ग़ज़ल


सुश्री किरण यादव, दिल्ली, मो. 98914 26131


 उठती है ऐ यार! कहीं

दिल में इक दीवार कहीं


उसका घर है बस्ती में

दरिया के उस पार कहीं


जी भर कर बातें होंगी

मिलना तो इक बार कहीं


वो जो बेहद हँसता है

टूटा है सौ बार कहीं


और कहीं मेरी दुनिया

उसका कारोबार कहीं


****


तुम जो क़िस्मत बदल गये देखो

मुझसे अपने ही जल गये देखो


ज़िक्र हर शे’र में तुम्हारा है

तुम यूँ देकर ग़ज़ल गये देखो


मेरे हर शे’र में तुम्हीं तुम हो

तुम ही शे’रों में ढल गये देखो


हमपे कैसे हँसेगी अब दुनिया

गिरते-गिरते सँभल गये देखो


दिल के बाज़ार का चलन तौबा!

खोटे सिक्के भी चल गये देखो



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