कविता

डाॅ. सीमा शाहजी, सहायक प्राध्यापक हिन्दी, थांदला, जिला झाबुआ म.प्र. 457777, मो. 9165387771


 क्योंकि आसमाँ मेरा है

आकाश

आ जाता है

आजकल

मेरे पास,

खेलता है वह

मेरे साथ

कभी दूर- कभी पास

 

बदल लिए हैं

तेवर उसने

अब वह जलता नही

मई जून की तरह

आग बरसाता नही

जेठ की तरह

 

इस बार भिगो रहा है 

शीतलता से वह मूझे

साथ में लेकर इन्द्रधनुषी

अहसास,

आँखों, मन, शरीर के पार

 

यह आसमान मेरा है 

मेरी धरती, मेरी जमीन 

मेरे जमीर का है

सहज ही

मन के आँगन में मेरे

मन बौरा जाता है

धरती की तरह

पांखे खिल उठती है 

कलियों की तरह 

क्योंकि अब

आसमान भी मेरा है

बादल याला...

बूँदों वाला...

इन्द्रधनुष वाला...




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