Abhinav Imroz April 2023 (Special Issue on Dr. Kamla Dutt, Georgia, USA )




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उपन्यास अंश

उस सप्ताह हम उन्मादित रहे 

उस सप्ताह हम इस विश्वास में रहे

कि सभी कुछ ज्यों का त्यों रहेगा


हे ब्रह्माण्ड, मेरा विश्वास उसे ले लगभग खत्म। शायद उसने मुझे नहीं चाहा, मुझे नहीं सराहा। यह जो उसका मेरी ओर आकर्षण, मेरा उसकी ओर, एक मिथ्या भर क्षण, एक और खोया मैंने, वो आकर्षण। एक जिज्ञासा भर एक कम उम्र वाले व्यक्ति की ओर खत्म हो गई प्रोत्साहन न पा, मेरा बोझा क्या ठीक, क्या नहीं ठीक, कितना बढ़ावा न दूं, क्या वाजिब क्या नावाजिब। हे ब्रह्माण्ड ! मैं तो जीवन भर यूं ही भटकती रही कोई थोड़ा-सा इशारा तो दो, छोटा-सा संकेत। कुछ ज्यादा नहीं, बस नन्हा-सा संकेत, बड़ा नहीं बस छोटा-सा।

हे ब्रह्माण्ड ! मैं अभी स्वपन ले सकती हूं न ब्रह्माण्ड मैं जानती हूं, समझती भी हूं कि जीवन मे नफा-नुकसान तो चलता रहता है लेना-देना भी। नफा होगा तो नुकसान भी होगा। तुम जानते हो ब्रह्माण्ड, मुझे क्या चाहिये? एक छोटा-सा अपनापन उसकी ओर से एक छोटा-सा उसकी ओर से नहीं तो उन पत्रिकाओं की ओर से जहां मैंने अपनी कहानियां भेजी, स्वीकृति। नकारना। कुछ भी, पत्रिकायें, वागर्थ, पाखी, ज्ञानोदय, हंस, कहीं से भी, मुझे पुराने मित्रों को फोन करना है। तृप्ता, पद्मा, स्वदेश, बिन्दु। जीवन गतिशील। अपनी हार-जीत के बीच जिंदगी कब सुलझी रही है किसी की भी।

तीन कवितायें ढूंढनी हैं मुझे कविता संगोष्ठी में पढ़ने के लिये।

उसका एक पंक्ति का ईमेल, मेरा खुश हो जाना, उम्मीद।

उसकी बीवी का गायन यू-ट्यूब, कोई पुराना लोक गीत। उसका मिनिस्टर युवती का लिया इंटरव्यू।

वो सुलझी सुशिक्षित मिनिस्टर धरती पर जमीं। पति बच्चे के साथ।

तुम्हारा घुमावदार सवाल, आप यहां राजधानी में अकेली, परिवार दूसरे शहर, बहुत अकेली पड़ जाती होंगी। तुम हाजिर उस अकेलेपन को भरने। उस खाली जगह पर स्थापित होने को तैयार।

मिनिस्टर औरत का सधा जवाब, मैं कभी किसी शहर में अकेली नहीं रहती। पति या पुत्र कोई न कोई साथ हमेशा होते हैं। क्या तुम हमेशा खाली जगह ढूंढ़ते रहते हो? औरों की जिंदगी में खाली जगहें? तुम इंटरव्यू ले रहे हो टीवी अख़बार के लिये, तस्वीरें खींच रहे हो। खाली जगहे कहीं भी हो जिंदगी में, तस्वीरों में, भरी जानी चाहिये। खाली जगहें वैक्यूम खड़ा कर देती हैं। तुम्हारे सवाल सधे मिनिस्टर की जानी परखी हंसी। किस ने जाल फेंका, कौन फंसा-कौन फंसा।

एक और कम उम्र औरत का आगमन। तुम्हारी बीवी की खुफिया आंख। तुम बहुत इधर-उधर देखते हो, निगरानी जरूरी, बेहद जरूरी।

तस्वीरें खींचते वक्त, इंटरव्यू लेते वक्त तुम कितने आत्मीय प्रश्न पूछ लेते हो, आसानी से। पत्रकारिता सनसनी ख़बरों के अलावा भी तो कुछ हैं। तुम्हें खाली जगहों का सुराग रहता है। यह अहसास भी कौन, कहां छूआ जा सकता है।

तुम्हारा बातचीत का तरीका, तुम्हारा खूबसूरत चेहरा, जिस्म, तुम्हारी गहरी आंखें, तुम्हारी आवाज की जुम्बिश, अब क्या किया जाये।

सब कुछ के बावजूद कुछ आदर्श तुममें अब भी बचे। कुछ हद तक सच्चाई में पहुंचने की चाह अब भी बाकी तुम में।

उन लम्हों में तुम, जब किसी औरत को परख रहे होते हो, तुम सचमुच महसूस करते हो। वो सच है तुम्हारा, कोई स्वार्थ नहीं। बस वो लम्हें सच्चे।

सधा हुआ खेल, सब साफ-साफ एकदम। कुछ भी तो छुपाया नहीं गया।

मेरी आंखें एक्स रे की तरह अनदेखा भी देख रही, परख रहीं। इन एक्स रे आंखों से भला कौन छुप पायेगा चाहे फोटोग्राफ या यूट्यूब पर तुम्हारा इंटरव्यू।

पर तुम यह भी कह सकते हो मैंने भला कब छुपाया। मैंने किसी गहरे प्रेम के दावे तो कभी नहीं किये। फिर यह सवाल-जवाब क्यों ?

तुम यह भी कह सकते हो, मेरा लगाव एक तरफा। मैंने खुद जाल बुना, खुद फंसी। तुम पुरुष थे। तुम्हारा 

धर्म प्रोत्साहन देना। मैं भी तो ऐसा कर सकती थी। थोड़ा बढ़ावा दे सकती थी। उसका धर्म-जाल फैलाना। तुम भी जाल फैला सकती थी, फेंका जाल वापिस खींच सकती थी।

जाल फैलाना उसका धर्म। तुमने जाल फैलाया, खुद फंसी। अब खुद निकलो।

ऑक्टोपस वंशवृद्धि में हजारों अंडे गिराता। सालमन मछली हजारों मीलों के झंझावतों को सहती मंजिल पर पहुंचती, अंडे झाड़ती। छोड़ती, गिरती-मरती।

सीकाडास। 17 सालों की अकुलाहटों में फंसे, गाते हुये मरते हुये।

मैंने अपने को बचाया सालों साल। मैं अब कभी नहीं फंसूंगी, किसी के भी जाल में, अपने में भी नहीं। मैं तो बहुत समझदार थी, अपने को बचाये।

कृष्ण! कृष्ण !

तुम कहां ढूंढ लेते हो अपने कर्ण दंड के लिये ?

हमें सबक सिखाने।

सबक सिखाना कृष्ण का धर्म।

फंसना। दंडित होना।

कर्ण का धर्म।

मेरा धर्म लड़ना, लड़ना इस जाल से मुक्त होना। उस सप्ताह लगा सब कुछ भरा पुरा ठीक मिलन, भरपूर सराहना, सराहे जाना उस सप्ताह लगा यह सुंदर स्वप्न है। सभी कुछ यथा संभव। सब कुछ वहां जहां उसे होना चाहिये। कुछ भी इधर-उधर नहीं, एक तिनका भी नहीं। सब कुछ यथास्थान।

जाल का बनना

जाल का फैलना

आंगुतकों का आना

सब अपनी मर्जी आये

अपनी मर्जी से फंसे सभी भरे-पूरे जाल

जाल का आकर्षण

जीवन की अकुलाहट खुद को खोजती। तब तक, जब सभी कुछ समाप्त हुआ। उस सप्ताह हम सभी ने स्वप्न देखा हम सभी को लगा। यह स्वप्न, सत्य है। उस सप्ताह हम सभी का विश्वास कि अब कुछ भी गलत नहीं हो पायेगा।

कही भी कुछ भी गलत नहीं।

वो आखिरी दिन

धर्मयुद्ध का

धर्म युद्ध का वो

आखिरी दिन।  -Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


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                      संपादकीय



शामें किसी को माँगती हैं आज भी ‘फिराक़’

गो ज़िन्दगी में यूँ मुझे कोई कमी नहीं

अतीत स्मरण (Nostelgia) संवेदनशील व्यक्ति के लिए संजीवनी है। यह एक शतरंजी खेल जैसी लत है। बीता वक़्त लौटाया नहीं जा सकता। लेकिन बार-बार जे़हन में जिया जा सकता है। यही तो है अतीत की एयाशियां और अंतर्मन का योगा। बीता हुआ कल ही जीवन का कल-कल बहता हुआ झरना है। जो अब नदी का रूप धारण कर चुका है और अपने गंतव्य की ओर सागर मिलन के लिए अग्रसर है। 

कुछ शख्सियतें ऐसी बौद्धिक हेाती हैं कि आभामंडल से योगी, गम्भीर और प्रेम से लिप्त आभास देती हैं। किसी की कोई खास अदा ऐसे दिमाग़ी धूसर गुद्दे के साथ चिपक जाती हैं कि ताउम्र जेहन में झूमर की तरह झूलती रहती हैं। 

हमारे जीवन शैली में संस्कार कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में अवश्य नुमायाँ हो जाते हैं जैसे कमला जी के कविता पाठ में मुझे वैदिक संध्या का शांति पाठ याद आ गया। उन्होंने अपनी कविता कुछ इस प्रकार सुनाई -

...द स्काई इज पीसफुल / द अर्थ इज पीसफुल / द वाटर इज ऐट पीस / मेडीसिनिल प्लांट आर एट पीस / द वेजीटेशन इज एट पीस / गोड्स आर एट पीस / लेट्ट दिस पीस एंटर अवर हाट्र्स / एंड जर्नीज वी आर टू एम्बार्क। / आन बी, पीसफुल एंड हारमोनियस...


कमला दत्त की कहानियाँ अलग से हट कर भिन्न प्रकार की कलेवर और फलेवर की हैं। कुछ संवाद तो एकांत से, अपने मौन से, मन ही मन से, हो रहे हैं। इन कहानियों में मौन को मुखर होते हुए देखा जा सकता है। कहानियों में व्यक्त ऐसे हादसे जो जब कभी घटित हुए होंगे उस समय उनकी नोअयत क्या रही होगी? जो आज भी स्पंदन पैदा करने की कुब्बत रखते हैं और आज यादों में उनका वजूद सिर्फ तलबों की मालिश तक महदूद होकर रह गया है। 

नीता पाठक का मनोविज्ञान हो या बीच पर अपने दोस्त के साथ घूमती वह लड़की, जख्मी ‘मछली’ के दाँतों की कतार देखकर जीव विज्ञान का बखान हो या अध जली तीन मोमबतियाँ मेें नए रिश्ते का उत्सव मनाने का प्रतीक बनी हों। 

लगता है कि अपने काॅलेज के दिनों में नाटकों में खूब हिस्सा लेती रहीं हैं। क्योंकि उनकी कहानियों के संवाद की रबानगी वैसी ही है जैसे नाटक का संवाद होता है। (एक ही साँस में इजहार करने की विवशता)। प्रत्येक कहानी एक नए परिवेश में ढली प्रतीत होती हैं।

अति संवेदनशील व्यक्ति खुद को कसूरवाद ठहराने में कोई गुरेज नहीं करता। अपना सारा जज़्बाती सरमाया लुटाने के बाद भी उनकी तवज्जो और तवक्को के फ्रेम में फिट न हो सकने के बाद भी आकर्षण और चाहत इस क़दर हावी रहते हैं कि उत्कृष्ट प्रेम और अपने आदर्शबाद के फलसफे के तहत पूरा दोष अपने सर ले लिया जाता है। 


हज़ार बार तेरा हुस्न हुस्न हो के रहा।

वो हम थे इश्क को जो कर सके न इश्क कभी



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कहानी 

डाॅ. कमला दत्त, Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


लूमिस कैटरपिलरी

लड़की कुछ सालों बाद मानहीगन लौटी है। लड़की ने सोचा था, क्या है, क्या था जो उसे बार-बार मानहीगन लौटाता है ! लड़की जंग लगी डूबी नौका के जंग लगे टुकड़े की छाँव तले बैठी थी। नौका बरसों पहले डूबी थी, लहरों के थपेड़ों से। नौका के लोहे, स्टील के बचे टुकड़े जहाँ-तहाँ बिखर गये थे। कुछ में मानहीगन द्वीप के बच्चे घर-घर खेलते थे और कुछ में बाहर से आये यात्री बरखा से बचने के लिए छिप जाते थे और लड़की जब पिछली बार आई थी तो नाव के जंग लगे टुकड़ों की खोल में घंटों सोई थी। लड़की सोचती है मानहीगन पहली बार ‘उसके’ साथ आई थी, वो आया उसके साथ था पर जुड़ गया था, चिपक गया था, उस औरत के साथ ! उसका मन कड़ुवाहट से भर जाता है। वो साथ लाई कोक की बोतल से थोड़ा कोक ले सारी कड़ुवाहट को निगल जाना चाहती है। लड़की ढ़ेर सारी मुश्किलों के बावजूद मानहीगन आई है शांति की तलाश में। लड़की यहाँ की ख़ूबसूरती और शांति को मुट्ठियों में बटोर वापस लौटना चाहती है। भरी-पूरी लड़की में सुख के छोटे-बड़े कतरे संजोने की आदत है, जिससे उसकी खाली बियाबान ज़िन्दगी भर सके। लोग बाग यह भी कहेंगे, लड़की की ज़िन्दगी खाली कहाँ है? हिन्दुस्तानी लड़की की दो-दो शादियाँ, अच्छी नौकरी, अच्छे खासे दोस्त, बियाबानी कहाँ की - यह तो रोमान्टिक लोगों के चोंचले हैं, बहुत अपर मिडिल क्लास लोगों के चोंचले, क्या कमी है लड़की को ?

अचानक चाँव-चाँव करती सीगल्स ने लड़की का ध्यान तोड़ा। लड़की ने सोचा सीगल्स चिल्लाती हैं तो लगता है, कराह रही हैं। सीगल्स किसके मरने का मातम मना रही है? लड़की ने सोचा क्या सीगल्स के पति-पत्नी जैसे रिश्ते रहते हैं ? क्या किसी एक सीगल्स के मर जाने पर बाकी सीगल्स बैठ कर रोती हैं, मरने वाले की याद में और उस अच्छी-बुरी बातों को याद कर, उसके जीने-मरने का अवसर मनाती हैं? क्या सीगल्स का कर्म है जन्मना बच्चे पैदा करना और ख़त्म हो जाना। फिर लड़की सोचती है क्या सीगल्स के बच्चे अपनी भाषा में अपने माता-पिता को ‘मम्मी‘ ‘डैडी‘ कहते हैं। यह सोच लड़की अचानक मुस्कुराती है। अचानक लड़की को अपने पिता, डैडी की याद आती है। लड़की मान लेती है, हाँ, सीगल्स अपने जन्म देने वालों को मम्मी डैडी ही कहते हैं। और बड़ी ख़ूबसूरत मुस्कुराहट लड़की के चेहरे पर बिछ जाती है। लड़की का कद 5,4‘‘ है। लड़की ने गहरे लाल रंग की शाॅल ओढ़ी है और सर पर लगाये हैं जंगली फूल। लड़की साईंटिस्ट है पर आर्टिस्ट ज़्यादा लग रही है। मानहीगन में इतने आर्टिस्ट हैं और लोगों ने यह मान लिया है कि वो भी आर्टिस्ट है लोग नहीं जानते, न जानेंगे कि लड़की मानहीगन से जुड़ी है। लड़की बरसों पहले मानहीगन आई थी और सालों और जगहों में रहने के बाद भी मानहीगन से जुड़ी रही है। मानहीगन उसे बार-बार पुकारता रहा है। वो तीन फ्लाईट बदल कर हजारों मीलों की दूरी तय कर यहाँ पहुँची है।

अटलान्टा से न्यू यॉर्क, न्यू यॉर्क से बॉस्टन, बॉस्टन से पोर्टलैण्ड, पोर्टलैण्ड से पोर्ट स्मिथ और फिर ‘फेरी‘ से मानहीगन। लड़की सब कुछ भूल जाना चाहती है। पर भुला नहीं पा रही। जैसे बार-बार पिता की याद आ रही है। लड़की सोचती है पिछली राहों पर चले लोग आपके साथ बराबर क्यों रहते हैं? पिछली छूटी राहों की तरह उन्हें भी छूट जाना चाहिए पर ऐसा होता नहीं, वो बराबर साथ रहते हैं - साथ चलते हैं।

सीगल्स की चाँव-चाँव और जोरदार कराहट लड़की को दुबारा झुनझुनाती है। जरूर सीगल्स का कोई मर गया है। फिर देखती है ढेरों सीगल्स मरी मछली को ले छीना-झपटी कर रही हैं। चाँव-चाँव काँव कराहट में बदल गयी है। सीगल्स का कोई अपना मरा है या यूँ ही माँस पर छीना-झपटी सीगल्स कर रही हैं माँस पर छीना-झपटी।  मछली जरूर काफी बड़ी रही होगी। एक बड़ी सीगल्स के झपटने पर माँस के टुकड़े जहाँ-तहाँ बिखर गये हैं। सिगल्स की कराहट जैसी काँव-काँव लड़की को दोबारा वापिस अटलान्टा ले गई है। पर वो तो अटलान्टा से दूर भागने आई है पर माँस के लोथड़े वापिस उसे उस हादसे पर ले गये हैं। कापली स्कैयर के सबवे स्टेशन की ट्रेन के नीचे कट जाने पर मिले थे उस औरत के जिस्म के हिस्से रेलवे ट्रेक्स पर जहाँ-तहाँ बिखरे। लड़की सोचती है मछलियाँ सीगल्स से जुड़ी हैं, लड़की मछलियों से जुड़ी है, सीगल्स से जुड़ी है, मानहीगन से जुड़ी है, माँस के टुकड़ों से जुड़ी है। पर वह रेल से कटकर मरी लड़की किससे जुड़ी थी - पति से, पेट में पलते बच्चे से, जो एक माँस का लोथड़ा रहा होगा ?

मानहीगन आई लड़की मानहीगन से जुड़ी है। मानहीगन सीगल्स से जुड़ा है। सीगल्स मछलियों से जुड़ी हैं। मछलियों के माँस के टुकड़ांे से वह दूसरी लड़की जुड़ी है जो रेल तले कट कर मर गयी थी। क्या मर जाने वाली लड़की का अपने पति से ऐसा ही रिश्ता था जो एक माँस के लोथड़े का रहता है दूसरे माँस के लोथड़े के साथ गला सड़ा? क्या मरने से लड़की ने पेट में पलते बच्चे को लेकर सोचा था कि एक और पनप रहा है माँस का लोथड़ा। मछलियों पर झपटती सीगल्स और औरत पर झपटता हर कोई, क्या मृत लड़की के बच्चे, पति ने इस तरह सोचा ? क्या मृत लड़की ने जब बच्चे को अल्ट्रासाउंड में देखा तो उसे लगा था यह एक और माँस का टुकड़ा ? क्या उसने चाहा था, क्या उसने सोचा था ? मृत लड़की, “मैं अगर चाहूँ तो इसको झटके से ख़त्म कर सकती हूँ।‘‘ फिर लड़की ने देखा होगा माँस का टुकड़ा, जिसके हाथ-पाँव हिल रहे हैं। उसने कहा होगा माँस का टुकड़ा कहाँ, यह मेरा बच्चा है, बच्चा है। लड़की पढ़ी-लिखी थी। हॉस्पीटल में काम करती थी, सब जानती थी।

अचानक मानहीगन आई लड़की का हाथ अपने पेट पर चला जाता है। वो सोचती है, अच्छा हुआ ऐसा कुछ मेरे साथ नहीं हुआ। कहाँ निभता मुझसे, कहाँ पलते मुझसे बच्चे। मुझे तो बच्चे पसंद ही नहीं, लड़की अपने को झटकती है। अपनी शॉल को झटकती है। अपने को झटक-झटक कर वो सभी कुछ भूलना चाहती है। वो वहाँ ख़ूबसूरत जगह आई है ख़ुशी की तलाश में, वैसे मानहीगन तट पर गये वक़्तों में ढेरों नौकायें डूबी होंगी। शायद इस डूबी नौका में ढ़ेरों लोग मरे थे। शायद इसलिए इस टूटी नौका के टुकड़े लोगों ने तट से नहीं हटाये। एक यादगार। अभी भी डूबी नौका के जंग लगे टुकड़े जहाँ-तहाँ बिखरे हैं। नौका तो चालीस साल पहले डूबी थी।

समुद्र पर पत्थर की चट्टानों के बीच, लकड़ी के क्रॉस जहाँ-तहाँ हैं। क्या मानहीगन वालों ने तट पर आई लाशों के नाम यह क्रॉस लगाये थे? लकड़ी की सीधी-सादी दो फाटों को जोड़ लगाये गये क्रॉस। लड़की सोचती है अगर मैं मानहीगन में मर जाऊँ तो क्या कोई मेरे नाम का क्रॉस गाढ़ेगा इस तरह। हिन्दू लड़की हूँ पर लड़की को बड़ा मोह है कब्रिस्तानों का कब्रिस्तानों से।

मानहीगन में बैठी लड़की का ध्यान उस मृत लड़की से हट नहीं रहा! बार-बार उस लड़की का चेहरा, हिन्दुस्तानी चेहरा, बड़ी-बड़ी आँखें गोल मुँह, ढंग से सँवरे बाल, बड़ी-सी बिन्दी ! बार-बार टेलीविजन पर दिखी थी वो अक्रान्त आकृति शायद एक हिन्दुस्तानी औरत की जो कट कर मरी थी। कापली स्क्वेयर सबवे स्टेशन पर औरत का सर, बाकी जिस्म कट गया था और जिस्म के टुकड़े मिले थे यहाँ-वहाँ बिखरे। यह ख़बर टेलीविजन पर बार-बार दुहराई गई थी। लड़की यानी वह मृत औरत बारह बजे तक अपने घर थी। स्टेशन से घर शायद 3-5 मील तक की दूरी पर था। लड़की के पास गाड़ी नहीं थी। कौन पहुँचा गया उसे वहाँ कापली स्क्वेयर तक। कोई दोस्त, कोई सहेली पहुँचा गई उसे वहाँ ? इतनी भयानक घटना कैसे घट गई, लड़की तो इतनी सुंदर थी सिनेतारिका जैसी। कितनी सुंदर थी लड़की, कितनी मिठास थी, कितनी नफासत, कितना धीमा-धीमा बोलती थी लड़की! क्या उसके अंदर लावा धधक रहा था ? हर बात पर नापतोल कर बात करने वाली लड़की यह कैसे घट गया ? हर बात में स्टेटिस्टिक, नम्बर्स, नाप-तोल करने वाले अमेरिकी बस एक ही बात में उलझ गये थे- लड़की ने पाँच मील का रास्ता कैसे तय किया - बिना कार के, टैक्सी के ? क्या लड़की वहाँ दौड़ कर पहुँची थी? कितना तेज दौड़ी थी लड़की? कैसे भागी थी लड़की? लड़की तो इतना धीरे-धीरे चलती थी।

कौन दोस्त, सहेली उसे वहाँ पहुँचा गया ? क्या कोई साजिश थी ? कहीं कोई कॉन्सप्रेसी उनके लिए इस बात की कोई अहमियत नहीं थी कि एक औरत मर गई है। यह औरत आई थी बड़ी दूर से इस मनहूस शहर में घर बसाने, ज़िन्दगी बनाने, मृत लड़की के भाई थे पर वो अपने घरवालों की इकलौती बेटी थी। लड़की इतनी सुंदर थी कि लोग बाग देखते रह जाते थे। लड़की उनमें से थी जो मौसम के फूलों के साथ उन्हीं रंगों की साड़ियाँ रंगवाती थी और पहनती। जब वो साड़ियों और बालों में लगाये फूलों के साथ कैम्पस पर चलती तो लोग बाग उसे देखते रह जाते थे।

पर उस साल अटलान्टा में लगातार बारिश होती रही थी। चार मनहूस हफ्तों तक, चार मनहूस हफ्तों में इक्का-दुक्का बार ही सूरज निकला था और वो भी ज़्यादातर देर को नहीं। वैसे अटलान्टा सुंदर फूलों वाला शहर है। हरियाली वाला शहर था बसंत में अटलान्टा रातों-रात रंगों से बिखर जाता था जैसे किसी ने होली खेली हो, सफेद गुलाबी डागवुड घरों के बाहर और जंगलों के घने पेड़ों पर बिखर जाते थे। घने पेड़ों पर बिखरे सफेद डागवुड जँगलों में बिखरी चाँदनी के मानिन्द लगते थे। पूरा का पूरा शहर बैंगनी, उनाबी, सफेद फूलों से घिर जाता था। सफेद, बैंगनी फूल हर पेड़-झाड़ी और ठूँठ पर बिछ जाते थे - रेशमी कालीन के मानिन्द !

पर उस साल अटलान्टा का आकाश बड़ा मनहूस था। तीन-चार हफ्तों तक बराबर बारिश हुई थी। अटलान्टा का आकाश न नीला, न काला पर अजीब तरह का मनहूस ग्रे रहता था। और छोटी-छोटी काली चिड़ियायरँ जाने कहाँ से आ गई थीं। उन्होंने अटलान्टा पर धावा बोल दिया था और हर दिन तीन और चार बजे के दरम्यान हर घर का लान आँगन इन चिड़ियों की बिसात में आ जाता था। वो घेर लेती थीं, हर घर आँगन को। हर आँगन लॉन पर एक काली सी चादर बिछ जाती थी। जब एक चिड़िया चाँव-चाँव करती ऊपर उठती तो एक काली चादर आँगन से उठ आकाश पर तन जाती और पूरा का पूरा आकाश काला हो जाता। वैसे देखें तो इन चिड़ियों की किस्म निहायत छोटी थी। पर जब एक साथ धावा बोलतीं तो शोर-शराबे के साथ तो पूरा का पूरा शहर काला मनहूस हो जाता था, लगता जैसे किसी आनेवाले हादसे की आगुआई कर रही थीं वे चिड़ियाँ! इनकी चिल्लाहट इतनी नह्स भी कि वो साल शहर के हिन्दुस्तानियों के लिए बड़ा मनहूस था। दो हिन्दुस्तानी बच्चों ने खुदकुशी कर ली थी अपने को गोली से मार, और अब इस हिन्दुस्तानी औरत के गोल-मटोल चेहरे पे बड़ी-बड़ी आँखें सबको बराबर आतंकित कर रहीं थीं। वह क्यों मरी, कैसे मरी, कौन पहुँचा गया उसे स्टेशन तक ? वो बारह और एक के दरम्यान मरी थी और उसकी लाश के टुकड़े मिले थे जहाँ-तहाँ। क्या अजीब बात है। उसका सारा शरीर टुकड़े-टुकड़े था पर चेहरा एकदम साबुत और सुंदर सलोना चेहरा वैसा का वैसा लड़की जिस अस्पताल में काम करती थी, उस मंजिल पर लैब में दबी-दबी आवाजों में एक ही बात बार-बार दुहरायी गयी थी। How did this happen How could this happen & how could we have stopped this & she was so pretty & so young, so soft spoken so kind & so gentle & so very beautiful & she was like a movie star.

लड़की लैब में टैक्नीशियन नर्स का काम करती थी। बीमार मरीजों का पेशाब, मल, ब्लड के सैम्पल इकट्ठे और एनालाईज करते हुए लड़की में मनहूसी भर गई थी। लड़की मूवी स्टार जैसी दिखती थी और काम कर रही थी, ऑनक्लॉजी फ्लोर पर। ऑनक्लॉजी लैब में रोगियों का मल, मूत्र ढोती लड़की। टी.वी. वालों ने कहाँ पायी थी लड़की की इतनी सुंदर तस्वीर? क्या यह स्टूडियो पोट्रेट था ?

जो लड़की सुंदर फूलों के रंगों की रंगी साड़ियाँ पहनने वालों में से थी उसकी साड़ियाँ कब की अलमारियों में कैद थीं। लड़की के खुले सुंदर बाल कसे जूड़े में बदल गये थे। लड़की की साड़ियों की जगह ले ली थी मनहूस अस्पताल की यूनीफार्म ने। लैब में काम करते लड़की बार-बार अपमानित हुई थी। मल, मूत्र, टिश्यू के सैम्पल एनालाईज करते हुए सीनियर नर्स से बार-बार टोकी गई थी। बार-बार अपमानित होती लड़की लम्हा लम्हा टूटी और बेइज्जत हुई। क्या लड़की में कोई प्रेत थे जो उसे अंदर निगले जा रहे थे। लड़की कैंसर वॉर्ड में काम करती थी, क्या पति, मरीज और सीनियर नर्स उसे कैंसर की तरह निगल रहे थे ? कैंसर, जहाँ आप के ही जिस्म के ‘सैल्स‘ धीरे-धीरे नष्ट कर रहा होता है वैसे ही बाकी के जिस्म के हिस्सों को निगल रहा होता है।

क्या मृत लड़की का घर बड़ा और सलीके से सजा था या छोटा सैंकेड हैंड फनीचर - वो भी फटीचर, से भरा? क्या पति के भाई, बहन, रिश्तेदार बार-बार उसे परेशान करते थे - हमें वहाँ बुलाओ, हमें ग्रीन कार्ड दिलवाओ, वहाँ तो सुना है लोग रातों-रात करोड़पति हो जाते हैं। वहाँ तो सुना है सम्भावना ही सम्भावना है। नहीं शायद ऐसी कोई दिक्कत उस मृत लड़की के साथ नहीं थी! उसका घर सुंदर था, उसका पति सुंदर था। उसके पास नौकर था। काम तो शायद वह अपने को व्यस्त रखने के लिए करती थी। फिर मानहीगन आई लड़की सोचती है कि ऐसा वो किसे बहकाने और बहलाने के लिए सोच रही है ! मृत लड़की का पति हव्वा रहा होगा, बदसूरत रहा होगा, कहता होगा, “थोड़ा पैसा और आ जाये तो बड़ा घर लेंगे। थोड़ा पैसा और हो जाये तो मर्सिडीज् लेंगे। थोड़ा पैसा और हो जाये तो अपने माँ-बाप को बड़ा घर बनवा दूँगा। थोड़ा पैसा और हो जाये तो बच्चों का ट्रस्ट फंड, यहाँ पढ़ाई कितनी महँगी है। तुम मास्टर्स कर लो, तो सुपरवाईजर हो सकती हो, तुम्हारी तो अंग्रेजी इतनी अच्छी है। तुम्हारी तो पर्सनेलिटी इतनी अच्छी है।...” यही सब कहता होगा वह लालची !

