कविता

 

डाॅ. सीमा शाहजी, सहायक प्राध्यापक हिन्दी, थांदला, जिला झाबुआ म.प्र. 457777, मो. 9165387771


मेरे कमरे की दुनिया

 

कितनी खूबसूरत है

मेरे कमरे की दुनिया

जहाँ सरस्वती का वरद हस्त

ज्ञान के प्रकाश की

बिखेरता

कुछ नन्हीं नन्ही उर्मियाँ...

यहाँ मेरा वीतरागी

मन पालथी मारकर

 

ठाठ से बैठता है,

 

कल्पना लोक से

 

किस्सागो दुनिया की

रंग बिरंगी

कहानियाँ कहता है,

कभी अध्यात्म की तरंगों में

डूबता है, गहता है...

 

मन तो मन है

जब आँखें तकती हैं

यथार्थ के परिवेश को

देखती हैं तब

अशुओं से

खुद को भिगोती हूँ

पर एक दमदार कोशिश में

होती हूँ

वक्त का जलजला है

ठहर जाएगा

मुझे वह कहाँ तक

बहा ले जाएगा,

कभी तो मुझे

समेट लेगा

अपने बाजुओं में

मेरा माथा चूम लेगा

किसी बेबस माँ की तरह..

 

वह जानता है

मेरी

पहाड़ लांघने की

जिद को

मुझसे बेहतर,

इसीलिए तो

अँधेरी रात से पहले

कहता है सहम कर उट्ठो...

चाँद सितारों की बात करो,

सुबह होने पर

आसमान में चढ़ते सूरज की

ऊष्मा का

मन में आगाज करो

 

जीवन की मधुरिमा

मन से न खो जाए

ऐसी दमदार

कोई बात करो

तभी, अनुभव कर पाओगी

तुम्हारे कमरे की

खूबसूरत दुनिया...।




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