गुम होती परछाई

शिव डोयले, झूलेलाल कॉलोनी, हरिपुरा, विदिशा, मो० 96854 44352

 गुम होती परछाई


चक्की में पीसने को

अनाज के दाने डालते हुए
पाटों के बीच में
पिसते - पिसते 
पिस गये उसके सपने
जिन्हें संंजो रखा था उसने

कपड़े धोते- धोते
कूटने पर 
कुट गई वे उम्मीदें---
बँधी जो साड़ी के पल्लू में
कुछ टूटी फूटी बची 
तो टपक पड़ी
झटकार कर 
ताक पर सुखाते समय 


कल की अल्हड़ता का
यहाँ कोई काम नहीं रहा
यह समझते हुए
एक पोटली में बाँध
रख दी है ताक में
जब भी मिलता समय
धीरे से देख लेती है  खोलकर

उम्मीदों का सूरज
धीरे-धीरे हो रहा है अस्त
पानी भर कर 
कुएँ से लौटने पर 
देख रही है
अंधेरे में गुम होती परछाई

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