कविता
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, पंजाब, मो. 9811156310
हवा
हवा मेरे आस पास रहती
या,
यूं कहूं,
मेरी सांसों में छिपी
मेरे साथ साथ जीती है
ढूँढ़ोगे तो भी नहीं मिलेगी,
मगर
इस कोने से उस कोने तक
कभी भागती तो कभी रूक जाती है
कभी पर्दा हिलाती, तो कभी
खिड़की धकेल कर
बाहर निकल जाती
नटखट वह
बाहर,
दरखतों के पत्ते बुहारती या फिर
टहनियों को झूला झूलाती है
कभी उदास हो जाऊं तो
पास आकर,
मुझे छूकर
दिलासा दिलाती है
क्योंकि
शायद वो जानती है
मुझे भी एक दिन
उसी में मिल जाना है
इसीलिए
वो मेरे भीतर, और
मेरे आस पास रहती है