ग़ज़ल
बालस्वरूप 'राही' : नई दिल्ली, फोन नं. 011 27213716
दिल को थामे हुए यों बेकार बैठे हैं ऐसा लगता है कोई दांव हार बैठे हैं
इनसे कह दो के किसी और को जा कर छेड़ें
हमको घेरे हुए जो गुमगुसार बैठे हैं।
एक भी चांद तुम्हें अपने साथ ला न सका
हम तो हर रात की जुल्फें संवार बैठे हैं
तुम न गुज़रोगे इधर से ये सही है लेकिन
तुमने करने को कहा इंतज़ार, बैठे हैं
तुमको बदनाम करें है न हमारी नीयत
एक मदहोशी में तुमको पुकार बैठे हैं
ये जरूरी तो नहीं है के कोई राज़ ही हो
आज मौसम है ज़रा खुशगवार, बैठे हैं
एकटक देखने से आंखों में जो आया पानी
सोच लेना न कहीं अश्कबार बैठे हैं
मौत हर रोज़ तकाजा जो करे वाजिब है
हम भी खाए हुए कब का उधार बैठे हैं
हम तो राही हैं घड़ी-भर में चले जाएंगे
आप भी किन का किए ऐतबार बैठे हैं