ग़ज़ल
सुश्री किरण यादव, दिल्ली, मो. 98914 26131
आप नज़रों में हमारी इतने क़ाबिल हो गये
धीरे-धीर आप अब आदत में शामिल हो गये
एक हम हैं जो सदा दिल ही की बस सुनते रहे
एक वो जो कह रहे हैं आप बेदिल हो गये
ज़िंदगी की उलझनों से जूझ कर जाना है ये
प्रश्न थे आसान लेकिन कितने मुश्किल हो गये
इक क़दम बस इक क़दम, बस इक क़दम दूरी बढ़ी
और फिर आँखों में कितने स्वप्न धूमिल हो गये
आपकी आँखों में हमदम! ळमने देखा डूबर
ज़िंदगी की नाव के बस आप साहिल हो गये
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याद फिर से तुम्हारी आई है
ज़िंदगी फिर से मुस्कुराई है
ज़िंदगी कल भी थी पराई ही
ज़िंदगी आज भी पराई है
दिल के तारों को यूँ छुआ तुमने
मेरी हर साँस झनझनाई है
कैसे कह दूँ उसे सरे-महफ़िल
बात सीने में जो समाई है
जाने किस ओर की हवा है ये
साथ ख़ुशबू जो लेके आई है