मृत लड़की आर्मी ऑफिसर पिता की बेटी थी। वो थे तो दक्षिण के, पर हिन्दुस्तान के हर भाग में रहे। उसे दक्षिण भारतीयों के काले तेल लगे चिपचिपे बालों से नफरत थी। लड़की पब्लिक स्कूल की पढ़ी थी। उसे कांजीवरम की सुंदर से सुंदर साड़ी के साथ काले सफेद ब्लाउज पहनने वाली दक्षिण भारतीय औरतें बेहद नापसंद थीं। लड़की ने बी. ए. ऑनर्स इंग्लिश में किया था। लडकी लैब टैक्नीशियन न बनती तो कम्प्यूटर सीखती। लड़की कम्प्यूटर सीख नहीं पायी। ब्लड, यूरिन और टिश्यू सैम्पल फारमेल्डेहाईड में फिक्स करते-करते लड़की के दिमाग के तन्तु भी फिक्स हो गये थे। सुंदर फूलों की जगह ले ली थी फारमेल्डेहाईड ने। लड़की जब पहली बार शवगृह में ऑटोप्सी के सैम्पल्स लेने गयी थी, तो बेहोश हो गयी। और फिर हफ्तों उसे शवगृह का नाम सुनते ही उबकाई होने लगी थी। पूरा हफ्ता खाना ठीक से नहीं खा पायी थी।

क्यों नहीं की लड़की ने शिकायत ? क्यों नहीं कहा कि मुझे नहीं करना काम, लैब टेक्नॉलोजिस्ट का। ऑनक्लोजी वार्ड - ऑनोक्लोजी लैब में जहाँ हर कोई लम्हा, लम्हा मरता हुआ है। क्यों नहीं कहा लड़की ने, तुम सब मुझे, हर कोई मुझे लम्हा लम्हा निगल रहे हों। कैंसर की तरह, कैंसर की तरह।

पर हर रात पति की सशक्त बाहों में उसे जरूर सकून मिला होगा- अपार्टमेन्ट से घर, और वो भी सुंदर घर में जाते हुए लड़की खुश हुई होगी। क्या लड़की ने घर फूलों से सजाया था या लैब के फारमेल्डेहाईड की बदबू उसके जिस्म, घर और घर की हर चीज पर हावी हो गई थी ? जिस लैब में वो काम करती थी उस लैब में उसके मरने के दूसरे हफ्ते ही गुफ्तगू हुई थी। पहली काली नर्स, “तुम्हें याद है जब उसका पहला बच्चा होने वाला था तो एक दिन जमीन पर बैठे कैसे बिलख-बिलख कर रोई थी। "I want to kill myself, I want to kill myself" दूसरी काली नर्स, “पर वो तो सिर्फ एक बार ही हुआ था। कभी दोहराया नहीं उसने उस वाक्य को। और दूसरे बच्चे के वक्त वो कैसे एकदम ठीक थी। याद है, जब मेरी माँ मरी थी, तो कैसे मुझे बराबर दिलासा देती थी और हफ्ता भर मेरे लिए खाना भी लाई थी। और जब मार्था की लड़की ड्रग्स पर थी तो रोज उसे घंटों प्यार से समझाती थी। वो ऐसा कर ही नहीं सकती थी, वो हर एक के बच्चे को कैसा दुलारती थी और बच्चे भी उससे कैसे हिलमिल जाते थे, जैसे वो उन्हीं में से एक हो।‘‘

ब्रिघम यंग अस्पताल में लड़की की सुपरवाइजर एक काली और एक सफेद नर्स, दोनों मोटी और दोनों खूँखार और दोनों ही बदसूरत। दोनों बात-बात पर मीन-मेख निकालतीं। लड़की पिछले वार्ड में ज़्यादा खुश थी। यहाँ ऑनक्लोजी लैब में प्रमोशन के बाद आई थी। इन दोनों खूसट वृद्धाओं से वह ज़्यादा कुशल थी पर यह दोनों ही उसके पीछे लगी रहती थीं बराबर। काली सुपरवाइजर एक काली नर्स को लाना चाहती थी और सफेद अपनी भतीजी को, और उन दोनों की जगह ली गई यह हिन्दुस्तानी लड़की। सफेद सुपरवाइजर कहती, ‘‘यह अस्पताल है, इतना काजल न लगाया करो।‘‘ उसने काजल लगाना बंद कर दिया था और लिप्सटिक की जगह ले ली थी चॉपस्टिक ने।

उसने पति से कहा था, ‘‘यह दोनों जानती हैं, मैं सुंदर हूँ। लोग मेरी तारीफ करते हैं ओर यह दोनों मुझसे जलती हैं। और मैं उम्र में इन दोनों से कितनी छोटी हूँ।‘‘ पति ने हँस कर कहा था, “तुम्हारा वहम है। मैं जब भी तुम्हें लेने आया हूँ कितनी तारीफ करती हैं तुम्हारी मुझसे। जरा प्यार से काम लो, जरा मस्का लगाओ, खुश हो जायेंगी। यह उन दोनों का मुल्क है, हमें थोड़ा-बहुत तो सहना होगा। तुम अब भूल जाओ, कि तुम अपर मिडिल क्लास आर्मी ऑफिसर की बेटी हो, देखो मुझे भी कितना सहना पड़ता है और देखो हिन्दुस्तान की इंगलिश की बीए डिग्री से क्या होना था यहाँ ! कम्प्यूटर कोर्स तुमसे निभे नहीं, पसंद नहीं आये, अब देखो टैक्नीशियन की डिग्री मुश्किल नहीं। यह अस्पताल नहीं और यह लैब नहीं तो और सही।‘‘ यह सब कह उसने उसे थपथपा दिया था और उसने सब कुछ भूल जाना चाहा था।

एक बार वो दोनों नर्से उस पर एक साथ चिल्ला रही थीं। उसने सैम्पल गलत फाइल कर दिये थे। जब वो चिल्ला रही थीं वो एकदम ख्यालों में खो गई थी। उसकी मुट्ठियाँ बंधी थी और खयालों में वो उन दोनों की गर्दनें मरोड़ रही थी और खयालों में उसने उनकी चटखती हड्डियों की आवाजें सुनी थीं, ‘चटख‘, ‘चटख‘ वो गर्दनें मरोड़ रही थी हड्डियाँ चटख रही थीं। फिर उसका ध्यान अपने पिता के आर्मी खानसामे पर चला गया था। गर्दन मरोड़ कर मुर्गियाँ मारता था। तब उसका मन दुःखता था। उसने कहा था, ‘‘पापा, पापा उनसे कहिए इस तरह न मारा करें मुर्गियों को।‘‘ वह जो स्वयं कभी मछली तक नहीं साफ कर पाती थी अब देखो कैसे ऐरे गैरे का मल मूत्र ढोती है एनालाईज करती है। बॉयोप्सी सेक्शन में किसी की ओवरीज किसी के लंग्स, किसी का प्रोस्टेरेट, किसी का कोलन! जब वो खयालों में उनकी हड्डियाँ चटखा रही थी तो दूसरी एक नर्स ने पूछा था, ‘‘क्या सोच कर मुस्कुरा रही हो?‘‘ उसने कहा था, ‘‘कुछ भी नहीं।‘‘ वो सोचती गई थी कमजोर हड्डियाँ, मजबूत हड्डियाँ, फिर वो मन ही मन ख़ूब हँसी थी। काले लोगों की हड्डियाँ बड़ी कड़ी होती हैं। वो काली की गर्दन आसानी से नहीं मरोड़ पायेगी पर यह सफेद चुड़ैल की कमजोर हड्डियाँ एकदम चुरमुरा जायेंगी। मेरे हाथों एकदम टूटेंगी मुरमुरा जायेंगी फिर देखूँगी, यह दोनों मुझे कैसे दबायेंगी। फिर वो घबरा जाती है खुद-ब-खुद ‘राम राम राम राम‘ कहना शुरू कर देती है। हे भगवान, मुझे माफ कर मैं यह क्या गलत-शलत सोच गई। हे भगवान् ! यह तो पाप है। मुझे क्षमा कर। ‘‘हे राम हे राम राम राम राम राम‘‘

हे भगवान माफ करना। वैसे यह अच्छी औरतें हैं। जब अच्छे मूड में होती हैं तो मुझे कैसे हनी, हनी कहती हैं। जब मेरा बच्चा होने वाला था तो कितना अच्छा ‘बेबी शावर‘ दिया था। सारा घर बच्चे की ऊनी शॉलों, काम की चीजों और कम्बलों से भर गया था। तरह-तरह के खिलौने तरह-तरह के ब्लैंकेट्स बच्चे के सैक्स का पता नहीं था। इसलिए आधी चीजें नीली और आधी गुलाबी थीं और कुछ लोगों ने हल्के हरे रंग की चीजें दी थीं। लड़का हो तब भी ठीक, लड़की हो तब भी ठीक। सुंदर छोटे-छोटे तकिये, छोटी-छोटी कम्बलें, छोटी-छोटी जुराबें। सब चीजें घर ले जाकर उसने बिस्तर पर सजाई थीं और सजे बिस्तर पर चीजों के बीच बैठ वो बहुत खुश हुई थी पहले बच्चे के वक़्त। वैसे उसे बच्चों का ज़्यादा चाव नहीं था, पर उन लम्हों में वो बेहद खुश थी बेहद !

और बच्चा होने के बाद कितना डिप्रैस हो गई थी, बात-बात पर रोती, बात-बात पर खीझती। घर से काम पर भागती और काम से घर !

बच्चा यहाँ हो कि हिन्दुस्तान में हो ? यहाँ ही होना चाहिए नहीं तो नागरिकता की समस्या होगी। उसके पति ने अपनी माँ को बुलवा लिया, वो यूँ भी आना चाहती थी। तरीके से सजाया मृत लड़की का घर दक्षिण भारतीय खानों की, मिर्च मसालों की बदबू से भर गया था। तीन साल लगे थे, पति को समझाने और उसके तेल से चिपचिपे बालों को ब्रिलक्रीम जैसे रूखे बालों में बदलने! पिछली बार माँ के आते ही पति का सिर चिपचिपे तेल लगे बालों में परिवर्तित हो गया। बहुत देखा है इसकी माँ का प्यार ! वही नारियल का तेल, वही शिकाकाई की धुलाई। तेल के धब्बों से भर गये थे घर के सारे तकिये। उसे नहीं चाहिए चिकने बाल, उसे नहीं चाहिए चिकने तकिये, कितना छिड़काव करती थी वह पाईन स्प्रे का वाइल्ड फ्लॉवर स्प्रे का। फिर भी घर से मसालों की खुशबू कभी बरी नहीं होती थी। कहीं उस पर, और उसके बच्चों पर इसकी माँ ने पूरा अधिकार जमा लिया तो! पति समझाता, “तुम्हें खुश रहना चाहिए। कितना ख़्याल रखती हैं बच्चे का और तुम्हें भी खाना-वाना नहीं बनाना पड़ता। बस तुम माँ के यहाँ रहने का लाभ उठाओ और एम.टेक कर डालो। सुपरवाइजर बन जाओगी।‘‘

मानहीगन आई लड़की सोचती है वो बदसूरत आदमी उसका पति फिर बातों-बातों में उसे दबा गया होगा। उसने भी सास की बुराई की होगी, उनके पीछे, पर सामने वो भी चुप बनी रही होगी। मीठी-मीठी बातें, धीमी-धीमी बातें, अच्छी लड़की का नाटक, वही नाटक तो वो लड़की काम पर भी करती रही होगी। स्वीट ज़ैन्टल और काइंड। जब एकदम नहीं निभता तो भभक-भभक कर रो पड़ती होगी। बिलख जाती, बिखर जाती। लोग दंग रह जाते। वे कहते होंगे, “तुम इतना गुस्सा भी हो लेती हो ! जब कोई बात हो तो डट कर जवाब दो। अंदर ही अंदर मत घुलो, तभी तो तुम्हारा गुस्सा लावे की तरह फूटता है।‘‘ मानहीगन आई लड़की सोचती है, इस तरह लम्हा, लम्हा उसका मरना ठीक नहीं था।

मानहीगन आई लड़की सोचती है, क्या उस मृत लड़की के बच्चे, घर, पत्थरों पर लगे केंचुओं की तरह चिपक गये थे। केंचुएँ चिपकते हैं पत्थरों से, जीवित रहने के लिए। क्या पति-पत्नी का रिश्ता पारस्परिक था या परस्पर भक्षण का ? कभी वह मृत लड़की ऐसे एकदम चुप हो जाती होगी और कभी ऐसे चिल्लाती होगी कि बच्चे, पति सहम जाते। छः सालों में तीसरा बच्चा ! दूसरे बच्चे के बाद वो इतना चुपा हो गई होगी कि एन्टीडिप्रसेन्ट लेने शुरू कर दिये और फिर थैरेपिस्ट के पास भी तो गई होगी। छः महीने तक। फिर थैरेपिस्ट और दवाई एक आदत सी।

उसे यह नहीं कहा किसी ने कि नौकरी छोड़ दो। कितना काम है दो-दो बच्चों को सम्भालना, नौकरी करना। मृत लड़की ने सोचा होगा नौकरी छोड़ भी दे तो दो-दो बच्चों के साथ घर रहते हुए वो पागल हो जायेगी। सुबह उठना, खुद तैयार होना, बच्चों को तैयार करना, डे केयर सेन्टर छोड़ना। तुम छोड़ जाओ, वो लेता आयेगा। वो छोड़ जायेगा तुम लेती आना। मानहीगन आई लड़की सोचती है क्या रेल के नीचे कट कर मर जाने वाली लड़की ने कभी समुद्र देखा था ? समुद्र तक गई थी ? क्या उसने मेरी तरह समुद्र की लहरों के थपेड़ों का सुकून भोगा था ? क्या लड़की को समुद्र की लहरें लोरी देतीं थीं? क्या लड़की ने कभी समुद्र तट पर सोचा था कि लहरों में समा जाये? समुद्र उसे धीरे-धीरे थपकियाँ दे सुला दे। नहीं, लड़की ने समुद्र नहीं देखा होगा, देखा होता तो इस तरह की तकलीफदेह मृत्यु न अपनाती। समुद्र में डूब जाती, स्लीपिंग पिल्स ले लेती। पर अटलान्टा के पास तो समुद्र है ही नहीं। समुद्र तक जाने के लिए लड़की को मियामी जाना पड़ता या सेंट सिमोन्स। उसके लिए वक्त चाहिए था उस मृत लड़की के पास वक़्त कहाँ था? उसे जल्दी ख़त्म होना था। लड़की की बार-बार दिखलाई टी.वी. की तस्वीर। अरे यह तो खुद बच्ची लगती है। इतनी सुंदर सिनेतारिका जैसा चेहरा मरी लड़की उन हिन्दुस्तानी औरतों में थी जिस पर अमेरिकी कपड़े फबते थे। वैसे अधिकाँश हिन्दुस्तानी औरतें अमेरिकी कपड़े पहनती हैं, तो लगता है किराये के कपड़ों में हैं। लड़की को याद आई होगी, अपने घर के नौकरों की, भाइयों और डैडी की पुरानी पैन्ट कमीज। कितना अटपटे लगते थे शुरू-शुरू में। फिर आदत सी हो गयी होगी। अक्सर हिन्दुस्तानी औरतें अमेरिकी लिबास में अटपटी लगती हैं।

मरने वाली लड़की स्वयं ऊँचे कद और छरहरे बदनवाली थी और अक्सर पेन्ट सूट और ड्रेसेज में मॉडल जैसी दिखती थी। क्या लड़की ने कभी मॉडल होना चाहा था? आर्मी ऑफिसर बाप की बेटी, कॉन्वेन्ट एज्यूकेटिड, 

बी.ए. के बाद बड़े सुलझे ढंग से उसके पिता ने अख़बार में इश्तहार निकाला था:

Very good looking

Convent educated

Light skinned girl

Reply with complete biodata

और अमेरिका से लौटे एमआईटी में पढ़े इंजीनियर सजातिये लड़के से शादी हो गई। लड़की को विदेश जाने का बड़ा चाव था और वो दक्षिण भारत में रही ही कब थी। उसने सोचा था, अमेरिका जायेगी। बेलबॉटम्स पहनेगी। बाल छोटे करवायेगी। वो जरूर सुंदर साड़ियाँ पहनेगी और हर शाम को वो और उसका पति क्लब जायेंगे। डाँस करेंगे। ढ़ेरों सोशल इंगेजमेंट होंगे। वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ। पति का अपार्टमेन्ट आर्मी के ख़ूबसूरत बंगले से कहीं छोटा, और न ही वहाँ पिता का प्यार से लगाया फूलों-फलों से लदा बगीचा। छोटा अपार्टमेन्ट फ्रोजन फूड्स और मिर्च मसालों की खुशबू, अपार्टमेन्ट की हर चीज में कारपेट से लेकर पति के कपड़ों तक, चाहे स्पैगेटी हो चाहे पिज्जा हो, पति हर चीज पर मिर्ची, आचार या इमली की चटनी जरूर डालता था। कटे ताजा फूलों की जगह प्लास्टिक के फूहड़ फूल लड़की से गृहस्थन बन गई थी। कम्प्यूटर कोर्स निभा नहीं लैब टैक्नीशियन का कोर्स कर डिप्लोमा लिया।

अपार्टमेन्ट से घर

फिर बड़ा घर 

एक बच्चा

दूसरा बच्चा

तीसरे की शुरूआत

पति से झगड़ती होगी। पति नसीहत देता, “तुम बात-बात पर हिन्दुस्तान से कम्पैरिजन क्यों करती हो। यहाँ कोई मिडिल क्लास अमेरीकी या हिन्दुस्तानी, क्लब नहीं जाता और हिन्दुस्तान में ही कितने लोग क्लब जा पाते हैं? और नौकर हिन्दुस्तान में भी अब कितने लोग रख पाते हैं? तुम्हारे लिये तो यहाँ इतनी सुहूलत रही हैं। जानती हो, हिन्दुस्तान से आये डॉक्टर यहाँ रेजीडेन्सी से पहले मेकडोनाल्डस् तक में वेटर का काम कर रहे हैं। जानती हो, तुम्हारी शादी मिडिल क्लास फैमिली में हुई है, किसी रईस घराने में नहीं। और देखो, बहुत अपर-मिडिल क्लास और रईसों में अब डायर्वोस भी कितने होने लगे हैं। ‘‘ लड़की पहले पहल थोड़ा रोई धोई होगी, चिल्लाई होगी फिर एकदम शान्त हो गई होगी। ठीक उसी तरह जब माँ ने स्कर्ट पहनने से मना कर दिया था। और फिर कॉलेज के ट्रिप पर नहीं जाने दिया था।

लड़की पहले रोती थी, फिर एकदम शान्त। एकदम हार मान लेती थी। उसकी चुप्पी बर्फ की शिला में बदल जाती थी। शादी से पहले एक तरह से लगा था कि विदेश से लौटा लड़का, अमेरिका में रहने वाला पति, उसके लिए मुक्ति लायेगा, पर मुक्ति के लिए तो मरना पड़ता है।...

तो भी लड़की की ज़िन्दगी बेमायना नहीं रही होगी। उसने बेलबॉटम्स खरीदे और पहने होंगे। के मार्ट -वालमार्ट से चीजें खरीद घर सजाया होगा। के मार्ट और वालमार्ट से लॉर्ड एंड टायलर तक पहुँचते तो सालों लग जाते हैं। लड़की वहाँ तक अभी नहीं पहुँची होगी। लड़की अपार्टमेन्ट से बड़े घर पहुँची। छोटी गाड़ी से बड़ी गाड़ी और कुछ सालों में मर्सिडीज की भी सोची होगी। वो हर साल छोटी-मोटी छुट्टियों पर भी जरूर गये होंगे। रहे, अलबत्ता हिन्दुस्तानी दोस्तों या वाकिफों के यहाँ ही, जैसा कि हर हिन्दुस्तानी करता है। अच्छे होटलों में रह सकते हैं हिन्दुस्तानी, पर रहेंगे नहीं। औरत को, लड़की को सब्र चाहिए। सब्र निहायत जरूरी है, अच्छी ज़िन्दगी के लिए।

मुमकिन है मानहीगन आई लड़की ही यह सब कुछ सोच बैठी हो। उस बेचारी मृत लड़की ने ऐसा कुछ सोचा नहीं, कहा नहीं, लड़की तो ऊँचा बोलती तक नहीं थी। पिछले पाँच सालों में लड़की एक-दो बार ही चिल्लाई होगी। सास से भी ऊँचा नहीं बोली लड़की। लड़की सब कुछ अंदर ही अंदर दबा लेती होगी। देखो तो लड़की के अंदर लावा धधक रहा, उफान कभी भी फूट पड़ेगा। लड़की छोटी ख्वाहिशें करती होगी, जो दब जाती। कभी अपनी युक्तियों से और कभी पति की सीख से। “अभी इस पुराने कोट से काम चल सकता है। मैं भी तो आठ साल पुराना कोट पहन रहा हूँ।‘‘ ‘‘मुझे हमेशा से फर कोट की चाह रही है।‘‘ ‘‘तुम क्या पढ़ती नहीं, कितने लोग फर कोट के विरोध में प्रदर्शन करते हैं और तुम फर कोट पहन अस्पताल जाओगी और अटलान्टा में इतनी सर्दी ही कब पड़ी है कि फर कोट पहना जाये?‘‘ वो जल्द मान जाती। पति प्यार से कंधा थपथपा देता होगा। लड़की के छोटे-बड़े तूफान थोड़े से उफान के बाद सिकुड़ जाते, या बुलबुलों की तरह फट जाते रहे होंगे।

उसे याद होगा कि जब वो पहले बच्चे से थी, सवाल उठा था बच्चा यहाँ पैदा हो या हिन्दुस्तान। वो अभी इमीग्रान्ट थे। बच्चा यहाँ नहीं हुआ तो नागरिकता कैसे होगी। बच्चा यहीं होना चाहिए। पति की माँ अपने बेटे बहू से मिलने को उदास है, वो आ जायेगी, सारा घर सम्भाल लेगी। सारा घर दक्षिण भारतीय मिर्च मसालों की खुशबू से भर गया होगा। पति के रूखे बाल शिकाकाई की खुशबू से भर गये होंगे। तेल सने बाल ! लड़की को तेल सने बालों से नफरत थी। वैसे सन्दल और मोगरे की खुशबू लड़की को बेहद पंसद थी। पर मिर्च मसालों की बदबू के बीच मोगरे की खुशबू भी उसे सता जाती और बच्चे और घर भर पर इसकी माँ ने पूरा अधिकार जमा लिया। वह जानती रही होगी कि पति की माँ, ख़ूब पट्टियाँ पढ़ाती थी उसके पति को। और जाते वक़्त लाद दी गई थी उसपर सोने की एक मोटी चेन। लड़की ने भी कितना कुछ खरीद सूटकेस भर दिये थे। अच्छी बहू का नाटक करते साड़ियाँ उनके लिए उनकी बेटियों के लिए, उनकी दूसरी बहुओं के लिए। कॉस्मेटिक, टपर वेयर, क्रॉकरी, क्रिस्टल और प्लास्टिक के फूल, सिल्क के फूल। सूटकेस इतने भरे कि सीवने तक फट रहीं थी।

सास तो जाना नहीं चाहती थी, वही तंग आ गई थी। डेढ़ साल रही हैं अब और कितना रहेंगी। फिर पहले बच्चे के दो साल का होते ही दूसरा बच्चा और यह तीसरा। पति पूछता, “कैसे निभाओगी ? तुम्हें दूसरे के वक़्त याद है, कितनी दिक्कत हुई थी। माँ को बुला लें ? वो आने को कह भी रही हैं।‘‘ वह भभक उठी होगी, ‘‘नहीं, नहीं। तुम्हारी माँ तीसरी बार अमेरिका आये और मैं अपने माँ-बाप को मिलने छः सालों में एक बार भी न जा सकूँ।‘‘ वैसे उसे अपनी माँ से कुछ ज़्यादा मोह नहीं था। नहीं, मैं इसकी माँ की तंज भरी बातें नहीं सुनूँगी। वो बास, वो गंध नहीं चाहिए मुझे इस घर में। पेट में बच्चे की वजह से वैसे ही मुझे कितनी उबकाई आती है और इसकी मनहूस माँ के आते ही सारे घर में वही मिर्च मसाले, जलती मिर्चों की बदबू, वही तेल सने तकिये। मृत लड़की ने सोचा होगा, पति ने फुसलाया होगा, “देखो, पिछली बार बच्चे को ले कितनी तकलीफ हुई थी। तुम्हारा और बच्चे का ख़्याल करते-करते मेरा डिमोशन हो गया। नहीं, मैं दुबारा वैसा नहीं होने दूँगा। मेरा काम ऐसा नहीं कि मैं सात-आठ बजे से पहले घर आ सकूँ। अगर माँ नहीं आयेगी, तो तुम कैसे सम्भालोगी नौकरी और तीन-तीन बच्चे।‘‘ धमकी जैसी दी होगी।

पति ने एक बार भी नहीं कहा होगा कि नौकरी छोड़ दो। मैं सब सम्भाल लूँगा। ‘‘नहीं! इसकी माँ नहीं आयेगी, मैं इसकी एक भी नहीं सुनूँगी। मैं बच्चे पैदा करने वाली मशीन नहीं और इसकी माँ नहीं आयेगी, और दोनों बच्चों को यहाँ छोड़ मैं तीसरे को पैदा करने हिन्दुस्तान भी नहीं जाऊँगी। इसे बच्चों का मोह है, अपनी माँ का मोह है, मैं न इसे छोडूंगी, न इसकी माँ को, न बच्चों को। मैं इन सबको ख़त्म कर दूँगी। मैं इन सबको ख़त्म कर दूँगी। देखूँगी, यह माँ-बेटा मुझे कैसे सताते हैं। कैसे सताते हैं। वह लड़की दूसरे बेडरूम में चली गई होगी। उसने बच्चों को नहलाया और खाना खिलाया होगा। दोनों बच्चों को दायें, बायें लिटा खुद बीच में लेट गयी होगी। वो शायद ख़ूब रोई होगी। पति दस और ग्यारह के दरम्यान उसके कमरे में आया होगा। उससे पहले कम्प्यूटर पर ऑफिस का काम करता रहा था। अगर वो पहले आता तो वो उसे दुत्कार देती। पति ने कहा होगा, “मैंने कुछ गलत नहीं कहा था। माँ बार-बार आने को कह रही थी। तुम्हारी डिलीवरी भी हो जायेगी, और उसकी बात भी रह जायेगी।‘‘ वह भी लड़की को पता था कि उसकी अपनी माँ नहीं आयेगी। वह उसके बीमार पिता को अकेला छोड़ती कब हैं? और जब से हार्ट अटैक हुआ है, एकदम नहीं। और वह खुद भी कह चुकी थी कि बच्चों को सम्भालना उसकी माँ के बस में नहीं, उनसे नहीं निभेगा।...

शायद पति दस और ग्यारह के दरम्यान कमरे में आया होगा। दरवाजे पर ही खड़ा रहा होगा। उसने कहा होगा, ‘‘चाय दूध कुछ लोगी! कुछ बना दूँ? क्या तुम्हारा सर अभी भी दर्द कर रहा है ? एडविल की गोली लोगी !” वो भभक उठी होगी, ‘‘मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे तुम ऐसे ही रहने दो।” “अच्छा, तो मैं बच्चों को ले जाऊँ अपने कमरे में तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं। तुम्हें रात भर सोने नहीं देंगे!” उसने सख्ती से कहा होगा, “नहीं यहीं रहने दें। तुम्हें भी तो उठायेंगे। तुम्हें भी तो सुबह उठना है।” “उठना तो तुम्हें भी है तुम्हारा कॉल वाला वीकेंड है...‘‘, ‘‘नहीं, मैं कल काम पर नहीं जाऊँगी।...” “अच्छा तुमने दवाई ले ली, भूली तो नहीं।...‘‘

पिछले बच्चों के बाद वो बहुत डिप्रेस्ड थी। थैरेपिस्ट ने कहा था शायद थोड़ी मैनिक डिप्रेस्ड है और बच्चों के बाद कभी-कभार ऐसा हो जाता है। अक्सर अब सालों से एन्टीडिप्रसेन्ट ले रही थी। दवाई का नाम सुनते ही वह भभक उठी होगी। ‘‘यह हर दम मेरी दवाई के पीछे लगा रहता है। मेरी दवाई की इसे बड़ा फिक्र है। इसे हफ्ते में दो-तीन बार सोने के लिए तवायफ चाहिए और अपने बच्चों के लिए नौकरानी। फिर उसने सोचा होगा वो उसके साथ ज्यादती कर रही है। वो सचमुच उसे चाहता है। कितने हिन्दुस्तानी पति कहेंगे कि बच्चे उनके साथ सो जायें क्योंकि बीवी की तबीयत ठीक नहीं? फिर अंदर से आवाज़ आई होगी, नहीं, नहीं, यह बहुत चालाक आदमी है। किस तरह फुसला कर मुझसे नौकरी करवा रहा है। अपनी माँ को बुलाना चाह रहा है ओर अपने घरवालों के लिए कितना आलीशान घर बनवा रहा है, वहाँ हिन्दुस्तान में। नहीं, मैं इसके चैंचलों में नहीं पड़ूँगी, नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए।...

