ग़ज़ल

 इश्क़ के रोग की दवा क्या है

जो न कर दे असर दुआ क्या है


उसने औरों से सुन लिया होगा

मेरे बारे में जानता क्या है


दिल दुखाने लगें जो दोनों का

ऐसी बातों से फ़ायदा क्या है


तेरे दिल की मुझे ख़बर होगी

मेरे दिल में तेरे सिवा क्या है


सिर्फ, इतना वो हमको बतला दें

हमसे नाराज़गी भला क्या है

किसी एक से दिल लगा कर तो देखो

उसे दिल-जिगर में बराकर दो देखो


गले से लगाओ न यूँ हर किसी को

नज़र एक पर ही टिका कर तो देखो


मुहब्बत को ऐसे न अपनी छुपाओ

हमें हाले-दिल तुम सुना कर दो देखो


ये ख़ामोश नज़रें हमें चुभ रही हैं

ज़रा रुख़ से ज़ुल्फें हटाकर तो देखो


सजी हुस्न की महफ़िलों में किसी दिन 

मोहब्बत का सच गनगुना कर तो देखो


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