कविता
सुश्री अंजना वर्मा
ई-102,रोहन इच्छा अपार्टमेंट,भोगनहल्ली
विद्या मंदिर स्कूल के पास, बैंगलुरू -560103
जली रोटियाँ
अक्सर खाने के समय माँ
अपनी थाली में ले लेती थीं
जली रोटियाँ
यह कहते हुए
कि "मुझे बहुत अच्छी लगती हैं
ये कड़क रोटियाँ
मुझे दो, मैं खाऊंगी"
हम भी यही समझते रहे
कि माँ को पसंद है ऐसी रोटियाँ
जो हममें से कोई नहीं खा सकता था
लेकिन इसका अर्थ मैं तब समझ सकी
जब माँ बनने के बाद
रोटी के डब्बे की तह में पड़ी
सीली रोटी
सबसे पहले निकालकर
मैं अपनी थाली में रखने लगी
यह कहती हुई
"यह मुलायम रोटी मैं खाऊंगी"