उसका सर फटा जा रहा होगा। फटा जा रहा होगा। दिल धौंकनी की तरह हो हो कर रहा होगा। वह डूबती जा रही होगी ! उसके चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा। और अब 

अँधेरा उसके अंदर पनप रहा होगा... यह माँस का लोथड़ा। मैं इसे ख़त्म कर दूँगी। मैं इन सबको ख़त्म कर दूँगी। मुझसे नहीं सहा जा रहा, मुझसे नहीं सहा जा रहा। चारों ओर अन्धेरा ही अन्धेरा है। मेरा सर फटा जा रहा है। जैसे मेरे सर में बारूद का गोला है जो कभी भी फट जायेगा, फट सकता है। मैं इन सबको ख़त्म कर दूँगी। यही अंजाम है हमारा। इन सबको मेरे हाथों ही ख़त्म होना है। यह नामुराद नहीं पैदा हुए थे तो मैं कितनी खुश थी। वो चुपचाप अपने पेट पर हाथ फेरती रही होगी। जब ये नहीं पैदा हुए थे इतनी डिप्रेस्ड भी नहीं थी। इतनी दहशत मुझमें कब थी और मुझे इतना काम भी कभी नहीं करना पड़ता था। मैं इस तरह रात भर जागती भी नहीं थी ! नहीं मुझसे नहीं होगा तीन-तीन बच्चे, नौकरी नहीं होगी ! नहीं होगी। फिर वो दोनों बच्चों को अपने साथ सटा उनके गालों को, माथे को बार-बार चूमा होगा, उनकी पीठ थपथपाई होगी। सोचा होगा, “इन्हें मेरी जरूरत है, मुझे इनकी जरूरत है। मैं इनसे जुड़ी हूँ, यह मुझसे जुड़े हैं। उससे हमें कुछ नहीं लेना-देना. नहीं-नहीं, यही तो मेरी जान का अजाब है। नहीं मुझे नहीं चाहियें बच्चे। नहीं यही तो हैं मेरा जंजाल, मेरी जान का जंजाल, मेरा अजाब मुझे लम्हा लम्हा निगल रहे हैं। निगल रहे हैं, मैं जिन्दा दफन हो गई हूँ।‘‘ फिर वो चुपचाप दोनों बच्चों को अपने साथ सटा लेट गई होगी। उसका सिर फटा जा रहा है। दिल धौंकनी की तरह धधक रहा है, हाँफ रहा है। उसका दिल बहुत घबरा रहा है। वो सोने की कोशिश करती है। उसे लगता है, उसके अंदर का लावा धधक रहा है, जो किसी दम फूट पड़ेगा।

उसके सर के अंदर बारूद का गोला है। कभी भी फट जायेगा और उसके दिमाग के टुकड़े जहाँ-तहाँ बिखर जायेंगे। कुछ देर उसकी आँख लगती है, बच्चे नींद में कुनमुनाते हैं। एक का हाथ उसकी छाती पर है, और दूसरे का उसकी बाँह पर। उसकी मुट्ठी कस कर बंधी है। वो उठ उठ कर बैठती है और सधे हाथों से तकिया पहले छोटे के मुँह पर रखती है फिर उसका गला दबाती चली जाती है। लड़के की गर्दन एकदम निढाल हो एक तरफ लटक जाती है। फिर वो तकिया दूसरे के मुँह पर रख दबाती, दबाती चली जाती है। उसकी भी गर्दन लटक जाती है एक ओर। चलो यह खेल भी ख़त्म हुआ। इसे ख़त्म होना ही था ! फिर वो दोनों बच्चों के पैरों को चूमती है। कोई कम्पन नहीं, कोई स्पंदन नहीं, सब कुछ ख़त्म। सब कुछ ख़त्म। वो नपे कदमों से पति के कमरे में जाती है, उसे चिल्ला कर उठाती है। तुम उठो, तुम उठो, मैंने दोनों को ख़त्म कर दिया है। तुम पुलिस को इतला दे दो। खबर कर दो, वो घबरा कर कहता है, यह तुम क्या बकवास कर रही हो? फटी आँखों से उसे ताकता भर रहता है। वो घबरा कर दूसरे कमरे में जाता है। सन्न रह जाता है बच्चों को माउथ से माउथ रीस्सीटेट करने की कोशिश करता है। फिर भागकर पड़ोसियों का दरवाजा खटखटाता है। फिर घर लौट, बच्चों को अपने साथ सटा दहाड़ता है। सर बार-बार जमीन और दीवार से टकराता है। सिर बार-बार दीवार से टकराता है, टकराता है।

जब तक पड़ोसी आते हैं, वो पँखे से झूल रही होती है। दो पड़ोसी मिल कर उसे उतारते हैं। मीना तुमने यह क्या कर डाला, मीना तुमने यह क्या कर डाला। वो अभी दोनों बच्चों को अपने से चिपकाये रो रहा है। सिसकियाँ ले रहा है। घर के बाहर एम्बुलैंस - सायरन, नीली-लाल बत्तियाँ, फायर ब्रिगेड सब कुछ इकट्ठा हो गया है। वो कुछ देर काउच पर लेटती है। फिर बाथरूम जाती है। घर में ढ़ेरों अमेरीकी, हिन्दुस्तानी भर गये हैं। फिर वो दिखाई नहीं देती। मीना कहाँ है? मीना कहाँ है? अभी तो इधर थी, अभी तो इधर थी, जरा बाथरूम में देखो, जरा उस कमरे में देखो, जरा गैराज में देखो। कहीं दुबारा उसने कहीं आसपास अमेरीकी पड़ोसी के यहाँ तो नहीं, पड़ोसी तो सभी यहीं हैं। अभी तो यहाँ थी, अभी तो यहाँ थी। हमें किसी को हरदम उसके पास रहना चाहिए था, हरदम उसके पास रहना चाहिए था।

एक हिन्दुस्तानी औरत टेलीफोन के पास पड़ी टेलीफोन डायरी उठा बार-बार कॉल कर रही है। बहुत बड़ा हादसा हो गया है - मीना तुम्हारे यहाँ तो नहीं? तुम्हारे यहाँ तो नहीं... नहीं, नहीं अभी नहीं। फिर बताऊँगी। मीना तुम्हारे यहाँ तो नहीं... तुम्हारे यहाँ तो नहीं। बारह साढ़े बारह तक वो अपने घर थी, सभी ने देखा। और 01ः15-01ः30 के दरम्यान मिली थी उसकी सिर कटी लाश और जिस्म के बाकी हिस्से बूकलाइन के कापली स्क्वेयर स्टेशन पर, सबवे पर। तीन मील का रास्ता उसने कैसे पार किया? क्या उसने कैब बुलवाई थी ? कोई दोस्त सहेली उसे वहाँ पहुँचा गई। सबके सामने वो कैसे यह कर पाई ? बहुत से सवाल अभी बाकी हैं। कैसे पहुँची वो सबवे स्टेशन? कौन पहुँचा गया उसे वहाँ ? कौन पहुँचा गया ? अमेरीकी इसी विवाद में उलझे हैं। 12ः15-12ः30 के दरम्यान घर पर थी, लाश मिली थी 01ः15 01ः30 के दरम्यान। यह रास्ता उसने कैसे तय किया? भागकर, कैब से या कोई जान-पहचान का दोस्त/सहेली पहुँचा गई? टी.वी. वाले समझ नहीं रहे कि, दो-दो बच्चे ख़त्म हो गये। एक बहुत ख़ूबसूरत नाजुक लड़की रेल के नीचे कट कर मर गई। लड़की लैब में काम करती थी। मल मूत्र ढोती थी। लड़की को तो मूवी स्टार होना चाहिए था। लड़की फूलों के रंगों से मिलती-जुलती साड़ियाँ रंगवाती और पहनती थी। एक बहुत नफीस प्यारी हिन्दुस्तानी लड़की मर गई थी।...

आप यह भी सोचेंगे कि मानहीगन आई लड़की इतनी सुंदर जगह आकर भी उस रेल के नीचे कट कर मर जाने वाली औरत के बारे में क्यों सोच रही है ? यह लड़की उस रेल के नीचे कटकर मर जाने वाली औरत से छुटकारा क्यों नहीं पा रही ? लड़की बॉस्टन में मरी थी या अटलान्टा में, उसका इस औरत से कोई वास्ता नहीं। पर आप जानते हैं, हर औरत हर दूसरी औरत से जुड़ी है। यह औरत उस औरत से ऐसे ही जुड़ी है, जैसे माँस से मछलियाँ, मछलियों से लोथड़े, लोथड़ों से सीगल्स, हर माँस का लोथड़ा हर दूसरे माँस के लोथड़े से जुड़ा रहता है।

मानहीगन आई लड़की अपना ध्यान मानहीगन की सुंदरता और अच्छी-अच्छी चीजों पर लगाना चाहती है। अचानक लड़की के जहन में आ जाते हैं लूमिस कैटरपिलरी के घोंसले। लूमिस कैटरपिलरी चिड़िया, चिड़िया की वो किस्म है, जिसे ग्लिड वॉर्म व्यूअर भी कहते हैं। चिड़िया की यह किस्म बड़ी अनोखी है। इसकी पहचान होती है इसके घोंसलों से। यह चिड़िया घोंसले बनाती है जिन्दा कीड़ों से, जिसमें रहते हैं:-

सात प्रतिशत बैग वर्मज (कीड़े)

तैंतीस प्रतिशत कैटरपिलरी लोमस लार्वा

बाईस प्रतिशत टेंट कैटरपिलरी टेंट लार्वा

अट्ठतीस प्रतिशत विगल वर्मज (कीड़े) टेढ़ी चाल के कृमि

इस चिड़िया का ज़्यादा से ज़्यादा वक्त लग जाता है घोंसले की जुगाड़ में, जिन्दा कीड़ों का बनाया घोंसला जब तब टूटता रहता है और यह चिड़िया गुजार देतीहै ज़्यादा से ज़्यादा वक्त घोंसला बनाने और मरम्मत में। इतना वक़्त घोंसला बनाने और मरम्मत में लगाने की वजह यह है कि यह चिड़िया, बच्चे पालने में या अंडे सेकने में ज़्यादा वक्त नहीं लगाती। कैसी है यह चिड़िया की किस्म भी ?

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कहानी

डाॅ. कमला दत्त, Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


मछली

लड़की घुटनों के बल समुद्र के किनारे बैठी है, और कभी हवा में दोनों बाँहें फैला देती है और कभी झुककर समुद्र तट से कुछ उठा लेती है। लड़की जैसे खुद से बातें कर रही है या हवा से बातें कर रही है। सुबह का समुद्र अशान्त है। पर लोग दूर-दूर तक नहीं, लहरें तट पर आ-आकर लौट रही हैं। दूर तक सिर्फ वह, उसका साथी और उनके पीछे एक बूढ़ा जोड़ा। एक दूरी बराबर कायम है। उन दोनों और उस बूढ़े जोड़े के बीच इस तरह चलने से दूरी कायम रहती है, सीमा निर्धारित हो जाती है, जानवर मल-मूत्र बिखेर अपनी सीमा निर्धारित करते हैं। इंसान समझदार हो गया है इसलिए सलीके और तरीके से काम लिया जाता है। जैसे कि इस रफ्तार से चलना कि आप चलें तो हर कदम, पर फासला बराबर बना रहे।

लड़की न तो पागल दिखती है न ड्रग ऐडिक्ट। लड़की का रंग साँवला है पर वह काली नहीं दिखती। लड़की जो दूर से बच्ची-सी दिख रही थी, अब ज़्यादा उम्र की दिखने लगी है। लड़की सादा लिबास में है। उसके बाल काले और कटे हैं। जिन्हें वह जब तब हाथों से माथे और कानों के पीछे धकेल देती है। लड़की सफेद नहीं, लड़की काली भी नहीं, किस मुल्क की है, यह अन्दाजा लगाना आसान नहीं। लड़की अमेरिकी, यूनानी, लेबनानी, फिलिस्तीनी, पाकिस्तानी या हिन्दुस्तानी कुछ भी हो सकती है।

लड़की का चेहरा ऐसा है कि आपकी किसी पुरानी प्रेमिका या बहन या दोस्त के चेहरे से न मिलने पर भी उनमें से किसी एक की या सभी की याद दिला दे और आपको लगे आपने पहले कभी उसे देखा है। लड़की का इस तरह उनके अस्तित्व को नकारना उन्हें उकसा रहा है और यह ख़्याल भी जहन में बराबर है कि कहीं कोई आतंकवादी ही न हो। वो जल्द-जल्द कदम बढ़ा उसके पास पहुँच जाते हैं। वृद्ध और वृद्धा जो अब तक अपनी सीमा बनाये थे अब उनके साथ कदम मिलाकर चलने लगे हैं। जैसे कि वो चार इकट्ठे होंगे तो खतरा कम हो जायेगा।

लड़की की उम्र 35 से लेकर 50 तक कहीं भी हो सकती है। उन औरतों में से है जो जवानी में जवान नहीं लगती और बुढ़ापे में बूढ़ी नहीं। उनमें एक तरह की स्थिरता रहती है जो जवानी को भी नकारती है और बुढ़ापे को भी। अब वह लड़की के एकदम करीब है। लगता है लड़की दोनों बाँहों में किसी चीज को घेरे है। उसे न जाने क्यों वह लाशों को घेरे बिलखती फिलीस्तीनी माँओं की याद दिला देती है। दो कदम चल, रुक, खतरे का जायजा ले, रुक चल, रुक चल कर वे लड़की के एकदम करीब पहुँच गये हैं। अब वे लड़की के एकदम सर पर खड़े हैं। देखते हैं लड़की एक अधनुची मछली को घेरे है। मछली अजीब तरह से नुची हुई है। मछली के सिर और रीढ़ की हड्डियाँ कायम हैं और सिर के हिस्से का माँस बुरी तरह नुचा हुआ है और जरा-सा माँस का लोथड़ा अभी तक वहाँ लटक रहा है। लगता है मछली अपनी मौत से नहीं मरी, लगता है उसे नोच-नोच कर मारा गया है। न जाने क्यों वह यकायक सोचती है- क्या मछली के खून का रंग लाल होता है। बिना कुछ कहे ये चारों सोचते हैं (वह, उसका दोस्त और वृद्ध जोड़ा) कि उनके साथ छल किया गया है। कोई मरे बच्चे की लाश होती या कोई मरा कुत्ता बिल्ली या किसी आत्महत्या करने वाले के कपड़े, पर अधखाई मछली पर झुकी इस औरत ने उनके साथ छल किया है। कुछ पल पहले उनका यह सोचना कि वह पागल नहीं है, गलत था। वह या तो पागल है, या ड्रग ऐडिक्ट या शराबी या आतंकवादी भी हो सकती है। वह उसके पास से एकदम हट चलने को हैं तो वह मुँह खोलती है।

वह अधखाई मछली को उलट उसके दाँतों की कतारें दिखा बड़े अंदाज से कह रही है, ‘क्या आप नहीं समझते इस तरह दाँतों की कतारों वाली मछली वही है, इस तरह दाँतों की शक्ल और कतारें सिर्फ उसी मछली की रहती हैं।‘ अब वे आश्वस्त हैं कि लडकी ने उनके साथ छल नहीं किया। वह सचमुच त्रस्त है। उसने ही पहले कहा था पर टूरिस्ट डिपार्टमेंट तो कहता है कि मछली की वह किस्म यहाँ होती ही नहीं! वे चारों अब फुसफुसाकर बातें करने लगे हैं। टूरिस्ट डिपार्टमेन्ट ने यह झूठा दावा कैसे कर डाला। इस तरह यात्रियों को पूरी जानकारी न देना गलत नहीं क्या ? क्या टूरिस्ट डिपार्टमेन्ट ने जानबूझ कर ऐसा किया है। क्या यह सचमुच मछली की वही किस्म है। वह लड़की से छानबीन करने वाले दरोगा की आवाज़ में यह कहती है, ‘क्या तुम्हें पूरा यकीन है कि वह उसी मछली की किस्म है।‘ लड़की उसका सवाल उसी पर फेंकती है - ‘क्या तुम लोग नहीं समझते कि यह सिर्फ मछली की किस्म है ?‘ मछली का नाम उनमें से कोई भी नहीं ले रहा। जैसे नाम लेते ही आतंक फैल जायेगा। और नाम लेने का अर्थ हुआ स्थिति को स्वीकारना, न नाम लेकर वे पूरी स्थिति को नकार सकते हैं। और लड़की ही यह भोलेपन का नाटक क्यों कर रही है? लड़की जंतु विज्ञान की प्रोफेसर है और मछली की किस्म ख़ूब अच्छी तरह जानती है। इस तरह दाँतों की कतारें और शक्ल सिर्फ उस मछली की होती है। दूर पर समुद्र तट पर कुछ और लोग दिखने लगे हैं। वे तीनों अब लड़की से नाराज दिखते हैं। क्या जरूरत थी लड़की को सुबह-सुबह इस शान्त वातावरण को भंग करने की। दूर के लोगों को पास आता देख वे ज़्यादा ही फुसफुसाने लगते हैं। वैसे अगर खतरा है तो लोगों को बताना जरूरी नहीं क्या?

फिर अपनी बात खुद ही काटते हैं - जब टूरिस्ट डिपार्टमेन्ट कहता है कि मछली की वह किस्म यहाँ नहीं होती तो नहीं होगी। क्या हक है हमें अफवाह फैलाने का। और इस अधखाई मछली से इतनी बड़ी बात का निर्णय करना क्या आसान है ? लड़की उंगलियाँ फेर रही है। उनको इस तरह ऊँचा बोलते देख और पूरा का पूरा गुस्सा उस पर उतरते देख लड़की घुटनों को छाती से चिपका एक छोटी बच्ची में बदल जाती है। अब वह आँख उठाती है तो स्थिर प्रेमिका की तरह नहीं पर बारिश में भीगी बीमार बिल्ली की तरह दिखती है और उनकी हाँ में हाँ मिलाकर कहने लगी है -हाँ आप ठीक कहते हैं, उस मछली जैसा दिखने पर भी यह कोई और मछली हो सकती है। और हाँ, यह भी हो सकता है कि यह उसी मछली की किस्म थी भटककर समुद्र के इस तट पर आ गयी और अब ख़त्म हो गयी या कर दी गयी और अब कोई खतरा नहीं।

अब फुसफुसाहटों में बातें करते हुए जैसे वे एक षड्यन्त्र में शामिल थे और लगभग भागते हुए से वे लड़की के पास से हट जाते हैं। जैसे अगर वे उसके पास खड़े रहेंगे, और एक दबी जबान में उनमें से किसी ने कहा था कि वे टूरिस्ट डिपार्टमेन्ट को ख़बर कर देंगे। यह कहते और सुनते हुए वे सभी जानते थे कि उनमें कोई टूरिस्ट डिपार्टमेन्ट को ख़बर करने वाला नहीं। वह फिकरा सिर्फ उन झूठे फिकरों में से एक था जो सिर्फ कहने के लिए कहा जाता है और सच्चाई में उसकी कोई अहमियत नहीं रहती। ठीक चाँद-सितारे तोड़ लाने का वादा करने वाले प्रेमियों की तरह और यहाँ तो इरादा तक भी नहीं। पर उनका सम्मिलित गुस्सा था लड़की पर, क्या जरूरत थी उसे सुबह-सुबह यह छानबीन शुरू करने की, वह सब लड़की से नाराज हैं। उनका वश चलता तो डाँटकर उसे वहाँ उस मरी मछली के पास से भगा देते। कुछ भयानक - सा लड़की के प्रति उसके जहन में आता है। उसके जहन में आता है उस शहर का वह वाकया जब ईरानियों ने अमरीकी बंधक लिये थे तो उनके शहर में आये नये पाकिस्तानी को कुछ लोगों ने चाकू से मारा था। यह तो गनीमत है कि वह पाकिस्तानी चाकू के निशान लेकर बच गया, मारने वाले नौसिखिये थे।

लड़की अभी उसी तरह उसी जगह बैठी है और अपने से बातें कर रही हैं। लड़की सोचती है - दाँतों की कतारों से और बची हड्डियों से आप लड़ाई में मारे गये सिपाहियों की पहचान कायम कर लेते हैं और जीवाश्मों के निशानों से हजारों वर्ष पहले की वनस्पति जो अब लुप्त हो चुकी है, तो इस अधखाई मछली से मछली की किस्म क्यों नहीं निर्धारित कर पाते। लड़की फिर से अपने से हवा से बातें करने लगती है। लड़की के चेहरे और आवाज़ में रुलाहट है। यह रुलाहट मछली की मौत और किसी आने वाले आतंक के भय से नहीं, लड़की शायद किसी मौत के बाद समुद्र पर आयी है। अपना मन बहलाने। लड़की का अपना शायद कोई गुजर गया है। मौत अब आदमी की हो सकती है और किसी ख़्याल की भी या किसी खास सपने की। आदमी सपनों की मौत पर आदमियों की मौत से ज़्यादा बिखर सकता है। सपने बड़े सुहावने और शहीद होते हैं, सपने सुंदर और सम्पूर्ण होते हैं और आदमी अपूर्ण। आदमी की मौत पर उसका अच्छा बुरा सभी कुछ याद आता है और आदमी सपनों की मौत पर, रिश्तों की मौत पर आदमियों की मौत से ज़्यादा दुःखी हो सकता है। वैज्ञानिक कहेंगे कि जब आपकी ज़िन्दगी दुःखों से भरी होगी तब उनसे बचने के लिए, उस ज़िन्दगी को झेलने की हिम्मत पैदा करने के लिए आपके सपने उतने ही सुनहले और रंगीन हो जायेंगे और जब आपकी ज़िन्दगी भरपूर होगी तो इस डर से कि वह ज़िन्दगी ख़त्म न हो जाये और आप हकीकत से जुड़े रहें। आपके सपने डरावने या अस्थिर हो जायेंगे। सपनों की विजय आपकी अकुलाहट, हीनता और खालीपन को भर देगी। आप सोचेंगे कि इस कहानी में अब तक इस बात का जिक्र तो आया ही नहीं कि लड़की के सपने सुहावने हैं या डरावने ! और लड़की कहेगी कि उसे सपने आते ही नहीं !! और वह सपने लेती ही नहीं और वैज्ञानिक कहेंगे कि लड़की के सपने इतने भयावने या खुशहाल हैं कि वह उन्हें याद रखने से इन्कार कर देती है। आप यह भी सोचेंगे कि लड़की की ज़िन्दगी में कभी सुनहले सपने आये थे और सपनों में या हकीकत में कभी कोई राजकुमार आया था। लड़की कहेगी मुझे सपने आते ही नहीं, मैं सपने लेती हूँ सिर्फ उस अवस्था में जब न मैं सोती रहती हूँ न जागती और लोग कहेंगे लड़की ने अपनी आधी से ज़्यादा ज़िन्दगी अर्धनिद्रावस्था में गंवा दी है जहाँ न वह सोयी रही है न जागी।

लड़की अभी अपने में खोयी है और उदास है। और लड़की जब दुःखी है तो जी भरकर। लड़की जब रोती है तो लगातार आँसू बहते रहते हैं वह पोंछती नहीं, रोकती नहीं। चुपचाप आँसुओं को बहने देती है। सुबक-सुबक कर वह सिर्फ अकेले में रोती है। लड़की जब हँसती है तो उसका पूरा का पूरा जिस्म हिलता है। लड़की एक जमाने में ख़ूब ठठाकर हँसा करती थी। इन दिनों लड़की हफ्तों, महीनों, सालों नहीं हँसती। लड़की जब बहुत दुःखी होती है तो अपने को हर किसी से खींच लेती है। एक दीवार सी खड़ी कर लेती है। वैसे लड़की का अपना सपनों का महल है। आप सोचेंगे कि लड़की के सपनों के महल में कोई राजकुमार आता है। क्या वह रुकता है। लड़की कहेगी एक ज़माना था लड़की के सपनों के महल में ढेरों राजकुमार आते थे। रुकते क्या पीछा भी नहीं छोड़ते थे। आप कहेंगे- नहीं नहीं लड़की की ज़िन्दगी में कोई राजकुमार आया नहीं, रुका नहीं, आया नहीं, रुका नहीं और लड़की कहेगी अब जो आते हैं वे राजकुमार कहाँ होते हैं। आप कहेंगे - आया नहीं, आया नहीं, रुका नहीं, रुका नहीं और लड़की कहेगी - कौन कैसा राजकुमार !! सच्चाई क्या है कौन जानेगा?

आप कहेंगे राजकुमार का सपना देखने वाली यह लड़की ही कहाँ की राजकुमारी है। लड़की ख़ूब हाथ हिलाकर जिप्सियों की तरह बात करेगी वैसे लड़की खानदानी है। उसमें यह जिप्सी ख़ून कहाँ से आ गया? वैसे कभी लड़की बीमार बिल्ली की तरह इधर-उधर पड़ी रहेगी। लड़की खुलकर जीती नहीं। लड़की खुलकर रोती नहीं। लड़की ठहरी हुई नदी पर, लड़की चल भी नहीं रही। लड़की का सभी कुछ थम गया है।

जैसे कि कहानी के शुरू में कहा जा चुका है लड़की किसी मौत के बाद लौटी है। वैसे मौत आदमी की भी हो सकती है और किसी रिश्ते की भी। आप कहेंगे कैसा पागलपन है रिश्ते और आदमी की मौत एक कब हुई। पर जिस स्तर पर लड़की जीती है वहाँ आदमी और रिश्ते की मौत एक ही रहती है। अब देखिए न, लड़की की हर चीज कैसी बुझी बुझी है वरना मछली को लेकर कोई इतना बड़ा बवंडर मचाता ? ऐसा भी क्या रोना, जैसा कि ऊपर अभी कहा जा चुका है कि लड़की की हर चीज बुझी बुझी है। लड़की की ख्वाहिशें, उसकी इबादतें, उसकी खुशियाँ, उसके ग़म सभी बुझे- बुझे हैं। जैसे कहानी के शुरू में बताया गया है, मछली पर झुकी वह औरत बेघर लाशों पर झुकी फिलीस्तीनी माओं की याद दिलाती है और अब लगता है जैसे वह कोई अकालग्रस्त इथोपियन माँ हो। इन दिनों लड़की कई कुछ के लिए रोती है। 

लड़की रोती है

उदास प्रेमियों के लिए, लड़की रोती है

छोड़ी गयी बीवियों के लिए

लड़की रोती है

आहत पतियों के लिए

लड़की रोती है

बेघर फिलीस्तीनियों के लिए

लड़की रोती है

अभावग्रस्त हिन्दुस्तानियों के लिए और लड़की रोती है

अकालग्रस्त इथोपियनों के लिए

लड़की रोती है

सबके लिए

लड़की रोती है

अपने लिए

लड़की रोती है

महज रोने के लिए

लड़की के बेवजह रोने को देख वैज्ञानिक कहेंगे कि उसमें कोई रासायनिक विकृति है। वैज्ञानिक कहेंगे कि अवसाद की जीन क्लोन कर लेने पर उसका इलाज निकल आयेगा। क्या वैज्ञानिक किसी दिन बेवजह रोने वाले, लोगों की, खास रोने वाली जीन का पता लगा लेंगे ? तब लड़की के बेवजह रोने का क्या होगा। तब तो लड़की रो भी न सकेगी।

हाँ, जैसे कि पहले बताया जा चुका है एक जमाने में लड़की ख़ूब हँसती थी। और एक जमाने में जब वह किसी कमरे में घुसती तो लोग सचमुच रुककर उसे देखते थे और उसकी आवाज़ का जादू कई लोगों पर बरसों छाया रहा। लड़की उन उन लोगों में से है जिनकी हर चीज में नाटकीयता रहती है। एक वक्त था लोग उसकी नाटकीयता और अंदाज को सराहते थे। उसकी हरकतें और बोलने का अंदाज हर किसी को खींचता था। फिर बरसों पहले लड़की ने अपनी नाटकीयता भी छोड़ दी। कोई उसकी ओर देखे, सुने, शायद किसी बात का कोई मायना ही नहीं रहा। या तो अब जो लोग उसकी ज़िन्दगी में आते हैं उसे नाटकीयता के काबिल भी नहीं लगते। या वह इतनी बुझ चुकी है कि कोई आये जाये कोई मायने ही नहीं रहे किसी बात के। और अब लड़की की ज़िन्दगी और सपनों में आने वाले लोग शायद लड़की को एकदम बेमायने लगते हैं जिनके लिए नाटक का जुगाड़ करना भी जरूरी नहीं। और लड़की में गुलामों की अकर्मण्यता भर गयी है। पर जीने के लिए तो और चाहिए। सफेदों द्वारा नकारे गुलाम धीरे-धीरे अपने को ख़त्म करते शराब से, कभी ड्रग्स से और कभी हिंसा से। हाँ, लोग यह भी कह सकते हैं कि लड़की की ज़िन्दगी में अब राजकुमार आते ही नहीं, आते हैं तो रुकते नहीं और लड़की कहेगी जो आते हैं वे राजकुमार कहाँ होते हैं और उन्हें रोकने की मैं कब कोई कोशिश करती हूँ। इस तरह सभी का भ्रम कायम रहेगा। लड़की का, लोगों का। वह कहेगी कौन ? कैसा राजकुमार ? और लोग कहेंगे रुका नहीं, नहीं रुका नहीं। सिर्फ लड़की ही जानेगी कि राजकुमार के भेष में आये हुए लोग भी राजकुमार कहाँ थे। कहाँ होते हैं? दो आये थे राजकुमार से दिखने वाले पर कहाँ निकले राजकुमार वे भी। फिर एक काला साँवला सलोना आया था। पर उसके पीछे इतनी सफेद राजकुमारियाँ थीं कि वो रुका नहीं। हाँ सचमुच नहीं रुका!

