कविता
डाॅ. सीमा शाहजी, सहायक प्राध्यापक हिन्दी, थांदला, जिला झाबुआ म.प्र. 457777, मो. 9165387771
वक्त-वक्त की बात है
तुमने
कहा
मत
गुजरो
उस रास्ते से
नागफनी का जंगल है वहां,
लहूलुहान कर देंगे
तुम्हारे पाँवों को
संकल्प को...
पर मैं गुजर गया
नागफनी के समीप से
उस पर फूल जो खिले थे वहां....
सबने रोका
मत जाओ
उस बस्ती में,
लूट लेंगे
तुम्हारी पोटली को
असबाब को,
पर मैं गुजर गया
बस्ती में
बच्चे जो
खिलखिला रहे थे वहां...
मित्रों ने कहा
मत पड़ो
उस लड़की के चक्कर में
हो जाओगे बढ़नाम
पर मैं फिसल गया
और मिल ही गया
उसमें वह प्यार
भटक रहा था
जिसके
लिए मन
कई-कई धाम...
किसी ने
कहा
रोक लो सांसों को
कर लो प्राणायाम
तो रोक ली मैंने सांसें
तब आत्महत्या करार दिया
मेरे प्रयास को....
को
वक्त-वक्त की बात है दोस्त
बदल जाते हैं अर्थ
वक्त ही दोष है
वक्त ही है अर्थ...
समुद्र, सड़क तो
नहीं है
पर दौड़ जाते हैं
स्टीमर जहाज,
हवाओं की
दिशा तो नहीं होती
पर कौस्तुभ
दिखा ही देता है…
हवाओं को दिशा...
लोहे का तिनका
समय तो नहीं होता
पर घड़ी
का कांटा बनकर
दिखा ही देता है समय...
तो...!!!
उलाहना उपदेश
अनुभव नहीं बन सकते...
छूने दो
मन को, तन को
समय की बयार
ताकि
नया अनुभव
गढ़ सके
नए प्रतिमान...।