
उसके लब पे किसका नाम नहीं होता।
हजारों उलझनों में कोई कित्ता भी रहे
उनके जाने पर कोई काम नहीं होता।
ये खेल किस इम्तहाँ की इन्तहाँ है...
लाख इंतजाम हो,आराम नहीं होता।
जुनूँ- ए-गुल,आराइश मौसम की
हसरत का सफर तमाम नहीं होता।