लड़की वैसे सपनों में अब भी जब-तब राजकुमार तलाशती रहती है। पर राजकुमार से दिखने वाले भेदियों से बचने के लिए सही राजकुमार की तलाश में लड़की ने अपने घर को किले में तब्दील कर लिया है जिसे आम आदमी लाँघ नहीं पाते और राजकुमार नकारते हैं।

यकायक लड़की अपना हाथ मछली को छू नाक तक ले जाती है। इस तरह नुची मछली में अब मछली गंध भी बाकी नहीं रही। अब मछली में समुद्री काई और बाकी समुद्री जानवरों की गंध आ बसी है। गंध की बात सोचते ही अचानक लड़की का ध्यान बिस्तरे के उस मुचड़े हिस्से के चादर तकिये की याद दिला गया। लड़की सोचती है अचानक उसकी याद कैसे आ गयी। उसी याद के साथ बिस्तर का वह आधा हिस्सा, मुचड़ा हिस्सा और उसके साथ जुड़ी वह गंध जो हफ्तों बिस्तर पर कमरे पर छायी रही थी। कुछ चीजें कैसे आपके जहन में अंकित हो जाती हैं। जैसे मछली में मछली-गंध का न होकर समुद्री गंध का होना और समुद्री गंध के साथ उसकी गंध आ जुड़ना बिस्तर का वो आधा मुचड़ा हिस्सा।

जो लोग अभी मछली को ले उसके साथ एक साजिश में शामिल हो चले गये हैं और सीपियाँ जो लहरों के थपेड़ों से बच गयीं उनके पैरों तले आ कुचल गयीं। क्या लोग ध्यान रखते हैं कि सीपियाँ जानवरों के खाली घर हैं और घर बनाने की ख्वाहिश आदमी की सबसे पुरानी ख्वाहिश है। लड़की बार-बार मछली को छू अपना हाथ सूंघती है जो उसे समुद्री गंध से बिस्तर तक ले जाता है और बिस्तर के साथ वह गंध जो हफ्तों कायम रही थी। लड़की ढेरों भ्रम पाल लेती है। जैसे अभी कुछ देर पहले इन लोगों से मिल उसने पहली यह भ्रम पाला कि वह मछली है ही नहीं, अगर है तो एक अकेली यहाँ भटककर आ गयी थी और ख़त्म हो या कर दी गयी है और मछली की वह किस्म समुद्र के इस भाग में है ही नहीं। ठीक इसी तरह के भ्रम और झूठ लड़की जब-तब पाल लेती है। सभी को अपना और ठीक मान लेती है। जैसा कि पहले जिक्र न होने पर भी आप समझ गये होंगे कि लड़की बेहद रूमानी है। एक बार रूमानी मूड में आ लड़की ने एक बड़ा प्यारा ऐन्टीक बेड खरीद डाला था और उस पर निहायत सुंदर रेशमी चादरें बिछा दी थीं। वह पलंग कई बरसों खाली रहा क्योंकि लड़की ने राजकुमार के इंतजार में अपने घर को किले में तब्दील कर दिया था और किले के दरवाजे को आम लोग न खोल पाते थे न तोड़ पाते थे। लड़की की खामियों में एक खामी यह भी थी कि जिस स्तर पर जिस नाटकीयता में वह जीती थी वहाँ वह राजकुमारी न होने पर भी अपने को राजकुमारी समझती थी, मानती थी। वैसे आप मानने को कुछ भी मान सकते हैं। आपके मानने से वह हकीकत तो होने से रही! जैसे कि पहले बयान हो चुका है लड़की का वह ऐन्टीक बेड और चादरें अरसे तक अछूते रहे थे फिर तीन दिनों या बहत्तर घंटे लड़की ने उसमें एक झूठ जीया और फिर तीन दिन बाद वह उस तकिये और बिस्तर पर सिर रख कई दिनों तक बहुत रोयी थी। और उस गंध को महसूसा था। वैसे आप समझ चुके हैं कि लड़की को बेवजह रोने की आदत है। हाँ, तो लड़की कहेगी उसने वह गंध बहत्तर घंटे बाद भी महसूस की।

लड़की कहेगी मछली-गंध से उस गंध का क्या वास्ता और वैज्ञानिक कहेंगे कि हर गंध का हर दूसरी गंध के साथ वास्ता रहता है और उसका काला राजकुमार-सा दिखने वाला दोस्त कहेगा पूरी की पूरी लड़ाई गंधों की है। लैबोरेटरी में अगर आप नर चूहे पर मादा के फेरोमोंस लगा उसे नर चूहों के पिंजरे में धकेल दें तो नर चूहे उसे मादा समझ नोच-नोचकर वार कर-करके उसे ख़त्म कर देंगे। एक तरह से सारा का सारा झगड़ा गंधों का है और उसका काला राजकुमार दिखने वाला दोस्त कहेगा- दक्षिण अफ्रीका की सारी पाशविकता की वजह है गंध। काली औरतों की गंधों पर आसक्त पगलाये सफेद आदमी और काले मरदों की दीवानी सभी सफेद औरतें। अगर काले सफेद इन गंधों को नकारने के बजाय मिलने दें तो सारी की सारी पाशविकता से मुक्त हो जायेंगे। गंधों के मिलते ही रंगों का भेद खुद-ब-खुद मिट जायेगा।

लड़की, औरत भरपूर गंधों वाले रिश्ते चाहती है और लड़की को आमंत्रण मिलते हैं गंधहीन रिश्तों के जो लड़की चाहती नहीं, झेल नहीं पाती। लड़की को मिलते हैं बीवियों की गंधों से उकताये नयी गंधों की चाह करते पति।

लड़की सोचती है अचानक जां.पां. की गंध हवा में कैसे तैर गयी और उस गंध के साथ जुड़ गया बिस्तर का वह मुचड़ा हिस्सा। औरत सोचती है नयी गंधों को जीने के बाद जब यह लोग अपनी बीवियों के पास जाते होंगे तो क्या उन गंधों से मुक्त हो पाते होंगे। औरत अपने को ऐसे रिश्तों से हमेशा बचाये रखती है। हाँ, तो उस व्यक्ति का, जिसकी कहानी में पहले जिक्र हो चुका है, जिसका वास्ता बिस्तर के उस मुचड़े हिस्से से है, और जिसकी गंध मछली की समुद्री गंध से जुड़ी है, औरत को एक मीटिंग में मिला था। औरत भरपूर गंध वाले रिश्ते न पाने पर बिना रिश्तों के जीने का इरादा कर चुकी थी। ऐसे में वह उसे एक मीटिंग में मिला था। लगा था वह गंधहीन है और किसी गंध से जुड़ा नहीं, और फिर मीटिंग में जहाँ-तहाँ उसके साथ जुड़ गया था। बातें हुई थीं उसकी पिछली बीवी की, उस बीवी की गंध की... और उसकी पुरानी वैज्ञानिक प्रेमिका की जिसे लिए उसने जर्मनी से बैक्टीरिया की छब्बीस किस्में फ्रांस में रातों-रात स्मगल की थीं, रातों-रात अगर गाड़ी रोक ली जाती या दुर्घटना हो जाती तो एक जर्मयुद्ध हो सकता था। गनीमत है कि दुर्घटना नहीं हुई और सीमा पुलिस पर किसी ने रोका नहीं और फिर बातें हुई थीं उसके नर्वस ब्रेकडाउन की और नर्वस ब्रेकडाउन के बाद जब वह अस्पताल में था तो वहाँ एक लेखिका से कैसे उसका लगाव हो गया। वह लेखिका शादीशुदा थी और जब उसके रिश्ते की ख़बर उसके डॉक्टर पति को हुई तो कैसे उसने उसे बीस मील दूर एक दूसरे हॉस्पीटल में पहुँचा दिया था और कि वह जां. पां. कैसे साइकिल किराये पर लेकर रातों-रात उस तक पहुँचता था। लड़की सोचती है उस शादीशुदा लेखिका की गंध उसे आतंकित करती होगी तभी तो वह इतना बड़ा खतरा उठाता था। लड़की सोचती है- क्या नर्वस ब्रेकडाउन होने वाले लोगों की गंध की कोई खास किस्म होती है। अचानक क्यों लड़की को बर्ड शो में साइकिल चलाता अफ्रीकन तोता याद आ गया। लड़की के सपनों में प्रेमिका के पास जाता जां.पां. साइकिल चलाते अफ्रीकन तोते में बदल जाता जिसे बिस्कुट दिखाती उसकी ट्रेनर कहती है कम ऑन स्कैन, कम आन स्कैन और जब वह उससे मिलने आया था तो कितनी आसानी से यह बात छिपा गया था कि उसकी दूसरी बीवी है और वह गंधहीन नहीं है, गंध मुक्त नहीं है और भरपूर गंधवाले रिश्ते तलाशती इस लड़की ने बहत्तर घंटे एक झूठ जिया था और फिर लड़की बहुत रोयी थी। ठीक जैसे कहानी के शुरू में बताया जा चुका है सुबक- सुबक कर नहीं, आराम से धीमे-धीमे और उसके आँसू लगातार बहते रहे थे।

लड़की सोचती है कितनी आसानी से आप दाँतों की कतारें गिन मछली की किस्म का अंदाजा लगा लेते हैं। ऐसा ही कोई मापदंड लोगों के लिए क्यों नहीं। लड़की पुरानी गंधों से मुक्त नहीं हो पाती।

लड़की का ध्यान मछली से हट ही नहीं रहा। लड़की उदास है। लड़की को कभी गुलाबों से मोह था पर वह अब ख़त्म हो गया है। अब लड़की को पसंद आते हैं बैंगनी फूल। लड़की आम लोगों से बहुत जल्द बोर हो जाती है। लड़की रिश्तों के पीछे भागती है। लड़की रिश्तों से भी भागती है। लड़की वैज्ञानिक है पर सीधी लाइन तक नहीं खींच पाती। एक सीधा फ्यूज तक नहीं लगा पाती। लड़की भरपूर गंधों वाले रिश्ते चाहती है पर लड़की को मिलते हैं अंजीर की किस्म के रिश्ते, एक अंजीर की किस्म होती है जो अपनी ज़िन्दगी के पहले कुछ साल अपनी सारी जरूरतें पूरी करती है एक पाम की किस्म पर। और कुछ साल पाम पर जीने के बाद अपनी जड़ें जमीन में छोड़ने से पहले वह पाम को कसकर घोंट देती है और अंजीर की इस किस्म को कहते हैं फाँसी लगाने वाली अंजीर और ट्रेजडी यह है कि अंजीर की यह किस्म फल भी नहीं देती। लड़की के जहन से मछली निकल ही नहीं रही और लड़की बेहद उदास हो जाती है।

लड़की सोचती है वह लौटकर एक सुंदर सी कहानी लिखेगी। उस कहानी में होंगे ख़ूबसूरत पाम, उस कहानी में होंगे फल देने वाले अंजीर, उस कहानी में होंगे पीले गुलाब, उस कहानी में होंगे गहरे उनाबी रंगों वाले फ्लैमिन्गो और उस कहानी में होंगे सफेद मोर और उस कहानी में होंगी नीली गर्दनों वाली बत्तखें और उस कहानी में होंगे सफेद राजहंस जो उम्रभर एक-दूसरे के साथ रहते हैं और एक-दूसरे से प्यार करते हैं। लड़की कहानी की बात सोचती है, सपनों की बात सोचती है पर लड़की मछली से अपना ध्यान हटा नहीं पा रही। पर अचानक लड़की के जहन में आता है और वह सोचती है समुद्र में शार्क मछली से ज़्यादा खतरनाक कोई मछली भी रही होगी जो शार्क मछली को इस तरह नोच गयी और वह आश्वस्त हो जाती है। .

हंस, नवम्बर 1989

अरसे से कुछ लिखा नहीं था। यह कहानी मनमोहन सरल जी और दोस्त जहरा अहमद और खुर्शीद भाई के खास आग्रह पर लिखी है और उन्हीं तीनों को समर्पित है। जिन्हें मेरे लिखने पर हमेशा मुझसे कहीं ज्यादा भरोसा रहा है।

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मानहीगन उपन्यास के कुछ अंश

मेरे पति की आवाज लौट आई और साथ एक नयी बीवी

मैं और मेरा पति हम 17 साल विवाहित रहे। यह मेरा दूसरा पति था। इसी ने पिता समान मेरे बच्चों को पाला। हम दोनों ने मिलजुल उन्हें पाला। हम बच्चों को बेहद प्यार करते थे और एक दूसरे को भी।

मेरे पति का एक्सीडेंट हुआ वो कोमा में रहा। कोमा से बाहर आया तो रक्त- जमाव की वजह से स्ट्रॉक।

वो बोलना भूल गया।

वो थेरेपिस्ट के पास नहीं जाना चाहता था साल भर नहीं गया मैं जिद्द पर अड़ गई हफ्ते में तीन बार उसे थेरेपिस्ट के पास छोड़ती फिर लेने जाती।

धीरे-धीरे उसकी आवाज लौट आई। उसे थेरेपिस्ट से प्यार हो गया। उसने मेरे से डिवोर्स ले लिया। अब वो दोनो शादीशुदा।

मैं उसके लिये इतनी खास थी कभी। मेरा उसमें विश्वास कभी कम न हुआ। एक्सीडेंट के बाद उसकी सेवा देखभाल वो तो बिना बोले खुश था यह तो मैं थी जिसे उसकी आवाज चाहिये थी मैं तरसती थी उस आवाज को। उसकी आवाज लौट आई।

और अब नयी बीवी और वो खुश है अब, मैं ही सभी कुछ खो बैठी।

अगर मैंने जिद न की होती वो अब भी मेरे साथ होता मैंने पति खो दिया मेरे बच्चों ने अपना पिता उसे उसकी आवाज मिल गई और मेरे हिस्से दर्द

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यह आदमी यह युवा संपादक कहता है कि वह मुझे पसंद करता है। पर वो कहता है कि वो वाइल्ड है मैं उसे मिस कर रही हूं। हम एक-दूसरे से केवल तीन बार मिले हैं।

यह आदमी मुझे कहता है वाट्सएप ले लो फिर हम कभी भी बात कर सकते हैं। मैं उसके इस निमंत्रण को अपना लूं, नहीं शुक्रिया। या जो जिंदगी के मुकाम में मुझे मिल रहा

हाथ जोड़ ले लूं

थाली में पड़े टुकड़े।

खुशबू कतरों में

मैंने सेलफोन खरीद लिया पर कोई भी मुझ तक पहुंचने की कोशिश नहीं कर रहा...


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कहानी

डाॅ. कमला दत्त, Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


अप्रेम कथा पारो - देवदास

सुबह सात बजते ही टेलीफोन की घंटी बजने लगी थी। मन न होने पर भी फोन उठाना पड़ा था। एक बार टूटी नींद लगनी नहीं थी, सो खीज कर उठी थी। दूसरी ओर तुम थे, खीजे हुए।

‘‘पिछले चार दिनों से कम-से-कम बीस मरतबा तुम्हें कॉल किया है, रात के एक बजे तक, कहाँ रहीं तुम, और तुम मुझे इस काबिल भी नहीं समझती ? तुम्हारे जीवन का इतना बड़ा निर्णय और तुमने मुझसे कुछ भी नहीं कहा। क्या मेरा इतना भी अधिकार नहीं ?‘‘

अधिकार शब्द तुम्हारे मुँह से बड़ा अटपटा लगता था। कैसा अधिकार ? और कब से? बरसों पहले तुम्हें बहुत-से अधिकार देने चाहे थे, तन-मन से, पूरी निष्ठा से, तुमने सभी कुछ नकार दिया था, मुझे भी। और अब इतने बरसों के बाद तुम किस अधिकार का वास्ता दे रहे हो ? तुम कहते हो - ‘‘तुम्हारे जीवन का इतना बड़ा निश्चय और पिछला सारा साल तुम्हारे शहर में बिताने के बावजूद तुमसे मैं यह बात छिपाये रही और चार दिन पहले मेरे इस निश्चय की बात सुन तुम टूटे हो।‘‘ यह सब सुनना तुम्हारे मुँह से झूठा और अटपटा लगा।

कौन हो तुम मुझसे यह अधिकार माँगने वाले? बीस साल पहले जो तुम्हें रास नहीं आया, आज उसी अधिकार की माँग ! प्रेम-प्रेम के अनेक किस्से सुने हैं, पर ऐसा नहीं।

बीस साल पहले तुम्हारे उस पिछड़े शहर में मैं एम. ए. करने आयी थी। बिजनेस मैनेजमेंट और ऐडमिनिस्ट्रेशन का पहला पहला डिपार्टमेन्ट वहाँ खुला था। तुम पी-एच. डी. कर रहे थे। उस सेमीनार में ऑडिटोरियम में तुम मुझसे आगे वाली पंक्ति में बैठे थे। पैर बदलते हुए गलती से मेरा पैर तुम्हारी पैंट को छू गया था। पीछे बैठी सीनियर्स हँसी थीं - ‘‘अरे, अरे, तुमने बेचारे की इतनी सफेद पैंट खराब कर दी ! नया-नया इंस्ट्रक्टर बना है, ज़्यादा ही सफेद कपड़े पहनता है। बेचारा !‘‘ शर्म से लगभग दोहरी होती मैं सिर्फ इतना ही कह पायी थी, ‘‘आई एम वेरी सॉरी!” तुम्हारी तरफ देख भी नहीं पायी थी। तुमने कहा था, ‘‘कोई बात नहीं, फारगेट इट।‘‘

उस लम्हे में कुछ अनकहा-सा हमारे बीच घट गया था। क्या तुम्हें भी ऐसा लगा था ? शायद नहीं। वैसे तुममें कोई खास बात नहीं थी। बरसों बाद सोचा था, क्या था उस आकर्षण में ? शायद तुम्हारे चेहरे की तरल उदासी।

उस ज़माने में चेहरे पढ़ना या समझना नहीं आता था। बरसों बाद सोचा था शायद यही रहा होगा।

बस तुम उस पल अच्छे लगे थे, और कोई बात हमारे दरमियान नहीं हुई थी।

फिर रैगिंग करती सीनियर्स ने उस दिन नयी आयी लड़कियों के नाम विभाग के सीनियर लड़कों और गैर शादीशुदा प्रोफेसरों के साथ जोड़ने शुरू कर दिये थे। हर नयी लड़की के नाम के साथ विभाग के नाम के लड़कों की चिटें निकाली जाने लगी थीं। मेरे नाम के साथ निकाली थी तुम्हारे नाम की चिट, वह महज संयोग था या किसी सीनियर के दिमाग की खुराफात, आज भी नहीं मालूम। बस, लड़कियों ने छेड़-छाड़ शुरू कर दी थी।

हम तीन लड़कियाँ थीं बड़े शहरों से आयी हुईं। सभी की सभी पब्लिक स्कूलों की पढ़ी हुई। हर वक्त तुम्हारे मुर्दा-से शहर को कोसती हुई, गर्दोगुबार को कोसती हुई। फिर नये - पुराने छात्रों के परिचय के लिए पिकनिक का आयोजन था। मेरे शहर के एक प्रोफेसर वहाँ थे। कहने लगे, ‘‘अरे, तुम तो इतने बढ़िया शेर पढ़ती थीं, कुछ सुनाओ। और फिर पूरी की पूरी पिकनिक ढेरों अशआर पढ़ते गुजर गयी थी। तुम नहीं थे उस पिकनिक में। आँखें तुम्हें खोजती रही थीं

लड़कों से बातें करने में उससे पहले कभी शर्म, झिझक महसूस नहीं की थी। तुमसे कॉरीडोर या सीढ़ियों पर सामना होता, आँखें शर्म से झुक जातीं। लड़कियों के बीच जोर से ठहाका लगाती मैं, तुम्हें देखते ही बर्फ की मानिन्द जम जाती। तुम्हारे सामने पड़ने पर चलना तक मुश्किल हो जाता था। लगता था, इतनी नर्वस हो जाऊँगी कि चल ही नहीं पाऊँगी।

फिर उस दिन कॉरीडोर में तुमने रोक लिया था, “हैलो! कैसी हैं ? सुना है, बहुत सुंदर अशआर पढ़ती हैं, हमें नहीं सुनायेंगी क्या ?”

शर्म से सिर झुकाये इतना ही कहा था, “ठीक है सर, जरूर सुनाऊँगी।‘‘ और कॉरीडोर के दूसरे सिरे पर अपनी सहेलियों के झुंड को आते देख भागते हुए झटपट सीढ़ियाँ उतर गयी थी, डर था, लड़कियाँ तुम्हारे सामने छेड़खानी न शुरू कर दें।

सोचा, तुम्हें भी शायद मैं अच्छी लगी, तभी तो तुमने रोक कर शेर सुनाने का आग्रह किया। होस्टल के कमरे में अकेले रहने पर छत पर टहलते वक्त हर समय बस एक खुमारी दिलोदिमाग पर छायी रहती थी। एक गुदगुदाहट-सी। तीन साल का कोर्स था। पहले साल की पढ़ाई ज़्यादा मुश्किल नहीं थी। इससे पहले कई लड़कों से कॉमरेड किस्म की दोस्ती रही थी। प्यार करने वाली लड़कियाँ हमेशा बचकानी और बेहूदा लगी थीं। होस्टल में लड़कियों से बतियाते वक़्त, आसमान में बादलों को देखते वक़्त, इधर-उधर काम-धाम करते वक्त हर समय तुम्हारी याद बनी रहती थी। एक मीठा-मीठा सा दर्द भी उस याद के साथ बराबर बना रहता था। डिपार्टमेन्ट में निगाहें हरदम तुम्हें खोजती रहती थीं। अपने में हो रहे इन परिवर्तनों पर खुद हैरानी होती थी।

शहर पुराना था। बंदिशें ख़ूब थीं। शक हो कि खत लड़कों के हैं तो वॉर्डन डाक सेंसर करती थी। मेरे पुराने सहपाठियों के खत बराबर आते थे। बिना खोले उन्हें दे देती, जब कि बाकी लड़कियों को लड़कों के खत आने पर ख़ूब डाँट सुननी पड़ती थी। एक दिन मैं पूछ बैठी थी, “मिसेज कौल, आप बाकी लड़कियों के खत खोलती मेरे नहीं।‘‘ हँसी थीं वे और एक शेर पढ़ लिया था -

“खत का मजमूं भाँप लेते हैं लिफाफा देखकर‘‘ फिर हँसी थीं वे,, “तुम बड़ी समझदार लड़की हो, हमें मालूम है। तुम प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पड़ने वाली।” अपने पर शर्मिन्दा हुई थी। लगा था, अपने में हो रहे परिवर्तनों पर शायद मेरा कोई बस न हो। ढेरों लक्ष्य थे उन दिनों। अच्छा स्टूडैंड होने के, अच्छी पोस्ट के, देश सेवा के सामाजिक बदलाव लाने के। अच्छा कलाकार होने के। प्यार उन सबमें नहीं शामिल था। हमेशा बचकाना ही लगा था।

उन दिनों फूल लगाने का बेहद शौक था। मैं और मेरी कुछ सहेलियाँ यूनीवर्सिटी गार्डन के पिछले हिस्से से छुपकर गुलाब तोड़ा करते थे। एक दिन तोड़ ही रहे थे कि तुम उधर साइकिल पर जाते दिख गये। लगा, तुम्हें हमारी फूल चुराने की हरकत पसंद नहीं आयी। कुछ दिन फूल चुराना और लगाना बंद कर दिया। तुम्हें देखते ही हाथ-पाँव फूल जाते थे। खिलखिलाहट थम जाती थी। एक तरह से उन लम्हों की सुध-बुध नहीं रहती थी।

उस पहली बार कॉरीडोर में रोक कर शेर सुनाने के आग्रह के बाद तुम कभी पास नहीं आये, कभी रोका नहीं, कभी फिर कुछ कहा नहीं।

यूनीवर्सिटी में होने वाले नाटक की ऑडीशन चल रही थी। मैं हीरोइन के रोल के लिए चुन ली गयी थी। यूथ फेस्टिवल में मुझे बेस्ट ऐक्टिंग का अवार्ड मिला था। और फिर यूनिवर्सिटी कलर। मैं एक साथ उस शहर और यूनीवर्सिटी की बड़ी लोकप्रिय लड़की बन गयी थी। वह लड़की, जो बड़ी लायक थी, बुद्धिमान थी, कलाकार थी और अच्छे अशआर पढ़ती थी और बड़ा मीठा बोलती थी। चाहा था तुम आओगे, मुबारकबाद दोगे, कुछ कहोगे पर चाहा कुछ नहीं हुआ। बस डिपार्टमेन्ट के बहुत से लड़के आगे-पीछे फिरने लगे थे। कोई ऐक्टिंग की तारीफ करता, कोई दिमाग की और शायरी के अंदाज की। बहुत से सेमिनार जूनियर बहुत करीब आ गये थे। इस सबके बीच तुमसे बात करने की चाह बराबर नही रहती थी तुमने कोई कोशिश नहीं की और मेरी तो हिम्मत ही नहीं पड़ती थी कभी कुछ कहने की।

उस दिन लाइब्रेरी में बैठी थी। आने वाली डिबेट की तैयारी करती हुई। तुम आये, सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये। सोचा, जान-बूझकर शायद मुझसे बात करने का बहाना ढूँढ़ आये हो।

तुम कहते हो, ‘‘कैसी हैं आप ?‘‘

मेरा हाथ अचानक सिर पर चला जाता है। चोटी का गुलाब हाथ में आ जाता है। उसी से खेलने लगती हूँ।

तुम कहते हो, ‘‘फूल बहुत पसंद हैं आपको।‘‘

‘‘जी हाँ, जी सर !‘‘

लगा था, तुम टीचर की तरह डाँटोगे और कहोगे, “इस तरह फूल चुराना ठीक नहीं, खासकर आप जैसी समझदार लड़की के लिए।‘‘

पर तुम कहते हो, ‘‘आज तो आपको हमें भी कुछ अशआर सुनाने ही पडेंगे।‘‘ 

मैं झिझक-झिझक कर अपनी पसंद के एक-दो अशआर पढ़ती हूँ।

तुम तारीफ करते हो। फिर तुम एक ही साँस में कह जाते हो कि तुम्हारी माँ सौतेली थी। तुम डेढ़ साल के थे कि तुम्हारी अपनी माँ मर गयी थीं और कि तुम पूरी तरह सेल्फमेड हो। टूयूशनें कर-करके तुमने सारी पढ़ाई की है। फिर तुम झटके से उठ कर खड़े हो जाते हो, कहते हो, “चलिए, हम भी आपको एक शेर सुनाते हैं जो हमेशा मुझे यह हौंसला देता है। उम्मीद बंधाता है:

डूब जाऊँगा ऐ नाख़ुदा लेकिन

मुझे तूफाँ से लड़ तो लेने दे...।

मैं हतप्रभ बैठी रही थी, तुम उठ कर चल दिये थे। सोचती रही थी, कितना कठिन रहा है तुम्हारा जीवन। और साथ ही यह भी सोचा था, अपना समझा होगा, तभी तो इतना कुछ कह गये।

बाद में जाना, तुम तो हर लड़की से यही कहते थे।

फिर कहीं से पता चला, तुम अपनी थीसिस पूरा कर रहे हो और शाम को लाइब्रेरी में बैठते हो। मैं अपनी शामें लाइब्रेरी में बिताने लगी थी। पढ़ना तो बहाना था। वैसे दोस्तों का अच्छा-खासा झुण्ड बन गया था। चाय पीने वाले दोस्त अलग, ड्रामे वाले दोस्त अलग, साहित्य में रुचि लेने वाले दोस्त अलग। हर ग्रुप में रहते हुए भी तुम्हारा ध्यान बराबर बना रहता था।

हाँ, तो मैं शामें लाइब्रेरी में बिताने लगी थी। पढ़ाई कम, रुक-रुक कर तुम्हारी तरफ देखना और ऐसा भ्रम भी बनाये रखना कि पढ़ रही हूँ। जब भी रुक-रुक कर तुम्हारी तरफ देखा, तुम्हें किताबों में उलझा पाया, लिखता पाया।

फिर जाने तुम्हें क्या हुआ, तुम एक दिन अपनी कुर्सी से उठे, और उसे ले जाकर लाइब्रेरी के कोने में पटक दिया और मुँह मोड़कर पढ़ने बैठ गये। शायद यह मेरे लिए संकेत था कि मैं तुम्हें डिस्टर्ब करती हूँ, और तुम्हें मेरा लाइब्रेरी में बैठना पसंद नहीं। पर कोई बात हमारे बीच नहीं हुई। न मैंने कही, न तुमने। उस दिन तुम्हारे उस तरह कुर्सी पटकने से मैंने लाइब्रेरी में बैठना बंद कर दिया। समझा था कि तुम मुझे कतई पसंद नहीं करते, कि मैं शायद अपने को तुम पर थोप रही हूँ। बाद में जितने दिन तुम्हारे उस शहर में रही, तुम्हें देख मैं भी रास्ता बदलती रही। साथ ही कुछ मित्रों के यहाँ ज़्यादा जाना भी शुरू कर दिया था। सुना था, तुम कहीं पास ही रहते हो।

अपने मन को समझाया भी था, पहली बार घर से बाहर निकली हूँ। सो शायद किसी के करीब आने की चाह अकेलेपन की वजह से है। और कि तुम मुझे नहीं चाहते और कि शायद मुझसे नफरत करते हो।

फिर गर्मियों की छुट्टियाँ हो गयी थीं। मुझे लू लग गई थी। पूरे महीने बिस्तर से लगी रही। पूरी गर्मियाँ बरामदे में सो कर बितायी थी। सामने के घरवालों का एक रिश्तेदार उनके पास रहता था। बहुत ऊँची बात करता था। उसके पंजाबी बोलने का ढंग और आवाज़ तुम्हारे जैसी ही थी।

अजीब पागलपन के दिन थे वे, खुमारी के, मीठे-मीठे दर्द के, बात-बेबात रोने के। और कमरे में लेटे-लेटे छत के पंखे या कड़ियों को लगातार देख सपने बुनने के।

और फिर पूरी-की-पूरी यूनिवर्सिटी हमारे शहर आ गयी थी। सुना था, तुम बैंकिग के टॉप कॅम्पीटिशन में बैठ रहे हो। इस बीच एक कोर्स के कुछ अंश तुमने पढ़ाये थे। एक सवाल पूछने पर तुम देर तक समझाते रहे थे। सहेलियों ने छेड़ा था, फिर उम्मीद बँधी थी। तुम आँख-मिचैनी खेलते रहे थे। कक्षाओं में बेहद अपनापन जतलाने के बावजूद कॉरीडोर में मिलने पर रास्ता बदल लेते।

तुमने हमेशा दूरी बनाये रखी। और मुझे कोई रास्ता आता नहीं था तुम्हें बताने का कि मैं तुम्हें बेहद पसंद करती हूँ। सोचा था, तुम अनजान नहीं, कि न समझ पाओ, कि मैं तुम्हें बेहद पसंद करती हूँ। नाटक, गोष्ठी आदि सबमें भाग लेने पर भी मुझमें बड़ा भोलापन था और एक हद तक बहुत शर्मीली भी थी मैं तुम्हारे सामने पड़ते ही आँख झुक जाती थी !

