कविता
डाॅ. सीमा शाहजी, सहायक प्राध्यापक हिन्दी, थांदला, जिला झाबुआ म.प्र. 457777, मो. 9165387771
धूप रथ की बात
सुप्रभात
मंगलमय होते हुए भी
हम हथेलियों में लिए रहते हैं
दिन भर के
मनोरथ,
क्षितिज के
सतरंगे सौन्दर्य को
निहारते हुए भी
हम गुनते रहते हैं
संसार के
कथोपकथ...
पेड़ों की
हरी कच्च पत्तियों पर
ओस की
बूँदों की थिरकन,
पंछियों का कलरब
कहीं शिवालों में
भक्ति रस गुंजन
प्रसाद से चुन-चुन
चीटियों के मुँह में दबे
शक्कर के दाने
परितोष के अनूठे बहाने
अभिषेक-मंत्रोच्चार
जलधारा सिंचन
चारों ओर
छा जाती तक
ऊर्जा कण-कण
जब फैल जाए
आँगन-आंगन धूप रथ
तब
ओप उजास की
होती अनूठी बन-ठन
ताप संताप
हर ले क्षण-क्षण
अहा ... प्रकृति की
इस अद्भुत बेला को
धूप की इस गरिमा को
सुप्रभात को नमन... |