दोहे
सुश्री किरण यादव, दिल्ली, मो. 98914 26131
दोहे
चलो पथिक! चलते रहो, रुकें नहीं ये पाँव।
रुक जाना तुम बस वहीं, जहाँ नेह का गाँव।।
झूठे सब वादे रहे, झूठी हर सौगन्ध।
पता चला जब झूठ का, टूट गये सम्बन्ध।।
नींदों में घुलते रहे, महके हुए गुलाब।
आँख खुली तो उड़ गये, पल में सारे ख़्वाब।
राम नाम इतना जपूँ, रखें राम जी पास।
भव-बंधन से मुक्ति हो, पूरी हो यह आस।।
उसने मुझको क्या दिया, कैसे रखूँ हिसाब।
इक पल तो काँटे मिले, इक पल मिले गुलाब।।
जला रखे हैं, आज तक, उन यादों के दीप।
सागर-तट से थीं चुनी, जब दोनों ने सीप।।
दुनिया भर से कह फिरे, अपने अपने जज़्बात।
मगर न कह पाये कभी, उनसे दिल की बात।।
रे मन पगले! मान जा, चाह न ये संजोग।
अपनापन देंगे कहाँ, खुद में सिमटे लोग।।
बुढ़िया बैठी खाट पर, सोचे है दिन-रात।
घर भर में सुनता नहीं, कोई उसकी बात।।
जैसे फूलों में बसे, हरदम ख़ुशबू साथ
थामे रहना तुम सदा, यूँ ही मेरा हाथ
सर चढ़कर यूँ बैठ मत, देगा वक़्त उतार
वक़्त कभी रखता नहीं पल भर यहाँ उधार
वक़्त तुझे समझा रहा, वक़्त ना जाये बीत।
रहमत की बरसात है झोली भर ले मीत।।
नैया है विश्वास की, जायेगी उस पार।
इम्तिहान ले ज़िंदगी हम भी हैं तैयार।।
अँखियाँ तरसी राह में, कब आवे मन मीत।
आकर अब तो देख ले, हृदय बसी तब प्रीत।।
पाँव छिले, छाले पड़े, काँटे चुभे अनेक।
जीवन-पथ दुर्गम रहा, साथी मिला न एक।।
इन नयनों में आ गई, सारे जग की पीर।
निशि-दिन नदिया-सी बहें, थमे न इनका नीर।।
किसको अब मालूम है, क्या बोलेगा कौन।
धीरे-धीरे हो गईं, सब आवाजे़ मौन।।
कोयल कूके बाग़ में, छेड़े मीठे राग।
बासन्ती रुत में खिला, सभी ओर अनुराग।।
आँखों में चुभने लगी अब आँधी की धूल।
इन झोंका ही ले उड़ा शाख़ों से फल फूल।।
दिल पर मत दे घात ना पीठ में ख़ंजर घोंप।
जो तुझ को मन सौंप दे उसको तू मन सौंप।।
रे बैरी जग! मान जा, खींच न लछमन-रेख।
मेरे मन में जो बसा, कभी उसे भी देख।।