इस बीच तुम्हें देख पाने की अकुलाहट बराबर बनी रहती थी। लेक्चर - हॉल की खिड़की से सड़क दिखाई देती थी। सलाखों से परे देखती रहती थी तुम्हारी एक झलक पाने के लिए, पूरी क्लास गुमसुम बैठी बिता देती थी तुम्हें देख पाने की चाह में। कई बार तुम्हारे ऑफिस के सामने से बेवजह गुजरी कि तुम्हारे ऑफिस का दरवाजा खुला होगा और तुम्हारी एक झलक मिल जायेगी। प्यार में सुध-बुध खोने वाली लड़कियों की मजबूरी तब मेरी समझ में आयी थी और अपने से कोफ्त हुई थी, क्यों इतना मज़ाक उड़ाती थी मैं उनका। वे ही सब बचकानी बातें तो मैं अब खुद कर रही थी। फिर एक जलसे में एक टीचर कह उठे थे, “क्लास में आप कुछ सुनती भी हैं या बाहर ही देखती रहती हैं?‘‘ ख़ूब रोयी थी। ज़िन्दगी में पहली बार किसी टीचर से पढ़ाई की वजह से डाँट खायी थी, मैंने। अपने-आपसे बेहद शर्मिन्दा हुई थी। किस चक्कर में पड़ गयी समझदार नीता पाठक।

उस दिन साइकिल पर यूनीवर्सिटी जा रही थी। तुम सामने से आते दिख गये मुझे रोका और कहा, “पढ़ाई कैसी चल रही है ?‘‘

‘‘ठीक ही चल रही है, सर !”

तुमने कहा था, ‘‘मेरे पास बड़े अच्छे नोट्स हैं, अपने बनाये हुए। तुम्हें घर आकर देना चाहूँगा। अपना पता देंगी?‘‘

घर का पता लिखा दिया था। तुम आये थे नोट्स देने पर लगा था, तुम मुझे पसंद करते हो। तुमने हिदायत दी थी, मैं किसी से न कहूँ कि तुम्हारे नोट्स मेरे पास हैं। लोग बेवजह बातें बनायेंगे। हँसी आयी थी तुम पर, मेरे पास कम-से-कम छह सीनियर्स के नोट्स थे। पर लगा था, तुम चाहते हो, तभी तो अपने नोट्स दिये। तुम अजीब आँख-मिचैनी खेलते रहे। कभी तुम जरा बोल लेते। आस बँध जाती और कभी तुम एकदम दूर हट जाते।

मैंने जाने कितनी बार आँखें बंद कर लकीरें खींची- दो-दो को काटा, अगर एक बाकी बचेगी तो मुझे प्यार करते हो, नहीं बचेगी तो नहीं करते हो।

कितनी बार डेजी के फूलों की पंखुड़ियों को तोड़ा - लव्ज मी, लव्ज मी नॉट ..... 

डिपार्टमेन्ट में वैसे सब ठीक ही चल रहा था। छात्रों के दो ग्रुप थे। स्मार्ट लड़के और अधिकांश लड़कियाँ एक ग्रुप में, और गाँव से आये गरीब घरों के सीधे-साधे अंग्रेजी न बोल पानेवाले लड़के और बहन जी टाइप लड़कियाँ दूसरी तरफ। इलैक्शन के दिनों में दोनों दलों में ख़ूब होड़ रहती थी। अधिकांश लड़कियाँ एक तरफ होने पर भी गाँव वाले ग्रुप की जीत होती थी क्योंकि अधिकांश लड़के उसी ग्रुप के थे यूनीवर्सिटी में टॉप तो हमेशा इसी ग्रुप का लड़का करता था। हम गाँव से आये लड़कों का मजाक उड़ाते और उन्हें ‘झांवा‘ कहते थे। बरसों बाद इसी सीधे ग्रुप के कई लोगों से गहरी मित्रता हुई और अपने दिखावटीपन पर शर्म आयी। कितने सतही थे उन दिनों हम। स्मार्ट ग्रुप के लिए बड़ा बेशकीमती मोहरा थी मैं। शायद यूनीवर्सिटी में फर्स्ट आने की संभावना रखती थी। उस ग्रुप के सभी लोग प्रोत्साहित करते थे। सालाना इम्तिहान मेन सेंटर में हुआ करते थे। सीनियर्स का ग्रुप मेन हॉल तक पहुँचाने आता। बेस्ट विशेज देने आता। इम्तिहान ख़त्म होने पर सभी लोग वहाँ मिलते। चाय पिलाते। अगले परचे के बारे में पूछताछ कर घर भेजते। सीनियर्स ने बहुत प्यार दिया उन दिनों। इनमें कुछ टीचर्स भी शामिल थे।

तुम कभी पास नहीं आये। देखने पर हमेशा रास्ता बदलते रहे। लगने लगा था, तुम्हें मुझसे कतई लगाव नहीं। नोट्स दिये हैं तो सिर्फ अच्छा स्टूडेंट मानकर।

मन में हरदम कुछ सुलगता-सुलगता रहता था। हर किसी के बीच होने पर भी मैं पूरी तरह वहाँ नहीं होती रहती थी। बस, तुम्हें ही खोजती रहती थी। एक दर्द था, एक जख्म था, हरदम रिसता हुआ, दुःखता हुआ।

फिर रिजल्ट निकला था। मैं यूनीवर्सिटी में फर्स्ट आयी थी। लड़के-लड़कियों के बीच घिरी मैं खड़ी थी। तुम दूर से दिखे। भाग कर तुमसे कुछ कहना चाहा, सुनना चाहा। तुम नोटिसबोर्ड से चिपके खड़े रहे। पास नहीं आये। जब तक दोस्तों से छुटकारा पा तुम तक पहुँचती, तुम जा चुके थे।

तुम एक दिन फिर मिले। औपचारिक मुबारकबाद - ‘‘तो आप फर्स्ट आ गयीं। मैं कल अपने नोट्स लेने आऊँगा। मैं कॅम्पीटिशन में बैठ रहा हूँ। उसी के लिए चाहिए।‘‘

तुम्हारी उपेक्षा से मेरे अंदर गहरी उदासी घर करती जा रही थी।

यह क्यों मुझे पसंद नहीं करता ? क्या मैं इसके काबिल नहीं ? क्या नहीं है मेरे पास ?

फिर मेरा बात-बेबात भाई बहनों पर खीझना, बात-बेबात पर रोना। मैं क्यों नहीं उसे पसन्द, क्या मैं सुंदर नहीं ? क्या वजह है, क्या वजह है उसकी उपेक्षा की? बहुत से सवाल सालते रहे। तुमने कुछ कहा नहीं, मुझमें कहाँ हिम्मत थी कुछ भी पूछने की।

तुम दो-तीन बार घर आये। चाय का प्याला या कुछ और ऑफर करते हुए तुम्हारे चेहरे पर कुछ पढ़ना चाहा। ज़्यादा देर निगाहें कभी तुम्हारे चेहरे पर टिक ही नहीं पायीं। कोई आज भी पूछे कि तुम्हारी आँखों का क्या रंग है - कह नहीं पाऊँगी। वैसे तुम्हारे चेहरे पर मुझे लेकर पढ़ने को था भी क्या, और आसपास घर के लोग भी अक्सर रहते थे। न होने पर भी तुमने मुझे लेकर शायद कुछ महसूसा ही नहीं।

उस साल तुम्हारी एक किताब लौटाते वक्त मैंने उसमें नये वर्ष का शुभकामना पत्र रखा था - कुल दो पंक्तियाँ लिखी थीं-

‘‘बीत गया यह वर्ष ” तथा “मुबारक हो।‘‘

मुझ जैसी संजीदा खुद्दार लड़की इससे ज़्यादा खुलकर और कह भी क्या सकती थी ?

तुम नहीं जान पाओगे कि कितना टूटी मैं तुम्हें लेकर। तुम पहले व्यक्ति थे जिसे चाहा था। बरसों बाद अहसास हुआ था, वे लड़कियाँ ठीक रहती हैं छिटपुट अफेयर करने वाली। इधर-उधर पड़ोसी के लड़के, दुकानदार या किसी से भी थोड़ा-थोड़ा फ्लर्ट करने वाली, मुझ जैसी संजीदा हमेशा अपने को बचाये रखने वाली लड़की जब किसी को चाहती है और प्रत्युत्तर नहीं पाती तो बहुत टूटती है। हिम्मत बंधाने वाले छोटे-छोटे अनुभव उनके कभी नहीं रहते। वे देती हैं तो पूरी तरह। टूटती हैं तो बुरी तरह।

फिर तुम कॅम्पीटिशन में सिलेक्ट होकर दूसरे शहर चले गये थे। शनिवार को तुम हमारे शहर लौटते थे। सारा का सारा दिन इतवार का घर बैठे गुज़ार देती कि शायद तुम आओ। तुम नहीं आये कभी। और कभी आये तो मैं उन्हीं लम्हों में घर नहीं हुई। उन दिनों बड़ी उदास-उदास कहानियाँ लिखीं, कविताएँ लिखीं।

बात-बेबात रोते देख करीब की एक-दो सहेलियाँ पूछ बैठी थीं, “नीता, तुम भी कहीं प्यार व्यार के चक्कर में तो नहीं पड़ गयीं?‘‘ रो पड़ी थी मैं, ‘‘किसी को बेहद पसंद करती हूँ, पर वह मुझे कतई पसंद नहीं करता। कम-से-कम रोमांटिक तरीके से तो नहीं ही।‘‘ बहुत जोर देने लगी थीं वे, ‘‘कौन है?‘‘ तुम्हारे नाम का पहला अक्षर पढ़ा था - ‘रा‘। उन दिनों मेरे जान-पहचान के तीन लड़कों का नाम ‘रा‘ से आरम्भ होता था। सहेलियाँ परेशान होती रही थीं- कौन हो सकता है।

मेरे नाम के साथ तुम्हारे नाम की चिट निकालने वाली लड़कियाँ भूल गयी थीं, कि तुम्हारे लिए कितना टूटी हूँ। हँसी-हँसी में किये गये मजाक कितना दुःख दे गये। कितना तोड़ गये। तुम कुछ कहते तो थोड़ा हौंसला रहता। तुमने तो मेरी तरफ देखा भी नहीं उस ढंग से। फिर एक सहेली की छोटी बहन को ऐडमिशन दिलाने मैं तुम्हारे शहर आयी थी। वहाँ के प्रिंसिपल मेरा बड़ा आदर करते थे। तुम मिल गये। खाना खिलाने ले गये हम सभी को। तुमने बार-बार याद दिलाया कि तुमने दाल-सब्जी में खालिस घी के दो-दो बड़े चम्मच डलवाये हैं। हँसी आयी तुम्हारी बचकानी बात पर। मैं और मेरी सहेली दोनों अच्छे खाते-पीते, नौकर-चाकर रखने वाले घरों से थे तुम्हारे ओछेपन को तुम्हारे बचपन की मजबूरी, अभावगाथा मान लिया। उस पहले दिन वाली तुम्हारी कही बात याद आयी तुम्हारी सौतेली माँ और दाने-दाने को मोहताज तुम। फिर तुम हमें बोटिंग के लिए ले गये। मैं, मेरी सहेली और उसकी छोटी बहन। हम सभी सामने बैठे थे। तुमने मुझसे कहा, “आइए। आपको रोइंग सिखाऊँ।” बरसों से तुम्हारे साथ बैठने के एक लम्हे बाद झटके से उठ गयी - नहीं, यह मुझसे नहीं हो पायेगा। इतनी झिझक, इतनी शर्म। बैठना कब मुमकिन था।

फिर तुम अपनी अच्छी नौकरी से इस्तीफा दे एडिनबरा चले गये। जाने से पहले बहुत रात गये तुम एक बार घर आये। एक दोस्त के साथ। पहली बार तुम किसी के साथ घर आये थे।

आते ही कहने लगे, “बूझिए, हम कौन-सी तस्वीर देख कर आये हैं ... ‘जब प्यार किसी से होता है‘... ‘‘

उस दिन तुम क्या कुछ खास कहने आये थे, और कह नहीं पाये थे ? लड़के उन दिनों मुझे आशा पारीख कह कर छेड़ते थे और उस फिल्म की हीरोइन आशा पारीख थी। एक बात जहन में यह भी आयी, शायद यह मेरा मजाक उड़ाने ही आया है कि मैं पागल हूँ, मेरा लगाव एकतरफा है या कि मेरा लगाव फिल्मी वाकया है - झूठा और बेमायने।

एडिनबरा से तुम्हारा नये साल का ग्रीटिंग कार्ड आया। अच्छा लगा। तुम्हें उलाहने भरा खत लिखा। जाते वक्त मिलकर भी नहीं गये और साथ में अपनी लिखी दो कविताएँ भेजीं, जो तुम्हें लेकर ही लिखी थीं।

तुम्हारा बेहद रूखा समझदारी वाला खत आया था। तुम्हारी ज़िन्दगी में तुम्हारा कैरियर ही महत्त्व रखता है और लड़कियों में उलझाव रखना -अमीर, सामर्थ्यवान लोगों के चोंचले हैं। तुम ट्यूशन करके पढ़ने वाले। ऐसी गैरजिम्मेदाराना बातों के बारे में कैसे सोच सकते हो? तुम तो इन बातों में विश्वास ही नहीं करते।

फिर तुम्हें कभी खत नहीं लिखा। समझा कि मेरा ही पागलपन था वे कविताएँ भेजना। तुमने पास रहते इतनी दूरी रखी, और दूर जाकर पास आने की सोच कितनी नामुमकिन थी और मेरी ख्वाहिश कितनी नावाजिब।

मन के किसी कोने में यह आशा थी कि तुम आओगे और कहोगे कि मैं तुम्हें बहुत चाहता हूँ। शादी करना चाहूँगा। मैंने उस जमाने में बड़ी उदास-उदास कहानियाँ लिखीं। जिनकी हीरोइन हमेशा रिजेक्ट होती रही। बचपन का रिजेक्शन और गहरा हो गया। छोटे-बड़े कॅम्पटिशन जीत कर जुटाया कॉन्फीडेंस टूटने लगा था।

बरसों बाद तुम लौटे। डिपार्टमेन्ट में मिले। मैं अब वहाँ पढ़ा रही थी। फिर तुम्हारी शादी का कार्ड आया था। तुम्हारे नाम मुबारकबाद का टेलीग्राम भेजा। घर में खुलकर कोई बात नहीं हुई थी। छोटी सरू सब जानती थी। इसीलिए शायद उस दिन पहले मुझे सिनेमा ले गयी, फिर रेस्तरां और फिर सहेलियों के साथ घूमती रही। इधर-उधर। उस रात बिस्तर पर देर तक सिसकती रही थी।

मन ने ढेर सारे जाल बिछाये थे। मैं उसके घर नौकरानी बन जाऊँगी। वह पहचानेगा नहीं। मैं उसके पास रहूँगी। उसकी आवाज़ सुन पाऊँगी। या कि बरसों बाद वह लौटेगा, उसकी बीवी मर चुकी होगी। वह कहेगा, मुझे तुम्हारा सहारा चाहिए, और मैं सब सम्भाल लूँगी। ऐसा सब कुछ तो परियों की कहानियों में होता। एक कविता उन दिनों लिखी थी -

मेरे घर की खुली खिड़की 

के नीचे से 

वो हर रोज़

गुज़रता है

कभी-कभार ऊपर

देख भर

लेता है

मेरा सब कुछ

संवर

जाता है

उसके कोट पर

नर्गिस का फूल लगा रहता है

मुझे हर चीज़

नर्गिसी दिखाई देती है

आज फिर वो मेरे

घर की खुली खिड़की 

के नीचे से गुजर रहा है

साथ में कोई है।

उसकी कोट पर

‘किस मी क्विक‘

का फूल लगा है और

मेरे चारों तरफ

लम्बे-लम्बे काँटोवाले

कैक्टस

उग आये हैं।

इस बीच उस पहली मुलाकात और अब मैं बारह साल का अंतराल था। तुम कभी-कभार याद आये, एक सुलगती चिन्गारी की तरह। कभी कोई तुम्हारा नाम ले लेता तो जाने-अनजाने में एक हल्की-सी कचोट, हल्का-सा दर्द उभरता। वह पहले वाली बात नहीं रही थी।

बरसों पहले

चोट लगी

वक्त से दर्द

कम हुआ

खरोंच के निशान

बाकी हैं अभी,

मिट जो जायेंगे

जरूर...

कुछ वक़्त लगेगा।

फिर तुम न्यूर्यार्क में हो रही रीजनल मीटिंग में मिल गये थे अचानक। तुम्हारी बीवी तुम्हारे साथ थीं। तुम खिंचे- खिंचे रहे। तुमने मेरे घरवालों के बारे में पूछा तक नहीं। खासकर डैडी के बारे में भी नहीं। उस लम्हा में जो कुछ बचा था, अनकहा, झटके से ख़त्म हो गया। यह आदमी कायर तो था ही, इतना डरपोक, बीवी का गुलाम भी। हैरानी हुई; इसके बारे में सोचते-सोचते मैंने अपनी ज़िन्दगी के सात साल गुजार दिये ? अब अपनी मूर्खता का अहसास हुआ कि यह किसी तरह मेरे काबिल नहीं था।

और फिर हालात ने अचानक तुम्हारे शहर में ला पटका था। तुमसे मिलने की कोई ख्वाहिश मैंने महसूस नहीं की। अपने पर गुस्सा था कि क्यों मैंने इसके लिए इतने साल गँवाये, अच्छे-अच्छों को पास फटकने नहीं दिया। तुम्हारे शहर में रहते लगभग छह महीने बीत गये थे। हमारे ही शहर में हो रही रीजनल मीटिंग में तुम फिर मिल गये थे। मुझे और दूसरे शहरों से आये पुराने हिन्दुस्तानी दोस्तों को जबर्दस्ती घर ले गये थे। बड़ा अपनापन जताया था जैसे तुम मेरे बड़े करीबी दोस्त रहे हो।

फिर तुम्हारे लगातार फोन आने लगे थे कि तुम मुझे बड़ा करीबी दोस्त समझते हो। मैं तुम्हें हर बार टालती रही थी। तुम्हारे लंच के आमंत्रण को नकारती रही थी। फिर तुम एक दिन अचानक मेरे ऑफिस पहुँच गये थे। जबर्दस्ती खाने पर ले गये थे और साथ ही यह भी कह गये थे कि मैं तुम्हारी बीवी से न कहूँ, पर तुम मुझे लेकर बहुत गहरे महसूसते हो, और आगे तुम मुझसे मिलते रहना चाहोगे।

मैंने तुमसे सख्ती से कहा था, ‘‘नहीं, मुझे अगर तुमसे कभी मिलना ही है तो तुम्हारी बीवी के साथ।‘‘ और फिर तुम हर दूसरे-तीसरे दिन सुबह-सुबह फोन करने लगे थे। मैंने हर बार तुम्हारी बातचीत का रुख तुम्हारे बच्चों और बीवी के बारे में पूछकर ही पलट दिया था। वैसे कुछ कहने को था भी नहीं। लगा, बरसों पहले इसकी इज्जत की थी, तब वह मेरा फायदा उठा सकता था पर इसने नहीं उठाया और अब जब मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं महसूसती तो क्यों अपने को गिरा रहा है मेरी नजरों में।

यह अहसास जरूर कचोट रहा है मुझे, कि गोष्ठियों और साहित्य- कला में भाग लेने की इतनी बड़ी कीमत !

पर हाँ, एक बात कहूँगी - कोई मुझे क्रय नहीं कर सकता। एक लम्हे के लिए भी नहीं। न तुम, न कोई और। मैं पूरी तरह अपनी निजी संपत्ति हूँ, किसी की जागीर नहीं। सोचती हूँ, यह आदमी तो मुझे एक दिन कुचल देता।

तुम कहते हो, पिछले साल में तुम्हारी दबी भावना जब-तब सामाजिक-अवसरों पर मुझसे मिल कर उभरी है। तीव्र हुई है। मान-मर्यादा का और मेरी उदासीनता को ध्यान में रखते हुए तुमने कुछ नहीं कहा। तुम कहते हो, अब से तुम मुझे बहन के रूप में देखना चाहोगे, कोशिश करोगे। मुझे याद आती है उन लड़कियों की, जो हर नये ब्वॉयफ्रैंड को कजिन कहती थीं, मेरी गिनती उनमें नहीं थी। मुझे गर्व है अपनी हिम्मत और सच्चाई पर कि हर जान-पहचान वाले लड़के को दोस्त कहने की हिम्मत रखी। कीमत चाहे जो चुकाई हो, कजिन नहीं बनाया।

तुम फिर कहते हो, अब से तुम मुझे बहन के रूप में देखना चाहोगे। मन-ही-मन एक शब्द कौंधता है - कायर! बुजदिल ! और कि यह आदमी इतना कमजोर क्यों है?

वैसे इस किस्से में प्रेमकथा वाले सभी वाकये मौजूद हैं। लड़का-लड़की को चाहता है, पर किसी गलतफहमी की वजह से अपने प्यार का इजहार नहीं करता। उसे नकारता है। लड़की बरसों रोती है, अपने को गलाती है। पर यह एक तरह से प्रेमकथा नहीं भी है। अपने गलत निर्णय का अहसास होता है, पर लड़का देवदास नहीं बनता, टूटता नहीं, अच्छी नौकरी करता है, और बीवी-बच्चों की देखभाल करते-करते लखपती बन गया है और करोड़पति बनने की कोशिश में लगा है।

लड़की टूटी पर पारो बन किसी बूढ़े से शादी उसने भी नहीं की। अपने रास्ते पर चली। लड़ाईयाँ लड़ीं, गिरी, सम्भली, उठी- लड़ी, गिरी, सम्भली, उठी, - लड़ी, गिरी, सम्भली, उठी- और अपना रास्ता बनाया, तय किया।

और अपनी चन्द्रमुखी से उकताये देवदास में जब पारो की चाह जगी तो पारो तो बहुत पहले देवदास से बहुत आगे निकल चुकी थी अपनी निजी लड़ाई में।

पुनश्चः

और हाँ, मेरी कहानियों की एक पंक्ति बदल जायेगी - ‘‘बरसों पहले किसी को बहुत चाहा था पर वो मुझे चाह नहीं सका।‘‘ के बदले “बरसों पहले किसी को बहुत चाहा था पर वो कायर निकला।‘‘ धर्मयुग, नवम्बर 1983

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कहानी

डाॅ. कमला दत्त, Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


तीन अधजली मोमबत्तियां...

हम सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग के बड़े हॉल कमरे में बैठे थे। हम करीब तीस-बत्तीस लोग सुबह मेडीटेशन, ब्रेकफास्ट, योगा और दूसरी तरह की एक्सरसाइज में लगे हैं।

हम लोग ग्रुपलीडर के आदेश पर एक बड़े से गोल दायरे में बैठे ग्रुपलीडर इस वृत्त के बीच में खड़ा है।

मेरा तुमसे परिचय पिछले हफ्ते ही हुआ है। इस जगह पर तुम मेरे सुझाव पर आए हो। यहां अधिकांश अकेली औरतें और अकेले आदमी हैं। कुछ जोड़े भी यहां भटककर पहुंच गए हैं।

हममें से कुछ‘ अकेले‘-अकेले यहां आए हैं और कुछ अपने दोस्त सहेलियों के साथ। ग्रुपलीडर अब हमें नए तरीके से एक्सरसाइज सिखा रहा है। सब लोग एक- एक साथी ढूंढ़ लें, जो लोग दोस्तों के साथ आए हैं, पर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं, उनके लिए भी यह नायाब मौका है।

एक साथ सभी का सम्मिलित ठहाका।

तुमने दूर से इशारा कर मुझे अपने पास बुलाया है। मैं तुम्हारे सामने बैठी हूं। कुछ देर पहले हमने एक-दूसरे के कंधों को दबाया है। कंधे, गर्दन, जहां सारी टेंशन जमा रहती है। हम जब दूसरों द्वारा बहुत दबाए जाते हैं तो ज्यादा से ज्यादा झुकते जाते हैं। अपने को सभी से छुपाते, अपने से शर्मिंदा, अपने होने की माफी मांगते हुए... क्या हक है हमें होने का, जीने का, चाहने का, कुछ भी पाने का...

तुमने मेरे कंधों को, गर्दन को प्यार से मला है। दबाव न ज्यादा न कम। मैंने तुम्हारे कंधों को किस तरह छुआ, कैसे प्यार से उन्हें सहलाया, दबाया। कुछ महसूसा, याद नहीं। अब कुछ भी याद नहीं। तुम्हारे कंधों को दबाते, तुम्हारी गर्दन को थोड़ा दबाने, सहलाने के बाद...

(मैंने पहले तुम्हारे हाथ को अपने हाथों में लिया।) ग्रुपलीडर ने कहा- एक- दूसरे का हाथ हाथों में लें। आमने-सामने बैठ, एक-दूसरे को फेस करते हुए। पहले हाथ के ऊपरी भाग को मलें, फिर पिछली तरफ को। फिर एक-एक उंगली की मालिश करें। एक-एक उंगली को खींचें। जोर से, पर प्यार से। एक-एक उंगली को खींचकर की गई मालिश। ऐसे में मुंह नीचा न करें। सिर नीचा न करें। एक-दूसरे की ओर देखते रहें। जो कुछ भी आप कहना चाहते हैं, अपनी छुअन, एक-दूसरे की उंगलियों की मालिश करते हुए एक-दूसरे तक पहुंचाएँ। 

पहले तुमने मेरे हाथों की एक-एक उंगली की मालिश की है। खींचा है, फिर हमने एक-दूसरे के पैरों की मालिश की है। फिर पैरों की एक-एक उंगली को खींचा है। एक-दूसरे की सारी की सारी टेंशन, दूर करने की कोशिश। गर्दन, पीठ, हाथ-पैर एक तरह से यह सब कुछ करते हुए हमने एक-दूसरे को छूना सीखा है

अजनबियों को सहलाना, छूना, उनके साथ निकटता, अंतरंगता की एक्सरसाइज में, संवेदनशीलता भले झलक जाए- यौनिकता कतई नहीं। यह सब करते हुए, एक-दूसरे को महसूते हुए हम अपने-अपने एकांतों से बाहर आएंगे। और फिर उन्हीं में लौट जाएंगे। एकांत एक ही रहता है। बांटने पर कम नहीं होता। बढ़ता भी नहीं। जीरो से जीरो निकालो, शून्य में शून्य की मिलावट, शून्य से शून्य की तकसीम। क्या जमा- हासिल।

तुम मेरे पैरों की उंगलियों को अभी खींच रहे हो। प्यार से। अब तुम मेरे तलुए सहला रह हो। ग्रुप के सभी लोग ऐसा कर रहे हैं। एक औरत अकेली बची थी, ग्रुपलीडर उसका पार्टनर बन गया है। हमारा ग्रुपलीडर बड़ा सुंदर है। उसकी आवाज़ इतनी मीठी है कि सख्त से सख्त दिल पिघल जाए। ग्रुपलीडर ज्यादा उम्र वाली और कुछ ज्यादा ही वजन वाली इस औरत के तलुए सहला रहा है। ग्रुपलीडर का कद छह फुट चार इंच तक होगा। तुम्हारा कद भी लगभग उतना ही है। ग्रुपलीडर कहीं भी हो, किसी भी कल्चर में, बहुत हैंडसम माना जाएगा।

तुम संभ्रांत लगोगे। रौब वाले, पर उस जैसे खूबसूरत नहीं। तुम अभी मेरे तलुए सहला रहे हो। पूरे-के-पूरे वातावरण में मिठास, लैवेन्डर ऑयल की खुशबू... तुम बरसों पहले की न्यू हैम्शायर की एक विमन्स रिट्रीट में पहुंच गई हो। बीस-बाईस औरतें। इसी तरह के गोल घेरे में, ग्रुपलीडर कह रही है, जिसके पास तकिया होगा वह घेरे के भीतर आएगा और जितनी देर तक चाहे किसी भी मुद्दे पर, या बिना किसी मुद्दे के भी, जितनी देर चाहे बोलेगा, बोल सकता है। जब बोलना बंद करना चाहे, तकिया किसी को दे सकता है। जब तक कोई बोलेगा, कोई कुछ नहीं कहेगा- सब चुपचाप सुनेंगे।

तकिया पकड़े हुए, तकिया पकड़ाते हुए आप कितना कुछ बांटेंगे एक-दूसरे के साथ। पैरों की मालिश, हाथों की मालिश, उंगलियों से खीच खींच कर निकाली गई टेंशन।

तकिया पकड़ाते हुए

उंगलियां सहलाते हुए

गर्दन पर उंगलियां

उंगलियों के पोरों से मालिश करते हुए अपने दुख-दर्द, पिछले सालों के हादसे, आप कितनी आसानी से, अमेरिका में अजनबियों के साथ बांट लेते हैं। जिन लोगों से शायद आपका दुबारा कभी मिलना न हो, पर हो भी सकता है। तुम उससे पिछले हफ्ते ही तो मिली थी। पर कितने प्यार से सहलाए हैं तुमने इसके हाथ-पैर... तुम शर्मीली हो, खुल कर देख नहीं पाई उसके चेहरे को।

अब ऑफ्टरनून की योगा और मेडीटेशन क्लास है। हम सभी आंखें मूंदे बैठे हैं। ग्रुपलीडर की जर्मन असिस्टेंट, हर एक के सामने से होती हुई लेवेन्डर के तेल की एक बूंद, दो उंगलियों के पोरों से हमारे माथे पर तीसरी आंख वाली जगह और कनपट्टियों पर धीरे से छुआ, धीरे-धीरे हमारे सामने से गुजर रही है।

एक बूंद लेवेन्डर का तेल, पोरों की छुअन... हल्की मालिश... स्पंदन, हल्के हाथ की दो उंगलियों की थपथपाहट... योगा मेडीटेशन की क्लास खत्म। हम सभी ने आंखें खोल ली हैं।

