कविता
डॉ. निशा नंदिनी भारतीय, तिनसुकिया, असम,
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संवाद
दरख़्त भी सूखने पर
जल से हरिया जाता है
मरणासन्न अवस्था में
प्राण पा जाता है।
सूखे संबंधों को भी
संवाद से हरियाते हैं चलो
लेकर साथ मृदुवाणी
बिगड़ी बनाते हैं चलो।
शांत संबंधों को पुनर्जीवन
हर पल देते मधुर संवाद
बिखरे पलों को समेटते
बातों से बनते रहे संवाद।
एक दूजे का वृतांत
सुनते और सुनाते हैं चलो
आपस में बांटकर सुख-दुख
प्रेम का हाथ बढ़ाते हैं चलो।
महिमा समान है
रथ के दोनों पहियों की
आपसी वाद-विवाद से
जीवन धुंधला जाएगा।
झाड़-पोंछकर कटुता धूल
रथ को सवांरते हैं चलो
धोकर स्नेह से मन का मेल
प्रेम परिधान पहनते हैं चलो।
कुछ ना मिलेगा
डूबकर झूठे अहंकार में
समय फिसल जाएगा
हाथ मलते रह जाओगे।
स्नेह-अनुराग भित्ति को
पुनः बनाते हैं चलो
वार्तालाप से संबंधों को
सुलझाते हैं चलो।
समस्याओं की झाड़ी में
खिलाते हैं फुलवारी प्रेम की
हरेक पल को सुरभित कर
महकाते हैं मन का हर कोना।
मन-मुटाव मिटाकर मन से
नेह-गंगा बहाते चलो।
प्रेमपूर्ण जीवन हो सबका
हृदय-हर्ष भरते चलो।
डॉ.निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया,असम