योगा, मेडीटेशन, लेवेन्डर ऑयल, जलती अगरबत्तियों की खुशबू और इतना अपनापन। क्लास खत्म। तुमने अपनी मोरपंखी रंग की शॉल कसकर लपेट ली है। अब तो सेंटर, ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ को बंद हुए भी कितने साल हो चुके हैं। ‘नई शुरुआतों वाला सेंटर‘। कब कुछ ख़त्म होता है, शुरू होता है। कुछ ख़त्म नहीं होता, कुछ शुरू भी नहीं होता। ख़त्म होना, शुरू होना.... सब साथ-साथ चलता है।

हम 30 दिसंबर को आए थे ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ डलांगा में। डलांगा छोटा पहाड़ी शहर। आज 31 दिसंबर है। रात हल्की-हल्की बर्फ पड़ी है। हल्की बर्फ की चादर पेड़-पत्तों पर बिछी है। हम यहां नया साल शुरू करने आए हैं। योगा, मेडीटेशन की क्लास के बाद हम सभी डेलीगेट्स इस छोटी पगडंडी पर उतर रहे हैं। टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी, यहां और बहुत अच्छी चुनौती भरी पहाड़ियां हैं। पर हममें से शायद आज कोई उधर नहीं जाएगा। फिसलने का डर। आयोजक कोई जिम्मेदारी नहीं लेंगे। (प्लीज एक्सप्लोर एट योर ऑन डिस्क्रीशन)

पगडंडी पर चलते हम लोग एक खास मंजिल की ओर जा रहे हैं। पगडंडी पर उतरना बेवजह नहीं। सभी ने अपने मफलर, टोपियां, कोट, दस्ताने पहन लिए हैं। टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी ले जाएगी हमें रिफ्लेक्टिंग पूल के पास।

तुम पिछले कई सालों से यहां आ रही हो। रिफ्लेक्टिंग पूल, थोड़ा-सा इकट्ठा पानी, लेकिन साफ-सुथरा। इस छोटे से गड्ढे में, ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ का मालिक कह रहा है- पानी में... मिरर में... पानी के शीशे में, आप अपनी-अपनी परछाइयां देखेंगे, देख सकते हैं।

आपकी परछाइयां, आपका परिचय। परछाइयां बहुत कुछ बता सकती हैं और छिपा भी सकती हैं। ग्रुपलीडर कहता है- हम अपनी-अपनी परछाइयों में वही देखते हैं, जो देखना चाहते हैं। आज बर्फ की तह जमी है पानी पर। आज आप लोग अपनी- अपनी परछाइयांँ नहीं देख पाएंगे। तुम सोचती हो अमीश लोग ठीक हैं। उनके घरों में शीशे नहीं रहते।

पूल के एक कोने में धूप का टुकड़ा है। कुछ लोग उस कोने पे जा, थोड़ी पिघलती बर्फ में अपनी आकृति (छवि) देखने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं।

मैं तो बरसों से वहां आ रही थी। उस ग्रुप में कौन-कौन था, मैं सब कुछ भूल चुकी हूं। सिर्फ याद रहे तुम ‘जोसेफ‘, तुम्हारा वहां पहुंचना। तुम्हें देखकर मेरा खुश होना, मैंने ही इस जगह के बारे में इसे बताया और यह यहां है, क्या यह मेरे लिए यहां आया है, या यूं ही भटका हुआ। जाने किस चीज, हादसे, दुर्घटना से भाग रहा है। पर तुम्हें वहां देख मैं बेहद खुश, मन ही मन।

ग्रुपलीडर ने कहा- आगे वाली एक्सरसाइज के लिए, आप सभी लोग अपना- अपना साथी ढूंढ़ लें। तुम्हारा उस गोल घेरे में मुझसे बहुत दूर बैठे होना, पर इशारे से मुझे अपने पास बुला, हाथों का इशारा - तुम मेरी साथिन। यहां इतनी सफेद औरतें हैं और इनमें से कुछ कमउम्र और सुंदर भी। इसने मुझे चुना। आदर से, अपनत्व से। या शायद इसलिए कि इसे यह जगह मैंने ही तो सुझाई थी। वह तुम्हें न चुनता तो तुम दुखती जरूर उसके किसी और को चुनने पर, जब वह तुम्हारे सामने पड़ता, कुछ कहता, तुम मुस्कुराती जरूर। इधर-उधर की बातें, पर चेहरे पर शिकन न लाती कि उसने तुम्हें नहीं चुना। और तुम दुखी हो। रिजेक्टेड हो। अपने को छुपाना, मुस्कुराते रहना तुम्हारी आदत है। बरसों पहले सीखी आदत। जिन्होंने तुम्हें ढेरों दुख दिए हों, तंग किया हो। कभी सामने पड़े हों तो तुम्हारी मुस्कुराहट एक आदत भर, तुम्हारा कवच।

तुम हार्वर्ड में एक्सटेंशन कोर्स ले रही हो। एक्सरसाइज ग्रुप की औरत लीडर कहती है- ही हैज इंसल्टिड यू-यू आर टू रियेक्ट।

‘तुम मुस्कुरा क्यों रही हो? तुम्हें ठेस पहुंची है... गुस्सा दिखाओ‘

तुम्हारे जान-पहचान वाले डॉ. तामई जापान के स्वास्थ्य मंत्री, सुनामी के बाद लिखते हैं- जापानियों के पास शब्द नहीं हैं। दुख-अभाव प्रकट करने के। मां से बहुत पिटने पर, बिना वजह की मार के बाद, मां का पास बुलाना, मीठा बोलना, मीठा तो वह क्या बोली होंगी, कर्कश वह हमेशा रही। जरा से प्यार से। मार के बाद मुस्कुराती तुम्हें माफ करतीं। माफ कब होता है? कब करती हो माफ तुम किसी को ? तुम अपनी तरह से बदला लेती हो। मुस्कुराना ऊपर का ढोंग... बेबसी। निष्क्रिय हमलावर... पैसिव अग्रेसर हो तुम।

आज 31 दिसंबर है। सुबह योगा, फिर मेडीटेशन, फिर एक्सरसाइज एक-दूसरे को अपने बेगानों को पास लाने वाली और अब टैलेंट शो। हम कविताएं, चुटकुले और गीत, कहानियां सुना रहे हैं। ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ के इस छोटे से कमरे में अब हम सब इकट्ठे हैं। फायरप्लेस में आग जल रही है। लकड़ियों के जलने की भीनी-भीनी खुशबू सभी को किसी पुरानी क्रिसमस की याद दिला रही है। क्रिसमस स्टोकिंग्स, डेकोरेशन वाली मैंटल से लटक रही है। कमरे में बहुत कम रोशनी वाला एक ही बल्ब, चारों ओर जलती मोमबत्तियां। हमारा शेफ रिट्ज कार्लटन का शेफ रह चुका है। उसकी बीवी, दो बच्चे और सास भी यहां हैं। कमरे के कोने में टिके पियानो को बजा वह क्रिसमस गान गा रहा है। उसकी यहूदन सास साथ है। उसकी बीवी क्रिश्चियन बन चुकी है। कहती है- आई बिलीव इन एंजल्स। तुम सोचती हो अपनी एक दोस्त के बारें में, जिसने अपने बेटे और बहू के लिए शिवा किया था, मरने वाले की याद में किया गया पाठ, शिवा-क्रिश्चियन से शादी कर उनका बेटा उनके लिए मर गया था। तुम सोचती हो इस शेफ के साथ आई यहूदन सास ने ऐसा कुछ तो नहीं किया। वह तो हरदम ‘हनी - हनी‘ कहती रहती हैं। तुम्हारे और बाकी वेजिटेरियंस के लिए शेफ कितनी अच्छी वेजीटेरियन डिशेज बना रहा है।

ग्रुपलीडर ने हमें पैड, पेंसिल और पेन थमा दिए हैं। इस छोटे कमरे में कई छोटे- छोटे कोने ढूंढ़ हम बैठ गए हैं- कारपेट पर, इक्का-दुक्का लोग कुर्सियों पर, हममें से कुछ बड़े हॉल और पोर्च पर भी चले गए हैं। तुम सोचती हो पोर्च वालों को सर्दी लग रही होगी। तुम कमरे के एक कोने में दीवार का सहारा ले बैठ गई हो। हम पिछले साल हुई उन घटनाओं को, हादसों, सताने वाले पतियों, उद्दंड बच्चों को, रिश्तेदारों को, बॉसेज को जिन्होंने हमें सताया, दुखाया है, आतंकित किया है, हमारा हक छीना है, लिख डालेंगे फिर जिस कागज पर ये हादसे लिखे हैं, उन कागजों को फाड़ उनकी चिंदियां कर जलती आग में डाल, जला, हम इनसे मुक्त हो सकते हैं। छुटकारा पा सकते हैं। इस तरह उनको लिखकर स्वीकार करने के बाद फाड़ कर टुकड़े-टुकड़े कर जला हम उनसे छुटकारा पा रहे हैं। इस साल के ख़त्म होते, हमारे दुत्कारते बॉसेज, सताती मांएं, पति-पत्नियों, उनकी कही बातें, यादें, ग्लानि एक तरह से बीतते साल के साथ ख़त्म हो जानी चाहिए। कम से कम उनसे छुटकारे की शुरुआत... अब हम उन्हें भूल जाएंगे। माफ करने की कोशिश।

नया साल, नई मनोकामनाएं, नए विश्वास के साथ शुरू करेंगे। पिछले साल की वही पुरानी गलतियां हम बार-बार न दोहराएं। पर ये हिंदू क्या कहते हैं, हम बार-बार जन्म लेते हैं। गलतियां सुधारने, अपने को उभारने के लिए जब हम सब कुछ भुगत ऊपर उठ जाते हैं- लगाव से, प्यार से, लेन-देन से, दुःख से, सुख से तो दोबारा जन्मते नहीं। एक तरह से जो अनश्वर है, उसमें मिल जाते हैं।

सभी के लिखे चिंदियां हुए कागज, अंगीठी की आग मे बराबर जल रहे हैं। एक छोटे कमरे में इतने लोग ! गरमी ज्यादा हो गई है। लोगों ने अपने ऊपरी स्वेटर, मफलर उतार एक कोने में रख दिए हैं। न जाने क्या सूझी कि एक सफेद औरत बिली हॉलीडे का कोई पुराना गीत गा रही है। कहां बिली हॉलीडे, कहां यह, जैसे फिल्मी धुनें गाने वाली कोई गायिका बेगम अख्तर या अमीर बाई कर्नाटकी की नकल करती सी।

चलो इस औरत का गाना-बजाना बंद हुआ। कागज अभी आग में जल रहे हैं। कभी-कभार कोई लपट बहुत ऊंची उठ आती है। कोई डेलीगेट लोहे की सींक से, लपटों को भुरभुरा दबाने की कोशिश करता है। और लकड़ियां अंगीठी में डाल दी गई हैं।

फायरप्लेस के ऊपर डलांगा के किसी आर्टिस्ट का वाटर कलर। बरसों पहले जो कैबिनुमा घर था, अब कुछ-कुछ शैले और कुछ-कुछ माउंटन कैबिन की तरह। तुम सोचती हो बरसों पहले ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ कैसा रहा होगा ? कैसे सेटलर्स आए होंगे ? इंडियंस को भगाया होगा। नेटिव अमेरिकन इंडियन चेरोकी, वह तो खेती-बाड़ी करते थे। उनकी अपनी भाषा थी। अचानक सैकड़ों चेरोकियों पर की गईं ज्यादतियां तुम्हारे जेहन से गुजर रही हैं। तुम जबरन अपने को रोकती हो। तुम्हें इस वक्त कोई नेगेटिव बात नहीं सोचनी। अब नहीं जाना वहां। यह हर वक्त एक्टीविस्ट का मुखौटा, हर ज्यादती, किसी के साथ क्यों न हुई हो, के लिए लड़ना बिल्कुल नकली है, एक आदत भर। तुम यहां सुकून और शांति के लिए आई हो। गोरों और कालों के या गोरों और आदिवासियों के संबंधों की समस्या सुलझाने के लिए नहीं।

जब तुम पहले पहल नेब्रास्का आईं थीं, तो लोग तुम्हारी दो बेटियों और रंग की वजह से तुम्हें नेटिव अमेरिकन मान बैठते थे। तुम्हारे एक टीचर डॉ. बर्नावेल छोटी- मोटी गलतियों पर बरसों नेब्रास्का, ओमाहा की जेलों में डाल दिए गए। नेटिव अमेरिकंस (रेड इंडियंस) जो ज्यादातर इंडियन थे, जेलों में जा उनके लिए अरजियां लिखते थे। उनके लिए प्रो बोनो वकीलों का इंतजाम, वहां काले कम थे। अगर होते तो डॉ. बर्नावेल उनके लिए भी अरजियां लिख रहे होते।

वह एक एक्टीविस्ट थे।

तुम्हें याद है, तुम नई-नई नेब्रास्का आईं थीं। के मार्ट जैसी दुकान पर शीशे की अलमारियों में बंद नकली गहनों को बड़ी तन्मयता से देख रही थीं। सेल्सगर्ल के सामने खड़ी मैनेजर पास आईं। तुम्हें शीशे की अलमारी पर झुका देख कहा था- ‘वॉच हर केयरफुली‘। तुम हक्की-बक्की उसकी तरफ देखे बिना, बिना कुछ कहे वहां से खिसक गई थीं। आज कोई कुछ कहता तो शायद जवाब देतीं। अगर ऐसी किसी दुकान पर काम करने वाली मोटी-काली होती तो तुम चुपचाप खिसक जातीं, क्योंकि वह काली गुस्से से तुम्हें पीट भी सकती थी।

गुस्से में फुंफकारती, तुम्हारी कुछ काली स्टूडेंट्स तुम्हें हर पल दबातीं। तुम्हारी डॉक्टर बॉस काली, ग्रुपलीडर ऊंचा ऐलान कर रहे हैं। उनकी जर्मन असिस्टेंट हम सभी को तीन-तीन, चार-चार कोरे कागज पकड़ा रही है। क्लिपबोर्ड अभी हमारे हाथों में है, ग्रुपलीडर टेरी, अपनी मीठी आवाज़ में कह रहा है कि अब आप लोगों के पास लिफाफे हैं, अब आप लोग 50-60 मिनट लें और अपने-अपने नाम खत लिखें कि आप इस आने वाले साल में क्या-क्या चाहते हैं। आपकी मनोकामनाएं क्या हैं? घरवालों से ज्यादा नजदीकी, नए दोस्त, पुरानों की छंटनी, नयों का शुमार और ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करना है। आप कौन-कौन से प्रमोशंस चाहते हैं। आप कितने नाटक, कहानियां, यात्राएं करना या लिखना चाहते हैं। ड्रीम अवे, डू नॉट रिस्टरिक्ट योरसेल्फ बी डायरेक्ट, बी क्लीयर, बट डू नॉट आस्क फॉर समथिंग यू कैन नॉट हैंडल राइट अबाउट ऑल द माउंटेंस, यू वांट टू क्लाइम्ब नेम देम स्पेसिफाई देम वाट डू यू वांट, मोर एट पीस, मोर गिविंग-मोर एट पीस विद योर सेल्फ।

हमारे खुद को लिखे खत, अपने को, यूनीवर्स को, हमारी मनोकामनाएं हमारी बीमारियां दूर हो जाएं। हमारे मित्र हमें सराहें। हमारे प्रियजन हमें भरपूर प्यार करें। हमारे अफसर हमें समझें। प्रमोशंस में मदद दें। कम से कम हमें लताड़ें तो न... जो यात्राएं आप करना चाहते हैं, जिन ऊंचाइयों तक आप पहुंचना चाहते हैं, क्या आप साइंटिफिक लैब के डायरेक्टर होना चाहेंगे। नए पेटेंट्स चाहेंगे। वकील या जज बनना चाहेंगे। बेरोजगार हैं तो नौकरी चाहेंगे। ऊंची नौकरियां, इम्तहानों में सफलता, नए यह सब आप यूनिवर्स से मांग रहे हैं।

आप यह भी मांग सकते हैं, मैं रिटायर हो कहीं ऐसी जगह रहूं, जहां कुछ करना चाहूं। न करने पर मजबूर होऊं अकेले रहूं। डिवोर्स लूं। या अपने बड़े बच्चों के साथ रहूं, जोड़े यहां केवल तीन ही हैं। आप अपने भाई-बहनों की सफलता मांग सकते हैं। दोस्तों की सफलता, उनके लिए कामयाबी, अपने लिए उनके लिए अच्छा स्वास्थ्य कम चुनौतियां।

यह सब यूनिवर्स को लिख लिफाफे में डाल बंद कर अपना पता लिख दे। ये बंद लिफाफे, पता लिख आप मैगदलीन को दे दें। दिसंबर- अगली दिसंबर में आपको ये खत मिल जाएंगे। साल ख़त्म होने से पहले ये खत आपके पास लौट आएंगे और आप इनका मूल्यांकन कर पाएंगे। ब्रह्मांड ने, ऊपर वाले ने, एनर्जी सोर्स ने आपकी कितनी कामनाएं, कहां तक पूरी कीं। आपका मुद्दा दूसरों से न जलना, जल्दी न घबराना, पैनिक अटैक से बचना, अफसरों या स्टूडेंट्स के सामने बोलने में घबराहट कहां तक कम हुई। लिखकर बहुत सी चीजें क्लीयर हो जाती हैं।

यूनीवर्स नोज, व्हाट यू वांट एंड डिलिवर्स।

तुम मन ही मन सोचती हो, और अकेली आई इतनी औरतों के लिए, आदमियों के लिए विल द यूनीवर्स डिलीवर हैंडसम रिच प्रिंसेस, रिच ब्यूटीफुल प्रिंसेसेस !

हम साल ख़त्म होते खतों को खोल देखेंगे। हमारी कितनी चाहतें पूरी हुईं? कितने अप्रेसिव बॉसेज से छुटकारा। कितने अच्छे दोस्त बने, मिले जिन्होंने हमें बढ़ावा दिया, जिन्हें हमने अपना माना। हमारे ये खत साल भर एक सेफ में पड़े रहेंगे। ग्रुपलीडर कह रहा है- आप अगर बीच में घर बदलें तो बदले, पते मुझ तक भिजवाना न भूलें।

इन दिनों का अपना सम्मोहन रहा है और तुम और मैं इससे पहले क्रिसमस के तीन दिन भी तो एक तरह से एक जगह साथ ही बिता कर आए हैं। इन पिछले दिनों का सम्मोहन... योगा मेडिटेशन, ब्रेक, एक्सरसाइज अंतरंगता बढ़ाने वाली एक्सरसाइज ओपन प्रेयर्स आस्क द यूनीवर्स, और बहुत बढ़िया खाना, ग्रुपलीडर का खूबसूरत होना। मीठी आवाज़ एक लोरी की तरह। इस जगह का नाम ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग्स‘। नई शुरुआतों वाला सेंटर चिंदी - चिंदी हुए जलते कागजों पर तुम्हारा चिंदी-चिंदी लिखा, निमोनिया, फिर रिलेप्स, पढ़ाने में खांसी। एग्जाम टेबल पर तुम्हारे रखे बढ़े हुए दिल, असामान्य गुर्दे-फेफड़ों का कैंसर, अलग-अलग प्रकार के कैंसर सेल्स के सैंपल्स। तुम्हारी अपनी बीमारी के बाद काली डॉ. बॉस से गुजारिश आप सफाईवालों को बुलवा, सफाई करवा लें। सैंपल्स भी कोई रख दे तो... तुम्हारी बॉस- यू विल हैव टू क्लीन, अदरवाइज आई विल (तुम्हें साफ करना पड़ेगा वरना मैं करूंगी)। पॉसिबिलिटी ऑफ स्टूडेंट्स चीटिंग, मेज़ों को पोंछती तुम, गिरे कोक को गीले कपड़े से साफ करती तुम, स्टूडेंट के चिपकाए जूठे च्विंगम हटाती तुम, खांसती तुम, इन्हेलर इस्तेमाल करती तुम। एग्जाम ठीक से हो गया। हमदर्दी दिखाती तुम्हारी बॉस- आज तुम कम खांसी, इन्हेलर भी कम इस्तेमाल किया।

तुम्हारी डॉ. बॉस तुमसे क्यों नाराज रहती हैं ? तुम हिंदुस्तानी हो, इसलिए ? तुम्हारे डिपार्टमेंट की सैक्रेट्री डॉ. इंगा फ्रेडी अगर नौकरी न छोड़ती तो आज जिंदा होतीं। पर डॉ. इंगा तो तुम्हारी बॉस की तरह काली थीं। हालांकि उसका रंग कालों के बीच गोरों जैसा... पहले अवॉर्ड बॉस को मिलते थे। हर साल बेस्ट टीचर अवॉर्ड। अब पिछले तीन सालों से भविष्य में होने वाले डॉक्टर इंगा को बेस्ट टीचर चुनते हैं। हरदम इंगा फ्रेडी को नीचा दिखाती- स्टूडेंट के सामने, रेजिडेंट्स के सामने, मेडिकल फैलोज के सामने - तुम्हारी बॉस। दोनों की तकरार, झकझक। डॉ. इंगा ने नौकरी से इस्तीफा दे दिया है। डॉ. इंगा को नई नौकरी नहीं मिल पा रही। तुम्हारी डिपार्टमेंट सैक्रेट्री रेंने का फोन लगभग रोते हुए ‘‘डॉ. इंगा फ्रेडी इज नो मोर।‘‘

आज सुबह डॉ. इंगा फ्रेडी ने आत्महत्या कर ली। अपने अपार्टमेंट में। अपने को गोली मार। तुम्हारी सैक्रेट्री बार-बार कह रही है अगर वह नौकरी से इस्तीफा न देती तो आज जिंदा होती।

तुम्हारा निमोनिया, रिलेप्स, इंगा की मौत, मेज के नीचे से च्विंगम उतारती तुम, सब कुछ लिख जला डाला।

तुम्हें भूल जाना चाहिए। तुम्हारी बॉस, जो अब डीन भी है, तुम्हारी प्रमोशन, तुम्हारी बॉस- वी कैन हैव ओनली वन फुल टाइम प्रोफेसर। युअर प्रमोशन विदआउट रेयज नो फाइनेंशल गेन्स (हम सिर्फ एक फुल टाइम प्रोफेसर रख सकते हैं... बिना मुआवजे के तुम्हारा प्रमोशन... कोई आर्थिक लाभ नहीं)।

तुम अपनी वकील दोस्त के साथ अशविले आई हो। वह लोग मीटिंग्स पर यहां आते हैं। सुंदर घर, शीशे की खिड़कियां, घर जैसे ट्री हाउस हो, जंगलों के बीच। तुम पास की एक पगडंडी पर निकल आई हो। जंगल में कई पगडंडियों में तुम गुम हो गई हो। एक पगडंडी पकड़ती हो चलती हो, भटक जाती हो। दूसरी पगडंगी पकड़ती हो, और कहीं और पहुंच जाती हो। सर्दी बढ़ रही है। तुमने कोट पहना है। पर तुम्हारे पास दस्ताने नहीं, चारों ओर बर्फ ही बर्फ। अब तुम पिछले डेढ़-दो घंटों से गुम हो। जिस पगडंडी से तुम आई थी, वह तो शैले के एकदम पास थी। अब तुम एक पगडंडी में तीन घंटे गुम होने के बाद बाहर सड़क तक पहुंच गई हो और शैले कहीं नजर नहीं आ रहा। कुछ घर हैं। तुम एक का दरवाजा खटखटाती ‘‘आप उस एटोर्नी परिवार को जानते हैं, नहीं !‘‘ दूसरे घर का दरवाजा। तीसरे घर वाले उन्हें जानते हैं। तुम्हें उनके शैले तक पहुंच गए हैं। तुम्हें गर्म-गर्म चाय, ब्रांडी, वे सचमुच घबरा गए थे। और अब तीन टोलियां बना तुम्हें ढूंढ़ने निकलने वाले थे। तुम शर्मिंदा होकर एकदम रोने को। तुम कई शहरों में अकेले घूमते हुए गुम हुई हो। जब भी अकेली इस तरह जाओ, सेलफोन पास रखो। तुम्हारे पास सेलफोन नहीं... घड़ी भी तुम नहीं लगाती जो वक्त का अंदाजा रहे। तुम खुद ऐसी स्थितियों को आमंत्रित करती हो, इज इट नीड फॉर अटेंशन और सेल्फ डिस्ट्रक्शन ? (यह तवज्जो पाने के लिए है या फिर आत्म- ध्वंस की प्रवृत्ति ? )

हम पगडंडी पर चल रहे हैं। तुमने बताया था तुम जॉर्जिया अपनी बीवी की वजह आए। वह अल्बनी जॉर्जिया से थी। वह लोग पुराने जॉर्जिया से हैं, वह लोग उस शहर के बहुत अमीर परिवार से हैं। पुराने दक्षिणी सामंत जिनके पुरखों के कभी प्लांटेशन में 100-150 गुलाम थे। वैसे उनका परिवार लिबरल है। उनके दादा- परदादा ने मुक्ति का दस्तावेज पास होने से पहले अपने गुलामों को आजाद कर दिया था और उनके कई गुलाम पढ़े-लिखे थे। और तुम बता रहे हो, तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का बड़ा बिजनेस था। जो तुमने कांग्रेस मैन की इलेक्शन से पहले ख़त्म कर दिया था और फिर तुम बहुत कम वोट्स से हारे। तुम मुझे कहानी सुना रहे हो। तुम ब्लैक चर्च में गए हो। वोट्स के लिए। संडे सर्विस अटैंड कर रहे हो। तुम कहते हो तुम रिपब्लिकन हो, बट सोशली लिबरल पलपिट से ब्लैक लीडर जेसी जेक्सन जो कभी प्रेसीडेंट के पद के लिए भी लड़े थे। सफेदों को कोस रहे हैं- ये सफेद लोग कभी नहीं सुलझेंगे। दबाना सफेदों के खून में है। ये हम कालों को हरदम दबाएंगे। हमारी कामयाबी ये भला कहां देख पाएंगे। चर्च में तुम और तुम्हारी बीबी दो ही सफेद हैं। चर्च सर्विस के बाद कैसे जेसी जेक्सन तुम्हारी बीवी के पीछे पड़ गया था। तुम्हारे खाने की टेबल पर बैठ गया था। अब उनका पूरा का पूरा ध्यान तुम दोनों की ओर था। खासकर तुम्हारी सफेद बीवी पर, जो बहुत सुंदर है। बहुत से काले तुम्हारी मेज पर आ रहे हैं जेसी जेक्सन से बात करने। पर वह तुम्हारी बीवी को रिझाने में पूरी तरह तल्लीन, तन्मयय तुम्हारी पार्टी की इंचार्ज एक सफेद एक्टीविस्ट कह रही थी- ‘‘जेसी जेक्सन किसी सफेद औरत को नहीं छोड़ते।‘‘

सबसे बड़ा बदला- गोरी औरतों के साथ सोना। प्लांटेशन की मालकिन के साथ सोना। प्लांटेशन के पहले दिनों में मालिकों ने तुम्हारे पुरखों का अपमान किया होगा, उन्हें बेचा होगा, उनके साथ बलात्कार किया होगा। लेकिन आज बहुत से अपराधबोध के मारे गोरे खुद ही तुम्हारे मन का करने को तैयार हैं। (अल्टीमेंट रिवेंज स्लीपिंग विद व्हाइट विमन, स्लीपिंग विद मिस्ट्रेस ऑफ द प्लांटेशंस, इन द प्री- प्लांटेशंस डेस ओनर्स कुड हैव इंसलटिड योर एनसेसटर्स, सोल्ड देम ऑफ, और रेप्ड देम। बट नाउ देयर आर सो मनी गिल्ट रिडर्न व्हाइट एक्टीविस्ट रेडी टू ऑबलाइज)। पोडियम से जेसी जेक्सन का सफेदों को फटकारना और फिर तुम्हारी मेज पर आ बैठना। तुम्हारी बीवी को रिझाना उनका धर्म और मेज पर उनसे बातें करने आए कालों को नकारना भी उनका धर्म। तुम कहती हो 

(पावर करप्ट्स, व्हाइट्स ओप्रेस्ड द ब्लैक्स, एंड नाउ बोथ ब्लैक्स एंड व्हाइट्स ओप्रेस - मैक्सिकन्स, इंडियंस, और हू सो एवर दे केन, इट ऑल पावर स्ट्रगल)। सत्ता भ्रष्ट करती है... गोरों ने कालों का दमन किया... और अब काले और गोरे दोनों मैक्सिकनों, भारतीयों और जिसका वे कर पाए, दमन करते हैं... यह सब सत्ता संघर्ष है। तुम्हारे पास तुम्हारी काली बॉस के जुल्मों की फेहरिस्त है। तुम जब-तब उसे खोल बैठती हो। तुम कहती हो दमित लोग सबसे बड़े दमनकारी बन जाते हैं। इजरायलियों को देखो कैसे फिलिस्तीनियों को दबा रखा है। (ओप्रेस्ड पिपुल बिकम द वर्ल्ड ओप्रेसर्स लुक एट द इजरायलीज हाउ दे सबज्युगेट फलीस्तीनयंस)। बात गुलामी से होते हुए जेसी जेक्सन की कामशक्ति पर पहुंच गई।

तुम कहती हो पॉलिटीशियन की कामशक्ति कुछ खास होती होगी। हिंदुस्तान में जब तुम पिछली बार गई, एक 85 साल का पॉलिटीशियन पकड़ा गया। 18-20 साल की औरतों के साथ।

तुम कहते हो तुम रिपब्लिकन हो। मैं कहती हूं - आई एम लेफ्ट ऑफ द लेफ्ट। तुम बता रहे हो, तुम्हारा जन्म बोस्टन का, पर तुम फिलोडेल्फिया में रहे हो, पढ़े हो।

तुमने अपना लास्ट नाम नहीं बताया। मैंने तुम्हें कुरेद-कुरेद कर तुम्हारा लास्ट नाम जान लिया। जोसेफ मैककोर्मिक बिजनेस कन्सल्टेंट। तुम्हारा डिवोर्स हो चुका है। तुम्हारी कंपनी बिक चुकी है। तुम इलेक्शन हार चुके हो, और तुम्हारी काली ऐस्ट्रेस गर्लफ्रेंड है।

तुमने फिर मुझसे कहा था- तुम्हें अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देना चाहिए। रिसर्च के अलावा भी तुम बहुत कुछ कर सकती हो। साइंटिफिक कन्सल्टेंट। एफडीए में जॉब, ईपीए में या कोई प्राइवेट कंपनी।

मैंने कहा था- मुझे एमसीजी में नौकरी मिली थी। मैं ऐन मौके पर डर गई थी, नया शहर, नए लोग। यहां इस शहर में कुछ लोगों के साथ जुड़ गई हूं। हम पराए मुल्कों से आए लोग जहां पहली बार रुकते हैं, यह हमारा डर है। उस जगह को आखिरी पड़ाव मान लेते हैं। यह हमारा डर है। हमारी हिम्मत उस पहली उड़ान के बाद ही ख़त्म हो जाती है। नई पढ़ाई, नई नौकरी, नई जमीन एक डर बराबर बना रहता है।

जो पहली नौकरी मिलती है, उसमें भी हम लोग भाव-तोल नहीं करते।

तुम कह रहे हो - चाहे रिसर्च हो, चाहे पॉलिटिक्स, आगे बढ़ने के लिए, तरक्की के लिए, तजुर्बे के लिए, विकास के लिए गति जरूरी है। यह सफलता की कुंजी है। (दैट इज दे की टू सक्सेस)।

बस इतना ही याद है। तुम्हारी काली एक्ट्रेस गर्लफ्रेंड है। तुमने मेरे पैरों के तलुओं की मालिश की है। मेरे कंधों को दबाया है। मेरी कनपटियों को छुआ है। मेरे हाथों की एक-एक उंगली को अपने हाथों में पकड़ जोर से खींच टेंशन निकाली है।

हम सभी इन जगहों पर आते हैं। अपने घरों से भागते हुए। नौकरियों से भागते हुए। शहरों से भागते हुए। हम चाहते हैं इन दिनों की इकट्ठी मिठास हम वापस ले जाएं। हम अपनी दूसरी जिंदगी में और घोल सकें, अजनबियों को छू बटोरा सुख, अपने घर वालों, मित्रों, बॉसेज, सबआर्डिनेंट्स में बांट सकें। लौटकर हमारे पति हमें छुएं तो हम चैंके नहीं।

कोई हमारा चुंबन ले तो हमारा मुंह कड़वा न हो।

हम सभी ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ में आए हैं। एक-दूसरे को छूने के लिए। हम सभी अकेले हैं। अपने-अपने अकेलेपन के आदी हैं। अपने अकेलेपन को प्यार करते हैं। पर साथ ही त्योहारों पर क्रिसमस हो, ईस्टर हो, नया साल हो... बहुत कुछ बांटना चाहते हैं। ऐसी जगहों पर इकट्ठे होते हैं। रिट्रीट्स पर जाते हैं। हम अकेलेपन को चाहने के बावजूद त्योहारों पर अकेलापन शायद चाहते नहीं, सह नहीं पाते। इस तरह अजनबियों के साथ 72 घंटों के बाद बहुत कुछ बांट जब हम लौटेंगे, अपने-अपने शहर-घर, हम अपने बॉसेज की कड़वी बातें, न पाएं प्रमोशंस, दोस्तों और घरवालों की उलझनों को शायद जरा सहजता से ले पाएं।

ऐसी रिट्रीट्स पर अकेली औरतें ज्यादा रहती हैं। जोड़े कम। और चुनने लायक आदमी तो एकदम कम। सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग पर आदमी और औरतों की संख्या हमेशा से बराबर रही है। यह पहला सेंटर था, जहां औरतों की बहुतायत नहीं, इस बार रिट्रीट्स पर आए लोगों की उम्र 30-60 के दरम्यान है।

हम अच्छा-खासा पैसा खर्च कर आए हैं। इन तीन दिनों के लिए अच्छा खाना और अच्छा वातावरण उदार आयोजक की जिम्मेदारी है। पर हम सभी का बैगेज है। योगा, मेडीटेशन, मसाज, एक्सरसाइज टू लर्न इंटीमेसी। एक-दूसरे की गर्दनों की मालिश, पैरों के तलुए सहला, लेवेंडर की सुगंध से सुगंधित हमने अपने स्नायुओं को स्पर्श के अनुभव के लिए उकसाया है। स्नायु सिर्फ दिमाग में ही नहीं, पाचनतंत्र में भी होते हैं। दिमाग से ज्यादा तंतु शायद पाचनचंत्र में। हाथ की मालिश, अनुभव किया जाने वाला स्पर्श। (टेक्टाइल टच इज मस्ट फॉर हयूम्नस। पेट्स कैन डू द सेम फॉर यू)। मनुष्य के लिए स्पर्श का अहसास आवश्यक है। पालतू पशु भी यह अहसास दे सकते हैं। हाथों की छुअन - हम आसानी से एक-दूसरे को आलिंगन में बांध लेते हैं। आलिंगन जरूरी है। तुम्हारे स्टूडेंट्स फेल होने के बाद या माता-पिता को खोने के बाद कोई कह रहा था - डॉ. दत्त आई नीड ए हग। आई रियली नीड इट आई एम रेडी टू टच एंड बी टच्ड।

क्या यह मानेस्टरी में किसी से लड़ कर आया था? किसने सुझाया था इसे मानेस्टरी आना। क्या यह अल्कोहलिक था ? क्या किसी न ठीक होने वाली बीमारी से त्रस्त यह साधु बनने की सोच रहा था या पादरी ?

हम मॉनेस्टरी के एंट्रेंस हॉल में बैठे हैं। कुछ कुर्सियों पर। बाकी सभी जमीन पर कार्पेट पर। हम मानेस्टरी में मेन डेस्क के सामने बैठे हैं।

बाहर हल्की बूंदाबांदी। आज क्रिसमस इवनिंग है। बाहर फ्रीजिंग रेन, बारिश पानी की बूंदें गिरते ही जम रही हैं। कोई भी आज मानेस्टरी के पांड तक नहीं गया है। इक्का-दुक्का लोग गिफ्ट शॉप तक गए हैं। साधुओं के बनाए फ्रूट केक्स खरीदने, कुछ साधुओं के बनाए बाॅन्साइ देखने। एक सत्ताईस वर्षीय लड़की ने कहा- ‘‘मैं यहां अपनी असाध्य बीमारी के लिए आती हूं। मुझे भय के दौरे पड़ते हैं। तुम्हें ब्रेकफास्ट टेबल पर देखा था। तुम कोई किताब पढ़ रहे थे। सबसे अलग ऑक्सफोर्ड शर्ट, खाकी पेंट्स, पॉलिश हुए महंगे लैदर शूज, या तो कोई प्रोफेसर या बड़ा बिजनेसमैन। अलग-थलग।‘‘ मुझसे कोई पूछ रहा है- ‘‘आप कबसे यहां आ रही हैं। 1994 में पहली बार आई थी जब पिता बहुत बीमार थे। अब हर साल क्रिसमस पर यहां आती हूं। और फिर न्यू ईयर पर योगा रिट्रीट एट ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ डोलांगा।‘‘ तुम पूछते हो - ‘‘क्या वहां कोई भी जा सकता है ? क्या मैं जा सकूंगा ? अब एनरोलमेंट की देर हो चुकी है। ऑर्गेनाइजर्स अच्छे हैं आप कॉल कर पूछ देखिए। आर यू अ कैथोलिक - नो आई एम ए हिंदू - बट आई लव दिस मानेस्टरी - इट इज ए स्केरेड स्पेस फॉर मी, वुड यू लाइक टू कन्वर्ट टू कैथोलिज्म - नो आई एम वैरी कम्फर्टेबल विद माई रिलीजन। इवन इफ आई वाज नॉट ए हिंदू - आई विल कन्वर्ट टू हिंदुइज़्म 

बीइंग ए हिंदू। आई केन टेक द बेस्ट फ्रॉम आल रिलीजंस। क्या आप कैथोलकि हैं। नहीं, मैं हिंदू हूं पर मैं इस मानेस्टरी को पसंद करती हूं... यह मेरे लिए पवित्र स्थान है। क्या आप कैथोलिक बनना चाहेंगी? नहीं, मैं अपने धर्म में बहुत संतुष्ट हूं। यदि मैं हिंदू नहीं होती तो भी मैं हिंदू धर्म अपना लेती। हिंदू होने के नाते मैं सभी धर्मों से उनका सर्वश्रेष्ठ ले सकती हूं।‘‘

हिंदू धर्म की खास बात क्या है ? क्रिश्चियनिटी की दया, इस्लाम का समानतावाद, हिंदू धर्म की फिलॉसफी। बीइंग द हिंदू आई एम फ्री टू बी एट मानेस्टरी, सेंटरर्स नेटिव, अमेरिकंस लॉजिस, ऑल दो आई वाज किक्ड फ्रॉम अ मास्क्यू वंस अनेदर स्टोरी। (हिंदू होने के नाते में मानेस्टरी में जाने के लिए स्वतंत्र हूं। हालांकि मुझे एक बार मस्जिद से बाहर निकाल दिया गया था। पर वह एक अलग कहानी थी।)

मुझे इसकी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। यह जान गया है कि यहां हम दोनों ही ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। ऐसे ही पूछ रहा है, कहां जाएगा ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘। मुझे बना रहा है। तुम्हें पहले-पहल ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ पर देख लगा, कुछ संभावनाएं हैं। इसके हाथों में वेडिंग रिंग नहीं।

यह मेरे लिए यहां आया है। इतनी सफेद औरतें हैं, एक-दो देखने में अच्छी- खासी। इसने मुझे चुना है। टेलेंट शो में गाना, कविताएं, चुटकुले, तुम्हारा शांति पाठ-

द स्काई इज पीसफुल

द अर्थ इज पीसफुल

द वाटर इज ऐट पीस

मेडीसिनिल प्लांट आर एट पीस

द वेजीटेशन इज एट पीस

गोड्स आर एट पीस

लेट दिज पीस एंटर अवर हाट्र्स 

एंड जर्नीज वी आर टू एम्बार्क।

आन बी, पीसफुल एंड हारमोनियस

हम दो-चार लोगों का ग्रुप है और डीसी से आई औरत तुम्हारे आगे-पीछे ज्यादा ही फिर रही है। तुम हवा में सवाल उछालते हो, आप दिन में क्या कर रही हैं ?

‘‘मैं चैपिल में जा मेडीटेट करूंगी।‘‘ ‘‘ कब ? चार बजे के करीब।‘‘‘‘ अच्छा मैं आपको वहां मिलूंगा।‘‘ मैं तुमसे पहले चैपल पहुंची थी। तुम 4ः30 या 5 के दरम्यान आए। मैंने कचोट-कचोट कर तुम्हारा लास्ट नेम पूछा। तुमने कहा- ‘‘मेरी ब्लैक गर्लफ्रेंड है ... एक्ट्रेस। ‘‘

मैंने कहा, “मैं भी कभी नाटक करती थी। तुम जिद्द करने लगे कौनसे नाटक आपने किए ? आप नहीं जानते होंगे उनके नाम। तुम्हारी जिद्द मैं बताऊं। यह भी कि क्या रोल थे मेरे। पहले नाटक ‘उत्सर्ग‘ में एक बच्ची, दूसरे नाटक में बुद्धा की मां महारानी लोकेश्वरी।

तीसरे टैगोर के नाटक में एक पगलाई बूढ़ी औरत, जिसका बेटा लड़ाई में मर गया। लड़ाई एक नदी के पानी को लेकर ‘मुक्ता धारा-फ्री फ्लोविंग रिवर‘

और फिर प्रेमचंद के उपन्यास पर आधारित एक नाटक ‘गोदान‘ में बूढ़ी धनिया। बस-बस मेरा बहुत हुआ आप बताइये, आपकी क्या हॉबीज हैं ?

हां, तुम चैपिल में आए। चार बजे नहीं, साढ़े चार बजे या पांच बजे। मैं घड़ी नहीं लगाती। मैंने चैपिल में अकेले बैठ मेडीटेट करने की कोशिश की थी। यहां आने वाले सभी लोग योगा, मेडीटेशन के दीवाने। तुम साल में एक बार आती हो केवल तभी योगा करती हो। कठिन पोज तुम नहीं कर पातीं पर तुम्हारे जिस्म में अभी लोच है। अभी लचक भी। जमीन पर घंटों बैठ सकती हो। उकडूं हो सकती हो, अब तुम्हारे जॉइंट्स जम गए हैं। जमीन पर बैठती हो तो उठने में दिक्कत होती है।

मेरे शरीर में लचक थी। साल में एक बार योगा करने पर भी, तुम योगियों एथलिट्स के दरम्यान मैं ज्यादा बुरी नहीं लगती थी।

मैंने नहीं पूछा कि तुम बराबर योगा करते हो, पर तुम एक्सरसाइज इतनी फुर्ती से कर रहे थे। तुम बैठते भी एकदम इरेक्ट योगी की तरह। हमने ढेरों बातें की थीं। बात तुम्हारी काली एक्ट्रेस गर्लफ्रेंड पर आ रुकी थी कई बार। मैंने ज्यादा अपने काम, अपनी बॉस और रेशियल डिस्क्रीमिनेशन पर, हर वक्त नकारे जाना, सफेदों और  कालों द्वारा, एक ही बात जाने कितने तरीकों से दुहराई थी मैंने भी और फिर शायद तुमने कहा था अपनी पिछली पत्नी के बारे में, जो मूंगफली क्वीन थी, अमीर खानदानी परिवार और कहा था उसके डिवोर्स मांगने में सरासर गलती तुम्हारी थी। फिर तुमने कहा था, ठहरो, रुको और स्टोररूम में चले गए थे और पेंसिलनुमा तीन लंबी मोमबत्तियां ढूंढ़ लाए थे, जो अक्सर गिरजाघरों में रहती हैं। जहां लोग आते हैं मोमबत्तियां उठा, पैसे की पेटी में पैसे डाल, रेत के ढेर में मोमबत्तियां टिका, जला प्रार्थना करते हैं। बीमार बच्चों के ठीक हो जाने के लिए, पतियों को लौटाने के लिए, प्रेमियों की कामनाओं के लिए। ऐसी कई मोमबत्तियां तुमने दुनियाभर के गिरजाघरों में जलाई हैं।

सांते-फी के ओल्डेस्ट चर्च, सेंट मार्क्स स्क्वेयर वेनिस, पेरिस चैपिल, क्रियेट की ऑर्थोडोक्स ग्रीक चर्च में। तुम्हारी ज्यादा प्रार्थनाएं काम को लेकर रही हैं। बॉस को लेकर रही हैं। तुम मोमबत्तियां ले आए हो। कहते हो - तुम्हें नई मोमबत्तियां कहीं नहीं मिली, क्यों न इन अधजली मोमबत्तियों को दुबारा जला लिया जाए। टूटी प्लेट पर थोड़ी मोम पिघला मोमबत्तियां टिका दी हैं। हम दोनों जमीन पर बैठे हैं। मोमबत्तियां जला मैंने परकोलेटर में पानी गर्म किया है। दो हर्बल टी बैग्स डाल खौलता पानी डाला है। शहद या चीनी नहीं, चाय फीकी होगी। तुम कहते हो - ‘‘तुम्हारी काली मित्र ने तुम्हें सिखाया है जब कोई अच्छी घटना हो, स्वयं की पहचान, कुछ गहरा रही हो, अच्छी बातचीत, अनुभूति, बातचीत ऐसे मौकों पर तीन मोमबत्तियां जला, चुपचाप बैठ उन मौकों को दर्ज कर लेना चाहिए। संजो लेना चाहिए। स्पेशल मोमेंट्स समथिंग इम्पोर्टेन्ट हैप्पन्ड हेयर।‘‘ तुम कहते हो, ‘‘यह हमारी तीन दिनों की दोस्ती पर मोहर है।‘‘ हम कुछ देर चुपचाप बैठे रहे। मोमबत्तियां जो पहले आधी जली थीं, अब तीन-चैथाई जल चुकी हैं। तुम मोमबत्तियां बुझाते हो, हमारी चाय ख़त्म है। मैंने चाय के प्याले धो दिए हैं। हम दोनों ने अपने-अपने कोट पहन लिए हैं। हम दोनों मेन लॉज की तरफ लौट रहे हैं। रात का आखिरी खाना।

इतने अरसे बाद आज अटलांटा में बर्फ गिरी है। अटलांटा शहर तीन दिन से बंद है। आज तुमने चिड़ियों को दाना डाला है। धूप निकली है, बर्फ चमक रही है। तुम्हारे घर के पिछवाड़े के ऊंचे कद्दावर चीड़ के पेड हवा में झूल रहे हैं। जब घर खरीदा था तो 20-25 पेड़ थे। झंझावातों और तूफानों ने अधिकांश पुराने, बुढ़ाते पेड़ गिरा दिए। एक-दो को तूफान के बाद की बिजली ने जला दिया।

अब छह-सात पेड़ बचे हैं। तुम सोचती हो, ये मेरे बाद जाएँ। मैंने तो यह घर पेड़ों के लिए खरीदा था।

टिमटिमाती मोमबत्तियां, तीन अधजली धीमी-धीमी लौ, मेरी उंगलियों को खींचते तुम, तब मेरी जुराबें साफ थीं, उनमें कोई सुराख नहीं थे।

अब मेरे पैरों की उंगलियां एक-दूसरे पर चढ़ गई हैं। मुझे सर्जरी करानी है। तब उंगलियां ऐसी होतीं तो मैं जुराबें कतई न उतारती।

अब मेरे घर के पास नए घर बन रहे हैं। बहुत से नए आए लोगो ने कॉटेज तुड़वा मैंशन टाइप घर बनवाने शुरू कर दिए हैं। पहले यहां काले-सफेद सभी साथ रहते थे। अब ये नए आए, नए अमीर सफेद लोग हमें खदेड़ रहे हैं। हमारे छोटे घर, बड़े पिछवाड़े, जहां ढेरों चिड़ियां, गिलहरियां और कभी-कभार एक भटका हिरन भी आता था। इन नए अमीरजादों की बड़ी मैंशंस, पेड़ सब कटवा दिए गए। अब नए आए लोग जब अपने कुत्तों और बच्चों के साथ घूमने निकलते हैं, हमारी तरफ देखते भी नहीं।

अब नए आए यिप्पीस में से एक ने मुर्गे पाले हैं। अटलांटा के पॉश से पॉश इलाके में आप 8 मुर्गे- मुर्गियां पाल सकते हैं। किसी नए अमीरजादे का मुर्गा सुबह- सुबह बांग देता है। उसकी देखा-देखी साथ के घरों के कुत्ते भौंकने लगते हैं, तभी कोई एम्बुलैंस जब पास से गुजरती है तो ढेर सारे कुत्ते एक साथ भौंकते हैं। फिर एम्बुलैंस की आवाज़ के साथ कराहने लगते हैं। पहले भौंकना, फिर चीखना और फिर कराहना।

आज मेरे घर की कार्डिनल्स दाने पर धावा बोल रही हैं। नट हैचिस आती है। एक दाना उठा पेड़ पर जा खाती है। अकेला वुडपेकर लाल-काला सफेद टेढ़ी चोंच से रेलिंग पर पड़ा दाना चोंच में दबा रहा है, और मैं याद कर रही हूं, सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग को, जहां हम सब भटके हुए लोग, भागे हुए लोग सैफ हैवन की तलाश में आए थे।

बरसों बाद तुम्हारा नाम गूगल में डाला है। 

जोसेफ मौकोर्मिक एंटरप्रेन्योर

रेन फॉर कांग्रेस मैरिड टू

जॉर्जिया पीनट क्वीन इलीस्ट्रीसियस फैमिली 

डिवोस्र्ड, लॉस्ट इलेक्शन डिसएंचांटेड बाई बोथ रिपब्लिकंस एंड डेमोक्रेट्स 

पर्सनल स्टेटमेंट-लॉस्ट इलेक्शंस

वाइफ फाइल्ड फॉर डिवोर्स

रेप चार्जिस फाइल्ड बाई ए विमन इट वाज ए कॉन्सेच्युअल सैक्स, बीइंग ए कैथोलिक वेंट टू द मॉनेस्टरी।

तुमने इलेक्शन के बारे में बताया, डिवोर्स के बारे में बताया। पर रेप ऐलीगेशन की बात छुपा गए। हम सभी एक-दूसरे से कितना कुछ छुपा रहे थे।

पीपल रनिंग फ्रॉम देयर हाउसेस, हसबैंड्स क्लाइंट्स हाईडिंग रनिंग, गूगल विकिपीडिया ने तुम्हारे बारे में इतना कुछ बता दिया। (सीमा पर बैठे लोग, अपने घरों से भागते हुए, पतियों से, ग्राहकों से छिपते हुए, पलायन करते हुए)

मैं अपने घर के पिछवाड़े में बैठी हूं। धूप नहीं, आज धुंध है। हल्की-हल्की सर्दी, मेरे घर के पक्षी अपना दाना खा रहे हैं। मैं जरा सिर हिलाती हूं तो दाना खाते पक्षी डर कर उड़ जाते हैं। नट हैचिर्स, थ्रेशर्स, वुडपेकर, कार्डिनल्स। क्या तुम्हें पता है। कार्डिनल्स में नर की एकदम लाल-पीली चोंच, काली गर्दन, मादा का रंग भूरा रहता है। नर कोर्टशिप में मादा को खुद खाना खिलाता है, पर अपने बच्चों को नहीं।

उस दिन भी इसी तरह धुंध थी। हम डलांगा की छोटी-छोटी रोलिंग हिल्स वाले शहर के उस सेंटर में थे। तुम्हें वहां देख अच्छा लगा था। जान तो मैं मॉनेस्टरी में ही गई थी कि तुम अपने से भाग रहे हो। मानेस्टरी में भागे लोग ही आते हैं।

इतने सालों बाद तुम्हें याद कर रही हूं। कभी-कभार सोचने पर भी तुम्हें ढूंढ़ने की कोशिश मैंने नहीं की। सोचा, जानता है, मैं कहां काम करती हूं चाहे तो मुझे ढूंढ़ सकता है। और अब तो गूगल से किसी को भी निकालना कितना आसान हो गया है। विकीपीडिया में तुम्हारा पर्सनल स्टेटमेंट ‘आफ्टर द रेप अलीगेशन गोइंग टू द मानेस्टरी वाज ए टर्निंग प्वाइंट फॉर मी...‘ उन दिनों के सभी चेहरे भूल गई हूं। याद है, मेरे तलुवे सहलाते तुम, रिफ्लेक्टिंग पूल की पिघलती बर्फ में अपनी आकृतियां देखने की कोशिश में लगे तुम, तुम्हारे सर के आगे के बाल नदारद और पीछे के बाल एकदम काले।

तुम्हारा अधजली मोमबत्तियां लाना, मोमबत्तियों का तीन चैथाई जलना- बुझना, वापस स्टोर रूम में पहुंचना। अब हवा बंद है।

तुम अब सिएटल में हो। तुम्हें कॉन्टैक्ट करने की कोशिश नहीं करूंगी। क्या तुम अब भी अपनी एक्ट्रेस गर्लफ्रैंड के साथ हो जिसने तुम्हें तीन मोमबत्तियां जला, रिश्ते पर मोहर लगाना सिखाया था। तुम्हें क्या बरसों बाद कभी मेरा ख्याल आया ?

तुम्हारे बायो में मानेस्टरी का तो जिक्र था, ‘सेंटर फॉर न्यू बिगिनिंग‘ का नहीं।

सिएटल में तो बहुत धुंध रहती है। क्या तुम्हारे घर या कांडों के पीछे ऊंचे चीड़ के पेड़ हैं? जिनकी सुईयां पतझड़ में बराबर गिरती हैं ? क्या वहां कार्डिनल्स, नट हैचिर्स या वुडपेकर्स आते हैं ?

और हां, मानेस्टरी में जब तुम आए थे, तो क्या पॉन्ड पर गए थे? और वहां की बत्तखों को देखा था ? तुम्हें मालूम है बत्तखें साथी ढूंढ़ती हैं। सिर्फ एक साल की कमिटमेंट के लिए और हर साल नया साथी तलाशती हैं। और आज गूगल से पता चला तुम उम्र में कितने छोटे थे, 1962 का जन्म तुम्हारा, सच।

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प्रसंगवश

डाॅ. कमला दत्त, Georgia, USA, Email : kdut1769@gmail.com


‘करोना’ के बहाने भूले बिसरे चंद फसाने याद आये

आज तुम ठीक से सो पाई, पर डर बराबर बना है। तुम उम्र भर डरी सहमी रही, क्यों एक- जगह से दूसरी जगह भागती, टेलीविजन पर हर जगह कोरोना कोरोना-करोना का आतंक। वक्त कम है बहुत कुछ करना है। इतनी उक्ताहट क्यों- कर। तुम सचमुच क्या चाहती हो ? उम्र के इस आखिरी पड़ाव में कुछ अच्छी कहानियां लिखो। कुछ अच्छे गहरे रिश्ते जमा करो। कुछ नाटकों की कोशिश।

टेलीविजन पर बार बार दिखते कोरोना के मरीज, 

अधजगे, अधसोये, उल्टे लेटे, वेंटीलेटर लगे, नर्स, आरदलीस, डाक्टर्स अपने लब्बादों में डटे, दास्ताने, एन95 मास्कस, पहले धीरे-धीरे मरीजों के पैर हाथ सहलाते, अपनी जान खतरे में डाल पूरी लगन से सेवा करते यह लोग।

यह आखिरी सांसें लेते लोग। इनका अपना कोई पास नहीं आ सकता। खतरा-खतरा। हम लोग ही इनके आखिरी वक्तों के साक्षी- 

इन्हें नहीं लगना चाहिये-

इन का कोई अपना पास नहीं।

यह अधजगे अधसोये लोग 

आखिरी सांसे लेते लोग

जब यह आखिरी सांसे ले रहे होते हैं हम इन के हाथ पकड़े रहते हैं। हाथ पीठ सहलाते रहते हैं, प्रार्थना करते रहते हैं-

यह लम्हें जल्द बीत जायें और इन्हें लगे-है कोई पास

आप मूक साक्षी रहते हैं उनकी आखिरी सांसों के

लालची सांसें-आखिरी दम तक जीने की ज़िद्द

आखिरी हिचकी

माॅनीटर - वेंटीलेटर

बीप बीप बीप

और एक और मर गया

दूसरा लड़ रहा है

हम अपनी मूक भाषा में सब कुछ कह रहें हैं!! 

रोना चाह कर भी रो नही पा रहे

बाहर ब्रेक में जा- शायद इन अजनबियों के लिए  कभी ज़ोर से थोड़ा रो भी दे

उनके पास बैठे तो हम रो भी नही सकते, क्या पता बेहोशी में भी ‘कोमा‘ में भी यह लोग सब कुछ समझ रहें हों।

यह अधजगे - अधमरे लोग क्या यह जान रहे होते हैं कि यह अजनबी उनके लिये क्या क्या कर रहें हैं ?

यह कर्मनिष्ठ लोग- बस यही चाहतें हैं इनका दुःख कुछ कम हो जाये। यह लम्हें दुःख के यातना के जल्द से जल्द बीत जायें।

यह लोग आखिरी मूक साक्षी- उनकी आखिरी सांसों की-लालची सांसे-जूझती, जीने की जीजिविषा.........

आप उनके सामने रोयेगें नहीं- साहस दिखायेंगे बाहर निकल पसीने से तरबतर एन95 मास्क उतार-अपने बदरंग होते चेहरे पर थोड़ा पानी छिड़क, दस्ताने उतार, हाथ धो, डिसइनफेक्ट कर, चाय काफी कुछ भी मुंह में डालेंगे।

एक आध घंटे बाद दोबारा अंदर लौटेंगें देखेंगें वेंटीलेटर, ठीक सांस, कुछ-कुछ ठीक जो कहना चाहते हैं- कह नहीं पायेंगे, साहस दिखाते - अपने से कहेंगे बार बार

was trained for this

I was trained for this

This is my moral duty

***

तुम्हें अभी बहुत कुछ करना हैं-कुछ और सुंदर जगहों में घूमना है। कुछ निपट अकेले। कुछ किसी एक के साथ प्यार से....

बीता वक्त लौटाया नहीं जा सकता। बार-बार ज़ेहन में जिया जा सकता हैं।

पुराने रिश्तों के टुकड़ों को मिला जुला तैयार किया जैसे Patch work quilt– एक चादर फटी’फटी, झीनी-झीनी, बचे-खुचे टुकड़ों की बनी ओढ़नी, गर्मी भले न दे, ढक तो सकती है- थोड़ा बचाव तो है।

मशहूर डाक्टर Northrop विनफ्री के शो पर कह रही हैः पुरानी स्मृतियां मन में दोहराने पर, याद करने पर Physiologically आप फिर वहां पहुंच जायंगे- वहीं Hormones & neurotransmiters endorphin की तदाद बढ़ा लेगे जो उन स्मृतियों के साथ जुड़ी हैं- दुःखदायी घटनाओं को याद करेंगे तो डिपरेशन के केमीकल्स बढ़ा लेगे। अच्छे वक्तों को याद करेंगे तो Dopamine और endorphins की तदाद बढ़ा आप हल्का और खुश महसूस करेंगे-

उदास हताश लम्हों को याद करेंगे

उन लम्हों से गुजरेंगे

उन पलों को जिएँगे

दुःखदायी घटनाओं को याद करेंगे- जहां आप बहुत रोये थे, कराहे थे, टूटे थे, बिखरे थे- तो उदास हो जायेंगे। उदास करने वाले Neurotrasmitersबढ़ा और उदास हो जायेंगे।

कोरोना के बारें में बार बार न सोचें, टेलीविजन पर नेगेटिव रिपोर्ट बार-बार न देखें, उदास घटनायें मन ही मन न दोहरायें, टेलीविजन ज़्यादा न देंखे।

***

पुरानी स्मृति उभरती। तुम चुपचाप उनकी गाड़ी में बैठी हो। वो हालीडे- इन में ठहरतें है- हर साल - वहां किचनेट हैं

तुम हयात में ठहरती हो जहां मीटिंग के बहुत से सेशन होते हैं- सेंट्रल आफिस है बाकी के कुछ सेशनस - इस छोटे समुद्री शहर की कुछ और पब्लिक जगहों पर होते हैं 

वो तुम्हें कमरे में ले जा कह रहें हैं- तुम थोड़ी देर लेट जाओ- आराम करो।

तुम उनकी गाड़ी में रुक रुक कर रोती आई हो- रोती रही हो- वो चुप चाप सुनते रहे हैं। हां हूं थोड़ा अटका जवाब तुम्हारा इस कदर रोना उन्हें बोखला गया है- समझ नहीं पा रहें क्या करें तुम बिस्तर पर लेट गई हो- पैर एक और लटका दिये हैं- तुम्हारे सैन्डल- उनका बिस्तर मैला न करें।

उन्होंने तुम्हारे सैन्डल उतार कर तुम्हारी टांगों-पैरो को बिस्तर पर टिका दिया और तुम आराम से लेटो- वो तुम्हारे पैर चुपचाप सहलाते रहें हैं- तलुये गर्माते हुये- कुछ देर पैर सहलाने के बाद पूछ रहें हैं सर्दी तो नहीं लग रही- कम्बल ओढ़ा दूं- तुमने सिर हिला न कहा है। कमरे में Air Conditioner चल रहा है- होटलों के कमरे अकसर बेहद ठंडे रहते हैं। ठंडे रखे जाते हैं- गर्मी के मौसम में लोग ऐसा ही चाहते हैं।

वो थोड़ी देर बाद आ नाइट स्टेंड पर सफेद वाइन का छोटा गिलास रख कह रहें हैं- थोड़ी वाइन लो हल्का महसूस करोगी।

तुम चुपचाप लेटी - रोना अब बंद है उठकर बैठ गई हो - वाइन का एक आध घूँट लेती हो फिर कहीं खो जाती हो- पिछले दो सालों के हादसे मन ही मन दोहरा रही हो।

वो किचेनट में कुछ कर रहे हैं- तुम्हें इस वक्त कुछ नही सूझ रहा- ऐसे वक्तों में हम कहते हैं- मैं कुछ मदद करुं।

तुम कुछ भी सोच नहीं पा रही - दिमाग कभी एकदम खाली- और कभी गुबार फूटने को तैयार, वो जानते हैं तुम वेजीटेरियन हो तुम्हारे लिये खीरे, टमाटर के सैन्डविच और अपने लिये शायद बेलौनी या हैम - सैन्डविच बना और साथ थोड़ा सैलड काट कर लायें हैं- कह रहे हैं- मैंने मैयोनीज की जगह बटर लगाया- पता नही था तुम अंडा खा लेती हो या नहीं।

तुम कहती हो मैं अंडा खा लेती हूँ। तुम सैंडविच कुतर रही हो। वो कह रहे हैं तुम खा क्यों नहीं रही भूख नही है?

चलो खाओ मुझे पता है तुमने लंच भी नहीं लिया।

चलो खाओ ऐसे काम नहीं चलेगा तुम उनके कहने पर किसी तरह मुश्किल से सैंडविच निगल गई हो।

वो कह रहे हैं- चलो उठो बाहर चल कुछ देर समुद्र तट पर बैठते हैं।

जहां तुम ठहरी हो हयात में वहां से केवल समुद्र का थोड़ा सा हिस्सा दिखता हैं।

Beach नहीं।

सुबह कुछ सांइटिस्ट होटल के बाहर खड़े एक दूसरे से कह रहे थे - वहां दूर एक इसनम भ्मतवद खड़ा है जैसे प्रार्थना कर रहा हो - वैसे इस तट पर इसनम भ्मतवद कम ही रहते हैं।

उस दिन हम देर तक समुद्र तट पर बैठे रहे थे चुपचाप तीस चालीस मिनट या उससे भी ज्यादा बैठे होंगे।

सूरज डूबने को है- हम एक दूसरे के साथ सट कर बैठे हैं।

बिना बोले- कभी कभार तुम आसूं बहा रही हो - और फिर खुद ही रोना बंद कर देती हो।

तुम टांगे मोड़ - घुटने पर घूटना टिकाये बैठी हो एक हाथ बैलेंस के लिये रेत पर टिका - दूसरे हाथ में कभी थोड़ी रेत लेती हो और फिर धीरे धीरे फिसलने देती हो- कभी वो रेत पर टिके तुम्हारे हाथ को हल्का सा सहला देते हैं- और कभी पीठ सहला देते हैं जैसे ढांडस बंधा रहे हों।

तुम्हारा सर उनके कंधे पर कभी पूरी तरह नही टिका- कभी कुछ लम्हों के लिये टिका- और तुमने सावधानी से उठा लिया।

अंधेरा बढ़ रहा है- छोटे बड़े पक्षी तुम दोनों से कुछ दूर रेत पर फुदक रहें हैं- कुछ चुग रहें हैं।

क्या नाम है इन पक्षियों का तुम पूछ रही हो-

नहीं वो बड़े पक्षी नही- यह जो छोटे छोटे हमारे पास आ रहें हैं

यह सैंडपाइपर (sandpiper) की किस्म है - बीच-बीच तुम्हारी पीठ वो हल्के से सहला देते हैं।

आपको कोई पसंद कर रहा होता है- चाह रहा होता है। और आप किसी और को खोने का दुःख मना रहे होते हैं। आप इतने आहत रहते हैं कि जो सामने रहता है- उसे देख नहीं पाते। अब वो शायद किसी आहत बच्चे को दुलार रहे हैं।

तुम हमेशा शर्मीली रही हो - तुमने जिंदगी में कभी पहल नहीं की, किसी भी रिश्ते में तुमने कभी भी किसी की आंखों में आखें डाल देर तक नहीं देखा तुम कभी भी किसी को आंखों में आंखे डाल कर देख नहीं पाती और उन्होंने कभी हक से कुछ मांगा भी नहीं। 

उस शाम से कुछ साल पहले की घटनाः- मीटिंग का वो सैशन छोटे कमरे में हैं- कमरा खचाखच भरा कोई भी कुर्सी खाली नहीं बची।

तुम कुछ और सांइटिस्टों के साथ पालथी मारे ज़मीन पर बैठ टॉक सुन रही हो - अपने में मस्त, सैशन के बाद वो तुम्हारे पास आये हैं।

तुम ज़मीन पर बैठी- माॅडल जैसी लग रही थी-

‘‘योगिनी क्या तुम योगा करती हो ?’’ 

नहीं बिल्कुल नहीं।

मेरा नाम।

मेरा नाम - हाथ मिलाते हम।

तुम्हें आज बरसों बाद भी याद है- तुम ने सफेद पेंट पहनी थीं- जोगिया टाप और सफेद वेस्ट तुम फिर बरसों पहले के उस दिन पहुंच गई- कैसे हम दोनों एकदम प्रोफेशनल रहे- कहीं कुछ गलत मुंह से न निकल जाये- कोई हरकत हालात का फायदा उठाती न लगे।

जैसे कोई आखिरी सांस ले रहा होता है- आप उसका कुछ भी करने के काबिल नहीं होते- एक दम अपाहिज कोई किसी के ना होने का दुःख मना रहा होता- आप चाह कर भी कह नहीं पाते - देखो मैं जो हूँ पास- आप दोनों शांत पत्थर की मानिन्द किरदार निभा रहे होते हो।

क्या दूसरा आपसे दया मांग रहा होता है- या प्यार की भीख या केवल उसकी मांग रहती है- केवल - एक छुअन

जानवर भी जिनकी मांये मर जाती हैं दूसरी माओं के स्तनों को मुंह लगाते हैं- जब यह दूसरी मायें उन्हें दुत्कार देती है तो कैसे यह बच्चे और जानवरों के पीछे भागतें हैं

ऐसे में कोई बछड़ा किसी कुत्ते से दोस्ती करेगा और कोई मेमना किसी गधे के बच्चे से कहेगा मेरी मां ने मुझे छोड़ दिया- जू (zoo) - जू वाले मुझे बोतल से दूध पिला रहें हैं- पर मुझे छुअन चाहिये- मुझे और माओं ने खदेड़ा हैं- गोया मैं उन्हीं की नस्ल से हूं

तुम मेरी नस्ल के नहीं। मेरी बोली भी नही बोलते - पर जब मैं अपने को तुम्हारे, जिस्म में छुपाता हूं तुम मुझे खदेड़ते नहीं दुतकारते नहीं

सूरज डूबने को था। सैन्डपाइपर फूदक रहे थे - आपने कहा था चलो मैं तुम्हे तुम्हारे होटल छोड़ आऊं ।

तुम मुझे वापिस मेरे होटल छोड़ गये थे- अगली सुबह तुम्हें वापिस अपने मुल्क और मुझे अपने शहर लौटना था।

***

तुम वापिस अपने शहर लौटी थी- तुम्हारी पहली फैकल्टी पोजीशन।

तुम पढ़ा रही हो साथ ही अपनी रिसर्च लैब इस्टेबलिश करने की कोशिश।

सुबह छः बजे उठ बूचड़ खाने जा - गायों की आंखे इकट्ठी कर medium में डालती फिर emory और ग्रेडी हस्पताल से कैडाइवर से निकाली आंखे !!! इकट्ठी करती

बाद के कई सालों में- उस Annual meeting में उसी शहर में हम डिनर पर जाते रहे- आप मुझे याद दिलाते रहे- पहली बार ज़मीन पर बैठी - उस सेशन में तुम मुझे एक मॉडल जैसी लगी- एक योगिनी - बेहद स्टाइलिश

कैसे पहली बार मिलने पर आप ने मुझे बोर्ड ऑफ ट्रस्टी के डिनर पर बुलाया था- आप बोर्ड मेम्बर थे-

मैं लाल साड़ी पहन बीच पर कितनी बेतुकी लगी थी - कैसे आप बताना भूल गये थे- ट्रस्टीस का डिनर बीच पर था- और कैसे डिनर में वेजिटेरियन डिश नही थी- और कैसे आप ने कह कुछ खास मेरे लिये बनवाया था।

फिर कुछ सालों तक आप मेरे लिये सफेद चाकलेट का डिब्बा लाते रहे- और मैं आपके लिये छोटा कोई हिंदुस्तानी तोहफा।

फिर आपने कहा था Munich में आपके पिता का घर एक छोटा-सा म्यूजियम है- आपके पिता अच्छे पेंटर थे।

***

मेरे शहर कोरोना के इन दिनों में- आज धूप निकली है - चिड़िया चहचहा रही हैं- कोरोना का डर सभी को घेरे है - घर में सभी कुछ ख़त्म है- पिछले तीन हफ्तों में Curfew& shelter

तुम हिम्मत जुटा- कत्तर ऐयर लाइन का Eye mask मुंह पर लगा - जुराबों के दास्ताने बना पहन- ग्रोसरी स्टोर तक गई जरुरत का सामान ले आई।

***

चेरी टमाटर और खीरे के टुकड़े- मुंह में डाल रही हो - डाल कर कितनी खुश हो। आदमी कितनी छोटी छोटी चीजों से कितना खुश रह सकता है। पिछले कुछ दिनों से दूध ख़त्म था- बिना दूध काॅफी चाय, लान साफ करने वाले से कह मंगवाया दूध कल शाम दूध का पहला घूंट- किसी अच्छी रेड वाइन जैसा।

गोया तुमने घूंट-घूंट नहीं पिया गटक कर पी गई हो। ज़िंदगी की यह छोटी मोटी जरुरतें तुम्हारे लिये कभी ज्यादा अहम नहीं रहीं जो आज इतनी बड़ी सौगात लगती हैं।

हर सुबह तुम्हारे मेहमान पक्षी थोड़ा शोर मचा हताश लौटते- पक्षियों का दाना खत्म- यहां के पक्षी दाल चावल नहीं खाते - अच्छे बीज खाने के आदी है - तरबूज के बीज, सूरजमुखी के बीज, खरबूजे के बीज इत्यादि।

तुम्हारे मेहमान - लाल कार्डनिलस (cardinals) भूरी चिड़ियां (Finches) सफेद नीले (Blue Jay) नीली सफेद नटहैचस (Nuthatches) एक आध वुडपैकर (wood pecker) सफेद काला लाल कल्गी वाला - अपनी पूरी भव्यता के साथ! आज दाना डाला है। दो हफ्तों की बेकदरी मेरे मेहमान भूला नहीं पा रहें- नहीं आ रहे- अब बारिश आई तो कीमती खाना बेकार हो जायेगा।

तुम्हें पक्षियों की बोलियां आती होती तो तुम आवाजं़े निकालती। तुम्हें हमिंग बर्ड फीडर (Humming bird feeder) लाना है- हमिंग बर्ड फीडर के पास पक्षी मडंरा बार-बार लौटता।

पुराना हमिंग बर्ड फीडर लीक करता- दरारों से चाशनी टपकती चीटियों की कतार...

भूखें कितनी तरह की रहती है चाह से पिया- गटक कर पिया दूध का पहला घूंट...

***

टेलीविजन पर फ्रंट लाइन वर्कर्स- नर्सें, डॉक्टर emts

मास्कस पहने पीपीई पहने लाशों को लाशों वाली गाड़ियों में डालते। 

बीमारों को हस्पताल लाते- तीन-तीन, चार-चार नर्संे - वेंटीलेटर लगाये कोमा में पड़े मरीज़ों को उलटा पलटती

कोई वेंटीलेटर संभालती कोई गले की टयूबिग

कितनी निष्ठा से यह सब कर रहे यह लोग- कितने प्यार से... मरीजों के हाथ पकड़े यह लोग... पेशन्टस के घर वाले पास नहीं - इन आखिरी लम्हों में हम इन्हें प्यार देगें जितना भी दे सकते हैं।

करोना के बहाने, Northrop के बहाने कितनी पुरानी स्मृतियां यादें ज़ेहन में आतीं-कभी एक कड़ी लंबी- कभी टूटी बिखरती।

तुम वापिस वहां पहुंच गई हो

जहां बहुत गहरा अंधेरा था

टूटता रिश्ता - बिखरती ज़िंदगी

बेरोज़गारी पूरे साल की

कितने लोगों ने कितना सहारा दिया

प्यार दिया - बिना कुछ मांगे बिना किसी आस के

तुम्हारे मुंह में छाला- तुम बेरोज़गार, तुम्हारा छाला फोड़ एंटीबाटिक मरहम लगाती Hygienist

तुम रो रो कर बताती - बेरोज़गार हो रिश्ता ख़त्म होने को है

दूसरे दिन तुम्हारे घर पहुंचाया Florist का bouquet card।

तुम कल बहुत परेशान थी- पर यह वक्त भी गुज़र जायेगा- अगर मैं कुछ कर सकूं तो कहना झिझकना मत।

मेरा टेलीफोन नंबर, 

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फिर नौकरी लगी- रिश्ता ख़त्म हुआ कुछ सालों के अंतराल के बाद उसी मीटिंग पर तुम- वही समुद्री शहर- वो हयात के बार में बैठे है। दूर से तुम्हे देख पास आए हैं। तुम पिछले कुछ सालों से मीटिंग पर नहीं आ रही- नहीं आई तुम पास आ स्टूल पर बैठने की कोशिश कर रही हो- स्टूल ऊंचा है उन्होंने मदद की है- बैठ गई हो धीरे धीरे रो-रो कर बता रही हो जब उस साल-आप मिलने पर मुझे बोर्ड आफ ट्रस्टी के डिनर पर ले गये थे- जब तक मैं वापिस कमरे में नही लौटी-यह आदमी मेरे कमरे के चक्कर लगाता रहा- ढेड़ साल तक मेरे पीछे लगा रहा- और मैं न न कहती रही !!

फिर कुछ वर्ष हमारा रिश्ता रहा - उभरा.. मेरी नौकरी छुड़वा मुझे अपने शहर लाया और फिर शादी से मुकर गया

मैं पूरा साल बेरोज़गार रही, 

मैंने अपनी ज़िंदगी के तीन साल प्यार से इसके साथ गुजारे- गोया हम अपने अपने अपार्टमेंट में रहे फिर इसकी नौकरी दूसरे शहर और इसने झटके से एक पल में रिश्ता तोड़ दिया- मैं रो रही हूं बराबर हम दोनों को अपने अपने सेशन्स में जाना था।

कैसे शाम को आप मुझे अपने कमरे में लाये प्यार से सब सुना- मेरे पैर सहलाये जैसे आहत चोट खाये बच्चे को पुचकार रहे हो।

फिर उससे अगले साल आप का पूछना - तुम किस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हो- मुझे समझाना कि एकेडेमिक अपाइंटमेंटस के पहले कुछ सालों में अपने को जमाना कितना जरुरी रहता है- पहले तीन चार सालों में अपने को जमा न पाई तो ऐकेडेमिक ट्रेक से निकाल दी जाओगी पहले कुछ सालों में अच्छी ग्रांट मिलनी चाहिए-

तुम Human retinal pigment epithelium को कल्चर करने की सोच रही हो - अच्छा इस फिल्ड के पायनियर कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मेरे बड़े करीबी दोस्त हैं- उन्हें ख़त लिखूंगा उनकी लैब में जा तुम Techniques सीख सकती हो-

मैं यहां होता तो जितनी मदद कर सकता जरुर करता मेरी फिल्ड तुमसे कितनी अलग है, मेरी Electrophysiology और तुम्हारी Cell biology अच्छी बात है- तुम molecular biology सीख रही हो फिर आने वाली मीटिंग में हम एक आध लंच-डिनर - तुम्हारा Dr. Gouras की लैब में जा कोलंबिया यूनिवर्सटी में टेक्नीक्स सीखना - आपका कहना उन्होने समझा तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो इस लिये अपने घर रखा - और लैब में भी सभी कुछ सिखाया।

आपका एक मीटिंग में अपनी चाइनीज डेंटिस्ट गर्लफ्रेंड के साथ होना- फिर उससे दूसरे साल आप का कहना- वो बड़ी मैटिरियलिस्ट थी मेरे लिये ठीक नहीं-

फिर किसी मीटिंग पर आप का बताना मेरी वाइफ का अफेयर रहा मैं बहुत टूटा जब पता चला उसका रिश्ता मेरे Head of the department के साथ है।

पर जब वो बीमार थी हमारा डिवोर्स हो चुका था पर मैंने उसकी पूरी देखभाल की- उन दोनों का रिश्ता ख़त्म हो चुका था

वो वापिस मेरे पास लौटना चाहती थी मैं बहुत आगे बढ़ चुका था....

एक बार दिल उखड़ गया तो उखड़ गया- मेरी बीवी बहुत सुंदर थी।

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फिर किसी मीटिंग में कोई कह रहा था Hans Niemeyer हमेशा सुंदर और दिमाग वाली औरतों के साथ ही लंच - डीनर लेते दिखाई देते हैं।

मेरा दोस्त भाई जैसा डेनिस मुझसे कहता- तुम्हारे लिये Nemeyer जैसे Sophisticated polished European ही ठीक रहेगा- आम अमेरिकन्स के मुकाबले तुम बहुत ज्यादा polished और Sophisticated हो

हमारे बीच वैसा कुछ नही रहा उस साल हम डिनर पर गये थे

मैंने सफेद काले बार्डर वाली साड़ी पहनी थी- डिनर के बाद आप मुझे छोड़ने आये थे- आपने गाड़ी का दरवाजा खोला था- मैं बाहर निकली।

आपने मुझे कंधों से उठा ऊपर उछाला और नीचे खड़ा किया नीचे उतारते वक्त एक हल्का चुम्बन। बेहद शर्मीली थी- आपने हक से कुछ मांगा नही था फिर आने वाली कई मीटिंग्स में कभी इकट्ठे खाने पर गये कभी सिर्फ काम की बातें की- और फिर कभी दूर से दुआ सलाम-

फिर शायद आप की जिंदगी में कोई आ चुका था- किसी मीटिंग में आप मुझे किसी हिंदुस्तानी डाक्टर से मिलवा रहे थे- कह रहे थे - तुम्हें कब का ढूंढ रहा था - कह रहे थे तुम दोनों का साइंस के अलावा लिटरेचर (Literature) में इंटरेस्ट है- तुम दोनों को दोस्त होना चाहिए ... वो residency कर रहा था- मुझसे शायद छोटा था और हमारे बीच जरा भी आकर्षण नहीं था-

फिर किसी मीटिंग में आपने कहा था- तुम मुझे बहुत पसंद थी पर जब भी मैं सोचता- यह ध्यान आता यह यहां ।Academically well settled है वहां इसे सिर्फ रिसर्च की पोजीशन मिले और जब भी मैं किसी को बहुत चाह रहा होता हूं तो चाहता हूं- जब सुबह उठूं तो वो मेरी बगल में हो

फिर एक बार मिलने पर आपने कहा था आपने- एक अर्जनटीयन से शादी की है और उसका नाम रीता और वो मीटिंग में आप के साथ आई है। और मेरा आप दोनों को लंच का इन्वीटेशन... रीता का स्पा का बहाना कर न आना दोनों का लंच पर जाना मेरा रीता के लिये scent का छोटा उपहार।

बेटे कैसे हैं- मेरा छोटा बेटा अपनी गर्लफ्रेंड के साथ घर आया - मेरा बड़ा बेटा भी छुट्टियों में घर था- जाने कैसे मेरे बड़े बेटे की दोस्ती उस लड़की से गहरा गई- अब वो दोनों शादी करने जा रहे हैं।

मेरा छोटा बेटा बहुत डिप्रेस्ड है। सोच रहा हूं मैं उसे ले एक हफ्ते के लिये Munich चला जाऊं।

तुम कभी Munich मेरे पिता के घर जरुर जाना वहां वो छोटा म्यूजियम है- मेरे पिता जाने माने पेन्टर थे।

फिर किसी मीटिंग पर आप कह रहे हैं- मेरी और रीता की जिंदगी अच्छी है तुम जानती हो वो उम्र में मुझ से काफी छोटी-Swiss society में जम नहीं पा रही उसकी सारी की सारी सहेलियां अरजटेनियन डिवोर्सी या spinsters है। यह औरतें swiss govt का पूरा फायदा उठा रही है।

हर तरह की आर्थिक सहायता बटोर रही है।

तुम्हारा काम ठीक चल रहा है

जर्मनी में हुई मीटिंग के आप आर्गेनाइजर थे’ एक दूर ही से सलाम दुआ।

मैं- मैगडलीन और एक जर्मन साइंटिस्ट- वो जर्मन उसी शहर का था जहां मीटिंग थी मैगडलीन कैलीफोर्निया में थी उसका बरसों से एक शादी शुदा स्वीडिश से रिश्ता - वो उस मीटिंग पर नहीं थे।

वो जर्मन लड़का हमें आसपास की सभी जगहों पर ले गया था।

तुम बाथरुम से लौटी हो-

Banquet चल रहा है- फोटोग्राफर ढेरों तस्वीरें खींच रहा।

मैगडलीन मुझे तस्वीर पकड़ा रही है। मुझे लगा तुम्हें यह तस्वीर अच्छी लगेगी मैंने दस डालर दे तुम्हारे लिये खरीद लीं। तस्वीर में जर्मन साइंटिस्ट और मैं ठहाका लगाते हुये मैगडलीन कह रही है तुम दोनों तस्वीर में कितने खुश लग रहे हो।

वो जर्मन सांइटिस्ट और हम फिर कभी नही मिले फ्रांस में हो रही मीटिंग में वो दूर से दिखा था।

जिनीवा में हो रही मिटिंग पर आप नहीं आये थे- आपका कोलबोरेटर जर्मन साइटिंस्ट प्रजेंट कर रहा था।

आप दोनों मिल Bionic eye तैयार कर रहे थे- जो Retinitis pigmentosa और macular degeneration से खोई दृष्टि वालों को वापिस थोड़ा कुछ दिखा पाये।

बायेनिक आई (Eye) में- आदमी। ऐनक पहनता जिस पर कैमरा लगा रहता- बाहर से कैमरे में हो रही रोशनी आंखो के पिछले भाग में पहुंचती Electrodes वहां से रोशनी को इलेक्ट्रीक वेव में बदलते और दिमाग तक पहुंचाते- यह बीमारियां उन Neurons को ख़त्म कर देती। जिनका काम इन्फारमेशन पहुँचाना रहता था।

Human subject Goggles लगाये जिन पर कैमरा जिस की आखों के पिछले भाग में Electrodes Bionic-eye का काम रहा है-

सबजक्ट कह रहा है मुझे बरसों से कुछ नहीं दिखा अब हल्की परछाई सी- घड़ी की दस या ग्यारह के दर्मयान अब वो परछाई - बारह पर पहले कुछ धब्बा सा- अब बड़ा होता आदमी- नहीं शायद औरत भविष्य में शायद यह लोग बड़े बड़े अक्षरों को पढ़ पायें- शायद एक्सपेरिमेंट का सेंपल साइज केवल 6 पेशन्टस

तुम Stem cells बमससे पर काम कर रही हो- कोशिश कि यह Stem cells& rod& photoreceptors और conephotoreceptors में तबदील किये जा सके- Retinitis & pigmentosa में पहले रात को देखने में काम करते rod & photoreceptors मर जाते है और फिर दिन को देखने में काम आते कोनस (cone photoreceptors)

आपने कई बार कहा था- जब तुम्हें पहली बार देखा पाल्थी मारे ज़मीन पर बैठी- तब तुम मुझे बहुत अच्छी भोली- प्यारी लगी थी।

मेरे आंगन में कोरोना के इन दिनों में क्रमलिया (Camelia) के फूल लगे हैं कैसे मठे-मठे यह फूल - गुलाब की तरह लगते - पर गुलाब नहीं- तुम्हारा काम ठीक चल रहा है।

***

हमारे औरों के साथ रिश्ते बनते टूटते रहे।

आखों ही आंखों से आदमी कितना समझ जाता है-

बिना कुछ कहे जिस हिंदुस्तानी से आप मेरी दोस्ती करवाना चाह रहे थे वो अब हेड ऑफ डिर्पाटमेंट है।  उसकी पहली पत्नी की कैंसर से मौत - अब दुबारा शादी और बच्चे

हम अच्छे कोलींग्स हैं- एक दूसरे के पेपर्स रिव्यू करते हैं।

मैं प्रोफेसर बनी। सेल बायोलॉजी से, स्टम सेल रिसर्च में गई उस साल उस समुद्री शहर में सी फुड खा-खा तंग आये लोग।

अकेले हिंदुस्तानी रेस्टोरेंट ‘‘पंजाब ढाबा ‘‘ में और मैं तो थी ही वेजेटेरियन।

मैं ब्रिटिश, सांइटिस्ट, Richard और Margaret Hunt  के साथ थी।

दूसरी एक बड़ी लंबी टेबल पर इकबाल अहमद और उनकी लैब के दस पंद्रह लोग।

आप और रीता एक कोने वाली मेज पर मैं इकबाल की लैब को उनकी टेबल पर हैलो कह- अच्छी तरह मिल आपकी मेज पर हैलो कहने पहुंची हूं।

आप रीता से कह रहे है यह हैं मीरा तुम इन्हें जानती हो, मैंने कई बार जिक्र किया इन का, यह मीरा हैं। कभी मीरा का रंग एक दम तुम्हारे जैसा था। यह तुम्हारी तरह पतली भी थी। हम बहुत पुराने दोस्त हैं।

तुम अब मुट्टा गई हो

मैं अब वापिस अपने टेबल पर हूँ।

कई सालों साल - आप मेरे लिये स्विस व्हाइट चाकलेट लाते रहे और मैं कोई छोटा हिन्दुस्तानी तोहफा आपको देती रही।

आप आपथोलमालोजिस्ट - रिर्सचर और साथ ही साथEtching भी करते थे। आप ने मुझे अपनी दो Etching दी थीं जो आज भी मेरे ड्राइंग रूम में हैं।

मैं उस बार रोती। आपकी गाड़ी में बैठती। आप मेरे पैर सहलाते सैन्डविच बना जबरदस्ती खिलाते। हम अपने अपने दायरों में लौटते। उस पहली बार लाल साड़ी में अजूबा लगती मैं। मेरे लिये वेजीटेरियन कुछ बनवाते आप।

तुम शर्माती रही, जरा अग्रेसिव होती तो ??

जब आदमी डूब रहा होता है तो कितने लोग मदद के लिये हाथ बढ़ा देते हैं।

तुम्हारी पहली Grant की corrections करता हुआ Primo Levi का बेटा Ranjo Levi तुम्हारी Grant की corrections – तुम्हारे लिये पास्ता बना खिलाता।

तुम्हारा मन बहलाने को गिटार बजाता

उसकी गर्लफ्रेंड है

तुम टूटी हो वो सिर्फ तुम्हारी मदद कर रहा है।

आप दुःखी हो रहे हैं। लोग थपकियां दे रहें हैं... हल्की हल्की आप कुछ गलत न समझ ले। बस इनसानियत का तकाज़ा है।

करोना से मरते लोग। दोहरी तेहरी चादर लपेटे, मास्कस पहने, दस्ताने पहने, वेंटीलेटर लगाते, हाथ थामते नर्सस और डाक्टरस

आखिरी पल छुअन के तुम अलबार्ककी एयरपोर्ट पर Santafe के लिये जहाज़-यहां बदलना था।

एक औरत तुम से बातें करने लगी है। वो पिछले तीन साल से अपने पति की जो Terminal cancer से है, सेवा कर रही है। पति ने जबरदस्ती कहा है- कुछ दिन अपनी बहन के पास हो आओ नहीं तो तुम मुझसे पहले ख़त्म हो जाओगी। वो बराबर रो रही है। तुम चुप करा रही हो उसकी बातें सुनते-सुनते फ्लाइट मिस हो गई जब तुम 11 बजे Santafe पहुचोगी। तुम्हारा कमरा किसी और को दिया जा चुका होगा वो जी हल्का करना चाहती थी कोई बात नहीं उस होटल में न सही कहीं और जगह मिल जायेगी।

करोना से मरते लोग

आखिरी सांसे लेते लोग

अपने संदेशे- नसर्स डाक्टरस द्वारा अपनों तक पहुंचाते लोग उनके हाथ-पैर सहलाते डाक्टरस नसर्स उनकी आखिरी हिचकी के साक्षी यह लोग।

बाहर निकलते अजनबियों के लिये रोते यह लोग

यह डाक्टरस, नर्सें करोना के बहाने चंद भूले बिसरे फंसाने याद आये। इस बार अटलांटा की बसंत बेहद खूबसूरत ढेरों फूल शाखों पर पुरानी यादों के साथ....



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